दान


देवों और दानवों में युद्ध छोड़ा था देवता। देवताल लगातार पराजित हो रहे थे। व्रत्रासुर ने तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा रखी थी। सभी लोग परेशान थे ब्रह्मा जी के पास गए और इस विपत्ति का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने कहा दधीचि ऋषि जो तपस्या में रत हैं। उनकी अस्थियों से जो अस्त्र बनेगा उससे ही वृत्रासुर का बध होगा ।
इंद्र ब्राह्मण का वेश बनाकर दधीचि ऋषि किसके पास पहुंचे और बोला
' मुझे आपसे दान चाहिए पहले आप वचन दीजिए कि आप मुझे वह दान देंगे।"
दधीचि ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा आइए इंद्र मैं जानता हूं आप मेरी हड्डियों को प्राप्त करने के लिए आए हैं जो तपस्या से वज्र के समान हो गई हैं किंतु आप सोचिए आपको हड्डी देने का मतलब है अपना जीवन त्याग देना। किंतु आप जाइए एक गाय ले आइए तब तक मैं अपने प्राणों को ब्रह्मांड में स्थित कर लेता हूं और आप मेरे पूरे शरीर पर नमक लगाकर गाय से चट वाली जिएगा और इस प्रकार आपको मेरी अस्थियां प्राप्त हो जाएंगी।
इंद्र ने दधीचि ऋषि के कहे अनुसार वैसे ही किया और अस्थियां प्राप्त की उन अस्थियों से विश्वकर्मा ने वज्र बनाया जिससे वृत्रासुर का वध हुआ ।इसीलिए कहा गया है समाज की भलाई के लिए व्यक्त का और राष्ट्र की भलाई के लिए समाज का बलिदान होता है।
उसी समय से जो व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान देता है उसे दधीचि कहा जाता है।

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