आओ प्रेमचन्द्र को नमन करों !
वराणसी के लम्ही गाँव में,
भारत का आया दुःख हरण l
सन अट्ठारह सौ अस्सी में,
प्रेमचंद्र का हुआ अवतरण l
माता -पिता, परिवार सबकुछ खोया,
समाज की कुरीति का गबन बताया l
बड़े भाई साहब को भी सामने लाया,
अल्पायु में ही कलम को पाया l
फिर लिख दिया लेखनी से धरा ,
कलम का सिपाही बनाया वतन
निर्मला,कम्बल के बिना हल्कु मरा
जीवंत पात्र हैं बूढी काकी, कफ़न l
उपन्यास सम्राट का जिया जीवन
हामिद चिमटा लेकर आया चमन
गोदान, पंच परमेश्वर कालजयी !
समाजिक पीड़ा देख रोया गगन l
--डॉ. ज्योति सिंह वेदी "येशु "
मधेपुरा, विहार
(स्वरचित एवं मौलिक रचना )
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