चलो लौट चलें !
"""""""""""""""""""""
पलते थे रिश्ते कभी जिसकी छांव में ,
चलो वही कच्चा घर बनाए गांव में ।
फिर से गुजारें शाम, रेतीले नदी के किनारे ।
मन को भाते थे कितना, वो पहाड़ी नजारे ।
फिर गोबर से लिपें , आंगन औसारा ,
तुलसी का पिंडा, फूलों का चौबारा ।
फिर से नंगे पांव चलें, मिट्टी लगे पांव में ।
पलते थे रिश्ते कभी जिस की छांव में ।
चलो वही कच्चा घर बनाए गांव में ।
वही पलाश का जंगल हो, सिनवार की झुरमुट झाड़ी ,
गुलमोहर के फूल खिले हों ,सुबह कि नीरा ताड़ी ।
छोटे-छोटे बेर हों जंगली, जामुन और करौंदा
फिर से बनाएं मिर्च मसाले वाला आम का सोंदा ।
सखुआ के पत्ते में खाएं, मिल अगरी की छांव में ।
पलते थे रिश्ते कभी जिसकी छांव में ।
चलो वही कच्चा घर बनाए गांव में ।
पिंकी मिश्रा
भागलपुर बिहार ।
Comments
Post a Comment