खेवैया



तुमसा लगा कोई प्यारा नहीं, 
तुमसे बढ़कर कोई सहारा नहीं।

खुशी हो या ग़म तू ही है संग, 
तेरे बिन ज़िंदगी का गुजारा नहीं।

कहे तुम्हें शशि शशांक औघड़दानी, 
ब्रह्मांड में तुमसा कोई न्यारा नहीं। 

तेरे चरणों को छोड़ कहीं और जाऊँ, 
ऐसा कोई ठिकाना अब गँवारा नहीं। 

मझधार में फँसी नाव के"झा"खेवैया तुम, 
तुम ना हो तो,मिले नाव को किनारा नहीं।
आरती झा(स्वरचित व मौलिक) 
दिल्ली

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