"पैसों के बदले"

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" लहंगा कितने का है?'
मौसिया सास ने बड़ी बहू से दुल्हन बनी उसकी नन्द की ओर इशारा करते हुए पूछा।
     "यही कोई दस हजार के लगभग होगा.. उसने निराशा के भाव से बताया । उसकी ननद और सास इस शादी से खुश नहीं लग रही थी
     "ओ!!! .. बहुत सुंदर है ... चलो आज शादी पड़ ही गई .. पिता के गुजर जाने के बाद तुमलोगो ने बखूबी जिम्मेदारी उठाई ... दोनों भाइयों ने दिन रात एक कर दिया इसके पढ़ाई लिखाई और शादी के लिए..."मौसी ने बड़ी बहू की मनोभावों को पढ़ते हुए कहा।
     " हां मौसी ! बिन बाप की बेटी इनकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी आज ये लोग उस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे...पिता की छत्रछाया में बेटी  हो तो लोगो को कम खटकती है पर भाई सब कैसे नईया पार लगाएंगे ये देखने के लिए लोग बेचैन ही रहते हैं...।"  बगल में बैठ कर जयमाल प्रोग्राम देखते हुए उसकी मां की उम्र की चचेरी नन्द ने मौसी का समर्थन किया।
      मौसी ने लंबी स्वांस भरी  " भगवान की दया से दोनों भाई उच्च पद पे हैं जिसकी वजह से इतनी धूमधाम से ब्याह संभव हो पाया है ... वरना जीजा के बस की बात नहीं थी , वे तो बेटी के लिए कुछ भी नहीं जमा कर पाए थे। "मौसी शादी देखकर संतुष्ट थी।
     "दूल्हा भी अच्छी सी सरकारी नौकरी में है , दान दहेज भी अच्छा खासा दिया जा रहा है ... ऐसी शादी विरले ही देखने को मिलती है... पर दीदी और छोटी का मुहं क्यूं लटका हुआ है समझ में नहीं आ रहा ?? उसने बहू से शंका जाहिर की। 
        "अरे!! कुछ नहीं मौसी अभी तक काकी को विश्वास नहीं हो रहा है कि उनके बेटे बहू इतने लायक निकले ...वे तो हर जगह इनलोगो की बदनामी करती आई हैं ,छोटी को भी उच्च शिक्षा दिलाने का कोई फायदा नहीं!!! आज मां बेटी को ये सब हजम नहीं हो रहा है...!" बहू कुछ कहती इससे पहले चचेरी ननद ने सफाई पेश किया दिया।
      " हजम नहीं हो रहा या करना नहीं चाह रही , 30--32 की हो गई है छोटी अब कब शादी करती...भाइयों को भी तो समाज में जवाब देना होता है... कह कर मौसी ने बुरा सा मुंह बनाया ।वह जानती थी दीदी का स्वभाव इसलिए उनसे कभी इनका बना नहीं । 
      अंततः विवाह कर्म संपन्न हुआ ,विदाई बेला आ गई एक तरफ घराती और एक तरफ बाराती एक दूसरे से विदाई ले रहे थे ।अत्यंत करुण बेला थी , बेटी को विदा होते देख सभी की आंखे भर भर आ रही थी, भाई बेचैन थे ,भाभियां गमगीन , 
      हमेशा की भांति इस विदाई बेला में भी बड़ी बहू कुशलता पूर्वक जरूरी काम काज निपटाने में लगी थी... ,
      ...जैसे ही दुलहन की गाड़ी अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करने लगती है मां दहाड़े मार कर रोने लगीं सभी औरतों ने उन्हें थामा बड़ी बहू भी दौड़ पड़ी और उनका हाथ थाम लिया ,मां ने न घराती देखा न बाराती बड़ी बेरहमी से बहू का हाथ झटकते हुए कहा मेरी बेटी बोझा थी न तुमलोगों पे इसलिए पैसों के बदले उसे बेच दिया...।

      स्वरचित व मौलिक
      कीर्ति रश्मि "नन्द
वाराणसी

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