माँ की पीड़ा

बेटी ,बहन ,पत्नी ,बहू हर  रिश्ता     वो निभाती है,
पर मां बनकर ही हर नारी संपूर्ण      कहलाती है।  
पिता ,पति ,भाई -बहनों पर वारी -वारी जाती है, 
पर जीवन की सारी ममता औलाद पर ही लुटाती है।
सारे कांटे चुन-चुन कर वो  फूलों की राह बनाती है, 
अपने सुख- दुख बिसरा कर वो उनकी मुस्कान सजाती है।
उनके सपनों को वो अपने जीवन का लक्ष्य बनाती है, 
अपनी खुशियों की कीमत पर उनकी खुशियां वो लाती है।
मां के चरणों में स्वर्ग बसे ये सदियों से सुनते आए है,
मां की महिमा के सभी है बरसों से सुनते आए।
पर भर जाती हैं आंखें जब सच्चाई सामने आती है, 
जब वृद्ध आश्रम की चौखट पर दुखिभर की  मातायेआती है।
क्या यही मोल है ममता का ,कोई पूछे उन संतानों से,
माता का कलेजा चीर दिया है जिसने अपने तानों से।
नहीं बढ़ा है जीवन में जिसकी मां उसके साथ नहीं,
वह सुखी नहीं रह सकता है 
गर सर पर मां का हाथ नहीं।
माँ के तप त्याग-तपस्या का
कोई कर्ज़ उतार ना पाया है,
उसे धन दौलत की चाह नहीं जिसने सर्वस्व लुटाया है।
तो मातृ दिवस पर हर माता 
अब ये याद दिलाती है,
तुम नहीं भूलना उस मां को 
तुम्हें जो दुनिया में लाती है।
                   
                प्रीति मनीष दुबे।

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