"सावन की बूंदे"

                          

ये सावन की बूंदे, ये रिमझिम सा पानी,
वो फिर याद आई, पुरानी कहानी,
ये सावन की बूंदें.....

ये मेघों की टोली, घिर आंई घटाएं कारी,
वो फिर आई, पवन पुरवा सुहानी,
ये सावन की बूंदें.....

ये सावन और, भादौं का मिलना बाकी,
वो फ़िर आई, ऋतु सुहानी सुहानी,
ये सावन की बूंदे.....

ये गिरी शिखरों से, झरनों का गिरना,
वो फिर कल कल करती, नदिया बहकी,
ये सावन की बूंदें.....

ये बागों में, भंवरों का आना,
वो फिर फ़िजा में,फूलों की खुशबू महकी,
ये सावन की बूंदे.....

ये बारिश में, गौरी का दिल धड़कना,
वो भीगी लटों से,जो बूंदों का फिसलना,
ये सावन की बूंदे.....

बिन सजना के, ये कैसी है बारिश,
विरहन को सताये, ये बारिश सुहानी,
ये सावन की बूंदें.....

आए न साजन, सूनी पड़ी दुअरिया,
विरहा की अग्नि से, जल रही सुहागन,
ये सावन की बूंदें.....

बिन साजन के, कैसे करुं मैं श्रंगार,
आऐं मेरे साजन, सखि आएं मेरे साजन,
ये सावन की बूंदें.....

ये सावन की बूंदें, ये रिमझिम सा पानी,
वो फिर याद आई, पुरानी कहानी,
ये सावन की बूंदें, ये रिमझिम सा पानी ।
   काव्य रचना-रजनी कटारे
        जबलपुर ( म.प्र.)

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