जीने के लिए रोटी कपड़ा मकान काफ़ी है


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ज़िंदादिली से दोस्तों मेहनत की रोटी खाइये।
पराठा खाना है तो फिर तेल भी तो  लगाइये।

हाला की इस जहां में तेल लगाने वाले भी  हैं।
जिनको पसंद है तेल लगवाना वो वाले भी हैं।

स्वाभिमान वाले बहुत ही कम यहाँ दिखते हैं।
पर कतरते वाले ही अब तो ज्यादा दिखते हैं।

गॉड फादर भी कोई जल्दी अब नहीं मिलता।
मिलता भी है तो  खोट दिल  में लिए मिलता।

इज्जत की रोटी तो मेहनत के पसीने से मिले।
दाल रोटी मिले या भले ये सूखी रोटी ही मिले।

पेट ही तो केवल सभी परिवार को ये भरना है।
ज़िंदा रहने के लिए कुछ भी न ग़लत करना है।

कोरोना में सब ने कितना ये बुरा हाल देखा है।
अमीरों को भी वायरस से हुआ बेहाल देखा है।

ग़रीबों की भी जानें गईं हैं वैश्विक महामारी में।
पैसे वाले भी बचा ना पाये हैं जानें  बीमारी में।

फिर क्यों तेल लगा कर के धन कमाया जाये।
इज्जत के मिले जो  वही सिर्फ कमाया जाये।

बेइमानी से लाख तिज़ोरी भले ही भरले कोई।
फल जो मिलता है बुरे का तो ना संभले कोई।

आहें बहुत लगती हैं अंतिम वक्त भी है आता।
सब कुछ धरा यहीं का यहीं ये रहभी है जाता।

जीने के लिए काफी है रोटी कपड़ा व मकान।
ज्ञान ये जरुरी है देखें कोरोना में हाले श्मशान।


रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव

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