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Showing posts from November, 2021

मैं लिखता हूँ यह खत, वतन तेरे नाम

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----------------------------------------------- मैं लिखता हूँ यह खत, वतन तेरे नाम । तु ही मंजिल मेरी , तु ही मेरा है ख्वाब ।। तु ही मंदिर मेरा , तु ही मेरा है धाम । तु ही मेरा खुदा , तु ही मेरा है राम ।। मैं लिखता हूँ --------------------------।। हर किसी की जुबां पे है , उनकी कहानी । लुटा जो गए तुझपे , अपनी जवानी ।। जो खुद को मिटा , दे गए जिन्दगानी । यह तिरंगा है उनकी , अंतिम निशानी ।। उन वतन के शहीदों को , मेरा सलाम । मैं लिखता हूँ -------------------------।। ना बहे खून ,किसी भी धर्म के लिए । लोग जीये यहाँ , सिर्फ तेरे लिए ।। नहीं टूटे यह बन्धन , कभी प्यार का । और इंसाफ मिले यहाँ , सभी के लिए ।। मैं सुनाता हूँ सबको , यही पैगाम । मैं लिखता हूँ ---------------------------।। नेक राह मैं चलूं , नेक हो हर कर्म । मरते दम तक निभाऊं यह , अपनी कसम ।। तुझने पाला है मुझको , दी है पनाह । तेरी इज्जत बचाना है , मेरा धर्म ।। अपने लहू से लिखा है , तु ही मेरी जां ।। मैं लिखता हूँ ---------------------।। (स्वरचित & स्वलिखित - गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आजाद)

युवा अंगार

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उत्तर प्रदेश का जनपद वाराणसी ऐतिहासिक नगरी है भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है ऐसा सनातन  मान्यताएं है ।।काशी में मृत्यु होने पर मोक्ष मिलता है, यहाँ विश्व का एक मात्र  मुमोक्षु गृह है जहाँ देश के विभिन्न कोनो से लोग आते है और अपने मरने का इंतज़ार करते यह एक अनोखा आस्था का अद्भुत सत्य वाराणसी से ही जुड़ा है वारणसी ही एक ऐसा शहर है जहां श्मशान की आग सदैव जलती है और यहां के डोम राजा को काशी का गौरव होने का दर्जा प्राप्त है ।।एक कथा के अनुसार राजा हरिश्चंद्र काशी में ही डोम राजा की चाकरी किया था वही मंकर्णिक घाट है बाद में राजा हरिचंद्र के नाम से एक नया श्मशान भूमि ने जन्म लिया भारतीय इतिहास की नारी गौरव रानी लक्ष्मी बाई का जन्म स्थल भी गंगा किनारे वाराणसी में ही हुआ था कथा एव उपन्यास उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेम चंद्र जी का जन्म स्थान लमही वाराणसी है हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर जयशंकर प्रसाद जी की जन्म भूमि कर्म भूमि वाराणसी ही है मशहूर शहनाई वादक उस्ताद विस्मिल्लाह खान साहब की जन्म कर स्थली भी यही है कितने घराने संगीत के वारणसी से संबंधित है पण्डित छन्नू लाल मिश्रा एव विरजु महाराज जी...

धराम्बर

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धरती का अंबर से  मिलन जब होता हैं  अधरों का अधरों से  चुम्बन तब होता हैं  बरसता हैं धरती के जिस्म पर  अंबर का प्यार  बूंद बन कर   खिल जाता हैं धरा का   अंग अंग शर्माकर   तड़पती हैं दोनों की रूह  एक दूजे की बाहों में आने को फूल और भंवरे की तरह  एक हो जाने को  वसुंधरा ने चाहा हैं  इस कदर नभ को  भूल गई  हैं वो एक  पल के लिये इस जग को  तमन्ना हैं कि बीछ जाये  उसकी राह में फूल बनकर  हसरत हैं कि लहराये  उसके माथे की लट बनकर ना जुदा करे कोई  उनको प्यार की राहों में   रहे उम्र भर एक   दूजे की पनाहों में   रूह का रूह से दिल का  दिल से मिलना हो जाये  ना चाहत रहेगी कोई  दिल की प्यास जो बुझ जाये  फिर ना कोई कसक ना तड़प रहेगी इस दिल में  फिर चाहें मौत भी  क्यों ना आ जायें   नेहा धामा " विजेता "  बागपत , उत्तर प्रदेश

धरती

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🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌍🌹🌎 शांत स्वभाव के देवी की हम सब है संतान  क्यों न हम सब दिल से नमन करे पृथ्वी की  जो न कोई लोभ न कोई स्वार्थ रखती है दिल मे  सबको एक सम्मान प्रेम करती है माँ धरती.....! पशु, पंछी,ये पहाड़, पेड़ पौधा हो या इंसान या बहती धारा हो गाँगा की या बहती लहरे समंदर की  हम सब पलते है जो इनकी ममता की आँचल मे सारी सृष्टि की ही माँ है ये पवित्र धरती....! समझना मुश्किल है की कितना ये दर्द सहती है फिर भी होठों से उफ्फ तक न करती है माँ धरती हर कदम पर जो हमें प्रेणा देजाती है ज़िन्दगी मे सच मे सहनशीलता की देवी है माँ धरती.....! कभी तपती धुप से जलती है पतझड़ मे कभी ज्यादा बारिश से ढह जाया करती है धरती कभी भीग जाती है सर्दियों मे ओस की बूंदो से जो लगता है मोतियों से सजी है धरती....!! कहीं पर पर्वत सजा है स्वेत पत्थरो से तो कभी नीले धाराएं लिए पवित्र गाँगा है बहती कहीं ओढ़ ली है चादर रंग बसन्ती लहराते खेतो ने तो कहीं पेड़ पौधो से हरियाली मे रंगी है धरती....!! कभी लगता है ये कुछ कहती है हमसे शायद अपनी दिल का दर्द बयां है ये करती जाने कितनो ने किये है ट...

"धरती स्थापित"

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जिस समय सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था । ना सूरज, ना चंद्रमा ,ग्रह नक्षत्रों का कहीं कोई पता नहीं था ।न दिन होती थी न रात पृथ्वी जल और वायु की भी सत्ता नहीं थी। उस समय  सारे देवता एक दिन सभा में उपस्थित थे। तभी उन लोगों ने विचार किया कि संसार बसाने के लिए धरती स्थापित करना चाहिए। हर तरफ सिर्फ जल ही जल फिर महादेव ने कहा। जल मैं रहने वाले जीव अगर नीचे से मिट्टी निकाल कर ले आएं, तो जिस प्रकार दूध में थोड़ा सा दही मिलाकर कर जमने के लिए छोड़ देते हैं। वैसे ही मिट्टी पानी में मिलाकर जमा देंगे। पानी मैं रहने वाले सारे जीवों को आदेश दिया। नीचे से मिट्टी लेकर आएं। पर जो भी जीव जाते मिट्टी लेकर आते आते रास्ते मैं ही,बह जाती, और ऊपर नही ला पाए। फिर विष्णु भगवान मगरमच्छ का रूप ले पानी के नीचे से मिट्टी लेकर आए। फिर ब्रम्हा जी से कहा, तीन भाग छोड़कर सिर्फ एक भाग मैं इस मिट्टी को अच्छी तरह मिला दो। ब्रम्हा जी पानी में मिट्टी मिला कर आ गये। कुछ दिनों बाद जब देवता देखने गए तो धरती तो जम गयी थी। परन्तु  पैर रखते ही धरती हिलने लगी। फिर कछुए को बुलवाया गया और कहा तुम जाकर धरती के नीचे, पकड़...

दादी मां

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धवल केशराशि से आच्छादित  आंखों पर गोल गोल चश्मा चढ़ाकर  झुर्रियों भरे चेहरे के पीछे से  वात्सल्य की बरसात करती हुई  कमजोर हाथों की पकड़ में लेती हुई  अपने आंचल से मुंह पोंछती हुई  मम्मी के कोप से बचाने को  अपनी बांहों में समेटती हुई  पापा की कर्कश डांट के सामने  एक ढ़ाल की तरह खड़ी होती हुई  जो धुंधली सी तस्वीर नजर आती है वह एक दादी मां ही हो सकती है ।  अपने हाथों से बूरे से रोटी खिलाती  दूध के गिलास को पकड़ाकर  गट गट पीने को प्रोत्साहित करती  कभी कहानियों का कभी गीतों का  कभी किसी और का प्रलोभन देती  वो दादी मां कैसी होती होगी  कल्पना ही कर सकता हूँ  क्योंकि हमने उन्हें कभी देखा नहीं  हम छ: भाई बहनों के आने से पहले ही वे अनंत यात्रा पर महाप्रयाण कर चुकी थीं  पोते पोतियों को खिलाने का बड़ा चाव था उनका  मगर सारी इच्छाएँ किस की पूरी हुई हैं ?  मन का एक कोना खाली सा रहता है आज भी मगर मेरे बच्चों ने अपनी दादी मां को देखा है उन्होंने मेरी कल्पनाओं को साकार किया है  कभी कभी अपन...

🎗️ विश्व एड्स दिवस🎗️

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********************************* एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ एड्स का पूरा नाम है। एड्स एक जानलेवा बीमारी हैं स्वयं एड्स मृत्यु का दूसरा नाम है। एड्स इंसान को जीते जी मरने को विवश कर देता है। एड्स होते ही समाज क्या सारी दुनिया ही हमें कलंकित करने लगता है। यह बीमारी एच.आई.वी. वायरस से होता है यह बीमारी मनुष्य के प्रतिरोधक शक्ति को कम कर देता है एड्स एच.आई.वी. पॉजिटिव गर्भवती महिला से उसके बच्चे को भी हो सकता है। एड्स संक्रमित रक्त के प्रयोग करने से भी हो सकता है एच.आई.वी. से संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित संभोग करने से भी हो सकता है। एड्स बीमारी दुनिया के सामने घातक बीमारी के रूप में उभरकर आया है। एड्स साक्षात मौत का रूप बनकर पूरी दुनिया पर छाया है एड्स बीमारी का कोई इलाज नही है। एड्स बीमारी में छुपा जैसे गहरा कोई राज एड्स बीमारी को हल्के में लिया नही जा सकता एड्स बीमारी से समझौता किया नही जा सकता। एड्स बीमारी का एकमात्र इलाज बचाव है। एड्स बीमारी से बचाव हो यही इसका प्रस्ताव है। एड्स बीमारी से खुद को बचाए एड्स के प्रति लोगो में जागरूकता लाए सावधानी हटी दुर्घटना घटी यह शब्द...

'ये धरती ये आसमां'

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रात और दिन क्या मिलते हैं कभी ये चांद और सूरज क्या मिलते हैं कभी ये धरती और ये आसमां क्या मिलते हैं कभी...? जब प्रकृति खुद दे रही संदेश है कि सिर्फ मिलना ही न कोई उद्देश्य है उद्देश्य तो वो है जो बदल सके सोच को जो बदल सके समाज को...? गर न मिलकर ही कोई पा सकता है इतनी उच्चता तो मिलना कब जरूरी है तो मिलना क्यों जरूरी है...? सच है कि न मिलने से ही पवित्रता का  एक खूबसूरत एहसास होता है मगर सिर्फ दूरी ही नहीं  पावन एहसास भी जरूरी होता है कोई मिले न मिले मगर एक उद्देश्य तो पूरा होता है...? जो धरती से आसमां के रिश्ते की पावनता को बयां करता  है इसीलिए शायद न मिलना भी जरूरी होता है जरूरी होता है...।। कविता गौतम...✍️

तेरे इश्क में

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आज फ़िर दिल में कोई ख़्वाब सज़ा है  बैरागी मन का तू ही तो ख़ुदा बना है  बरसों पहले तू था , तू ही सदियों बाद है  जब भी देखा तुझको आता कुछ ना कुछ याद है  वैसे तो कोई बात नहीं ऐसी मुझमें , तू प्यार करे तेरे इश्क में जहां भुलाए बैठे हैं, यह भी बात है मस्त  लहरों की ज्यो पनाह वहीं एक समन्दर का अपने अरमानों को तुझमें ही हर लम्हा बसा  रखा है © रेणु सिंह " राधे " ✍️ कोटा राजस्थान

धरती

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माँ शारदा के श्री चरणों  धन्य धरा यह भूमि पावन स्वर्ग से सुंदर अति मनभावन राम कृष्ण गौतम की धरती माँ गंगा नित श्रृंगार है करती धरा है मनोरम अति देख देव भी होते हर्षित अंबर से नित अमृत बरसे जन्म पाने को देव मुनि भी तरसे अनुपम छटा निराली है,  फैली चारों ओर हरियाली है अद्भुत दृश्य मनोरम है दिखती धरा स्वर्ग सम है क्या क्या सहती है धरती एक् सीख देती है हमको धरती सहनशक्ति और धैर्य का पाठ पढ़ाती है धरती त्याग समर्पण का एहसास कराती है धरती धन्यवाद सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प' गोंडा उत्तरप्रदेश

दुनिया के रंग भाग २५ - भविष्य की योजना

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    रात में खुले आसमान के नीचे शयन भला कब आसान होता है। जैसे जैसे रात्रि बढ रही थी, मौसम में ठंडक भी बढती जा रही थी। हालांकि जाड़े का मौसम अभी शुरू नहीं हुआ था। फिर भी इतना जरूर था कि खुले में सोना आसान नहीं था।    आज हम कितना भी विकास का दावा कर लें फिर भी एक सत्य है कि आज भी अनेकों निर्धन जाड़े की कंपकफाती ठंड में कांपते हुए फुटपाथ पर रात गुजार देते हैं। आज भी अनेकों पूस की रात के हल्कू मात्र अग्नि प्रज्वलित कर रात्रि व्यतीत कर देते हैं।    जो इंद्रियों को जीत ले, वही सन्यासी है ।पर सन्यास के नाम पर किसी आश्रम में निवास करते आये सन्यासियों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है। भक्तो के चंदे से प्राप्त धन से आश्रम की सारी मूलभूत सुविधाएं संचालित होती हैं।    सोहन को उम्मीद न थी कि वह रात में इस तरह घोड़े बेचकर सो पायेगा। कुछ घड़ी बाद उसे जगकर आग की व्यवस्था करनी होगी। पर ऐसा नहीं हुआ। आज उसे ठंड का आभास नहीं हो रहा था। मन ही मन जितेन्द्रिय होने का एक भ्रम होने लगा।    अभी भगवान सूर्य का आगमन नहीं हुआ था। सोहन की आंख खुलीं। उसने खुद को एक गर...

तेरे इश्क में

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बचपन से लेकर जवानी तक। तुम्हें सताने की मनमानी तक। श्रेष्ठता का भाव मेरे अंदर था। जलन का बहुत बड़ा समंदर था। बिन बात तुम्हे नीचा गिराता हुआ। हर बात पे तुम्हें रुलाता हुआ। जवानी की दहलीज पे मैं आ गया। और अपने रंग रूप पे इतरा गया। अहंकार के पर्दे से मैं देख न पाया। विधाता ने उकेरी थी तेरी जो काया। दिन पंख लगा के उड़ रहे थे। हम दोनों अपने रास्ते मुड़ रहे थे। न मैंने पुकारा न तूने बुलाया मुझे। फिर एक दिन वक्त ने आजमाया मुझे। तेरे विदाई की घड़ी सुहानी आ गई। लेने तुझे वो डोली अनजानी आ गई। देख तेरी वो डोली वो फूलों वाली। टीस सी उठी दिल में कुछ भूलों वाली। हृदय आज बहुत व्यथित था। सुन रहा था वो जो कभी न कथित था। जिंदगी सीख नई सिखला रही थी। तेरा रूप कुछ और मुझे दिखला रही थी। कह रही थी "ले मैं तुझको छोड़ चली। तेरी होकर तुझसे मुंह मोड़ चली। जब मैं रहती थी सदा पास तेरे। समझ न पाया था तू एहसास मेरे"। चेहरे पे ख़ुशी पर मन में बवंडर था। जाने कैसा विछोह का ये मंजर था। तेरी जुदाई के डर से मन कांप उठा । सब कुछ खोने का दर्द मैं भांप उठा। जो चली तेरी डोली तैयार होके। बेजान हो गया मैं तेरे...

तेरे इश्क में

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🌹🌹🌹🌹🌹 तेरे इश्क के दीवाने जो हम हुए , पता न चला कब हम खो गए, चलती नहीं थी जो इस दिल पर जोर किसी की, ऐसे दीवानगी में जो हम खो गए, करता रहता जो तुमसे दिल्लगी बातें हरदम, दिल खो चुकी थी तुम्हारी ख्यालों में हमदम,  तुम्हारे पाने के सपने में हमेशा देखता रहूं जो, दिल कह रहा था कही खो ना जाऊं बुलबुल, हल्की हल्की जो ठंड की मुस्कान चल रही थी, अपने दिल के दिए में अरमान जगा रही थी, फूलो पर जैसे भवरे अपना मधुर गीत गुनगुना रही थी, उसकी मीठी रस हमारे इश्क को मधुर कर रही थी, किया है इश्क मैने उससे बस इस जहां में वफा से, की दिल हो गया दीवाना तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान में, जिसे मिला नही था वो प्यार किसी गैरों का ,  दिल ने चाहा जिसे  तुम्हारी पहली मुलाकात में, कर दिया सनम तुमने भी ओरो की तरफ दिल से दगा बाजियां, नहीं सह पाया तुम्हारी लहरों वाली   दिल की बैवफायियां, अब कौन जाने कैसे दिल टूट कर बरस पड़े आंसुओ😢 की मोतियां, तेरे इश्क में चोट खाए दिल पर अब कैसे बजाऊं तालियां👏, जब जुदा न हो पाए तुम्हारी यादों के सिलसिले..., तब कह गए मनीष तुमसे... तुम्हारे ख्यालों पर तुझम...

बावरे मन की पुकार

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पंथ निहारत थक गई अंखियां, आए न सांवरिया, रस्ता देखत बरस बीत गए, न थकीं मोरी अंखियां, सखियां मोहे कहें बावरी, सुन उनकी बतियां मैं मुसकाऊं, मन में आस लिए बैठी हूं, इक दिन आएंगे मेरे सांवरिया, ग्रीष्म ऋतु भी बीत गई, सावन की ऋतु आई, तन मन भीगे भीगे चुनर, सखियां कजरी गाएं, पी के संग सब झूला झूलें, उनका मन हर्षा जाएं रिमझिम सावन मुझे रूलाए, मैं तड़प रही दिन रतिया, मन की अगन बुझे नहीं मोरी, मैं हो गई बावरिया, दिन बीते बीता चौमासा, शरद ऋतु फिर आई, मन सोचे अब आएगे प्रियतम, तन मन अंखियां शीतल होंगी, अब बांहों का हार मिलेगा, पर मन की बातें मन में रह गई, आस न फिर भी टूटी, द्वार खड़ी रह गई अकेली, अंखियां पंथ निहारें, सखियां मोहे ताना मारें, अब छोड़ आस पी आवन की, न आएंगे अब तेरे सांवरिया, क्यों हो रही है तू बावरिया, संखियो के ताने सुन मन में हूक उठे, पर आस न मन की छूटे, सखियां बोले भूल जा उनको, जो तोहे बिसरा बैठा, हो सकता है आ जाए वो, आस न तेरी टूटे, आया भी तो उसके संग, पद्मावती भी आएगी, तू नागमती बन जाएगी, तेरा प्रियतम तेरा न होगा, दूजे संग प्रीत बढ़ाएगा, तू बनी बावरी रस्ता देखे, सुध बुध सब कुछ भूल...

ओस की बून्द

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ओस की बून्द थी शीशे पर या ठंड में रात भर रोई थी चांदनी धूप से मिल विगलित होने को  प्रतीक्षा रत रही थी खिड़की पर  सूरज ने आकर गले जो लगाया बून्द को खुशी से सिमट  गई उसी  में सूरज ने भी देखा हर फूल और दूब  प्रतीक्षा में थे उसकी ,कुछ देर हुई आने में  कुहासे ने रोक लिया था उसको  वह बढा शीघ्रता से  अंक में अपने समेट लिया सभी को मोतियों सी बिखरी ओस की बून्दे बन गईं दिनकर का हार  और सभी समा गईं उसी में रेनु सिंह

तेरे इश्क में

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एक    नज़र     एक     झलक    और       पल     भर      का      दीदार     तेरा        बस      इतना         सा        ही            तो        है         इश्क        मेरा । अब तो हक ही हक है ....         ना  ही  कोई  शक  है .....         ना  तो  कोई  गिला  हैं.....        ना  ही  कोई  शिकवा हैं .....        अब  तो  इस  तरह  का .....        उनके और मेरे बीच का .....        इज़हार - ए - इश्क  हैं ......"                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻 " गुॅंजन कमल 💓...

जबसे उनकी सूरत

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जबसे उनकी सूरत ख्वाबों में सजने लगी है हर  रात  आंखों  ही आंखों में  कटने लगी है  दिल अपनी एक अलग दुनिया बसाने लगा है हर  सांस अब तो  उनके ही गीत गाने लगी है  हरिशंकर गोयल "हरि"

तेरे इश्क में

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ओ कान्हा तेरे इश्क में लागी ऐसी लगन, राधा बंधी प्रेम में मीरा हुई मगन, ओ कान्हा तेरे इश्क में लागी ऐसी लगन, गोपियां बनी दीवानी फिरीं वन-वन, ओ कान्हा तेरे इश्क का चढ़ा ऐसा रंग द्रोपदी बनी सखी, रुक्मणी का मोह लिया मन, ओ कान्हा तेरे इश्क की ऐसी छाई लगन, ब्रिज बना मनमोहन, महका वृंदावन, ओ कान्हा सारे जग में तूने ऐसी बंसी बजाई, दुनिया हुई मगन, ओ कान्हा तेरे इश्क में लागी ऐसी लगन, भक्ति में तेरी लीन हुई बन गई जोगन।। प्रिया धामा भिलाई, छत्तीसगढ़

स्पर्श

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स्पर्श  पा नवजात शिशु का, उर    स्पंदन    खिल   गयी। एहसास कर  के  पूर्णतः का, वो  ममतामयी   मूरत  बनी। गुनगुना   स्पर्श    लबों   का, नफ़स   सरगम    गा   उठी। तनमन रोमांचित  जब हुआ, वो  नवतरंगिणी शरमा उठी। आवारा  आशिक  भ्रमर ने, स्पर्श  कलियों   का  किया। प्रीत  की    थी  रीत  सच्ची, पाकर  मधु  मदमस्त  हुआ। स्पर्श  राघव  ने  किया जब, पत्थर अहिल्या जड़वंत थी। चेतन  हुई  वो पतित पावन, जो नारि ऋषि  कुलवंत थी। एहसास ही स्पर्श प्रिय का, ये घुट्टी  जिसको मिल गई। बिन  स्पर्श   मीरा  दीवानी, कान्हा  चरण  में समा गई। शीला द्विवेदी "अक्षरा" उत्तर प्रदेश "उरई"

तेरे इश्क में

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माँ शारदा के श्री चरणों मे नमन मैं खुद को ही भूला बैठा तेरे इश्क मे एक मजा है एक नशा है तेरे इश्क मे कभी सुबह की सुहानी किरण है इश्क कभी रातो की शीतल चांदनी है इश्क कभी जेठ की तपती लू है इश्क  कभी कार्तिक की कडकडाती ठंड है इश्क कभी सूरज की तेज तपिश है इश्क कभी पत्तों पर चमकती हुई शबनम है इश्क तेरे इश्क ने मुझे दीवाना बना दिया ना जाने मैं कहा खो गया  मुझे खुद से ही बेगाना बना दिया कुछ तो अलग है तेरे मोहब्बत का अंदाज तू शमां हो गई मुझे परवाना बना दिया मेरी जिन्दगी थी सूनी तेरे बिन तेरे आने से मुझे सारा जमाना मिल गया तेरे इश्क से मुझे एक नई जिन्दगी मिल  गई अब क्या कमी है मुझे,मुझे सारे जहाँ की खुशी मिल गई धन्यवाद सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प' गोंडा उत्तरप्रदेश

एक बूंद इश्क़ का

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 एक बूँद इश्क़ पिला दे मुझे मैं मरने से पहले एक बार जीना चाहता हूँ, सुना है जहर से ज्यादा खतरनाक है फिर भी जहाँ की सारी चीजों से ज्यादा पाक है, ज़माने भर के जाम पी लिए हैं मैंने तो पता चला कि इसमें नशा सबसे ज्यादा हैं बहकना है मुझको इसके नशे में इसलिए इसे भी एक बार पीना चाहता हूँ एक बूँद इश्क पिला दे मुझे मैं मरने से पहले एक बार जीना चाहता हूँ। इसके नशे में एक अलग ही दुनिया का अहसास होता है जिसको लग जाती है लत इसकी जागता है रातों को फिर वो कहाँ सोता है, उठा कर पढ़ लो किताबें ज़माने भर की ये अंदाज है इसका जिसने भी पिया वो बुरी तरह बर्बाद हुआ है, रहा नहीं जाता किस्से सुन कर इसके कारनामों के, पीकर इसे मैं भी बर्बाद होना चाहता हूँ, एक बूँद इश्क पिला दे मुझे मैं मरने से पहले एक बार जीना चाहता हूँ। न दुकानों पर मिलता है न मयखानों पर मिलता है, बहुत ढूँढा मैंने पाया कि ये सिर्फ अरमानों पर मिलता है, चैन खो गया है इसकी चाहत में बेचैनी सी छायी है, सुकून चाहता हूँ मुझे इसकी आगोश में खोना चाहता हूँ, एक बूँद इश्क पिला दे मुझे मैं मरने से पहले एक बार जीना चाहता हूँ ,,,...

तेरे इश्क में

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एक दिन ढलती दोपहरी में अपनी सहेलियों के साथ खेलने निकली गुड़िया अचानक,अपने पड़ोस की चाची को उसने किसी से बात करते हुए देखा। जो एक घर की देहरी पर बैठी हुई थी।                                     शायद चलते-चलते थक गई थी वो शायद किसी को ढूंढते-ढूंढते बौरा सी गई थी वह। बेहद मैले कुचले, काले हो चुके कपड़ों में लिपटी सामने से अधखुला वक्षस्थल दिखाई दे रहा था।                                                   हां अब उसे किसी चीज की सुध कहां थी अब शर्म, हया, लाज उसके गहने नहीं रह गए थे।  जुल्फें बिखरे हुए, न जाने कितने दिन हुए होंगे उसे अपने बाल सवारें हुए।आईने में चेहरा देखे... या कुछ महीने न जाने........... चाची जी ने कहा सामने दिख रहा है।  बटन क्यों नहीं लगाती।  तो उसने कहा बटन टूट गया है ना।  उसे सेफ्टी पिन ला कर दिया चाची जी ने।  स्त्री ...

तेरे इश्क़ मे

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तेरे इश्क़ मे हम क्या से क्या हो गए अच्छे खासे आबाद थे हम  तुम्हारे इश्क मे हम बर्बाद हो गए ना रहा होश खुद का  तेरे फिक्र मे हम आँखो मे डले काजल से घुल गए तेरे इश्क़ मे ऐसा पाला रोग  ना दवा लगी ना दुआ लगी  इश्क रोग से हम बेहाल हो गए तुझे देखने को ये निगाहें मर मिटने लगी तेरी बाते पहले रूह को सूकून दिया करती थी  अब मुझे ये बेबुनियाद और बेतुकी लगने लगी तेरे इश्क़ मे तेरा जिक्र करते हुए  हम जग से बेगाने होने लगे तेरे इश्क़ मे पड़कर तुम्हें इस कदर चाहने लगे तेरे इश्क़ मे फना होकर  सरेआम लोग हमे पागल दिवाना कहने लगे  शिल्पा मोदी✍️✍️ दैनिक प्रतियोगिता हेतु

तेरे इश्क़ में

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है तेरे इश्क़ में पागल मेरी नजरें,, बस तुझे ही ढूंढती रह जाती  है। जाने क्या कहना चाहती है?,,लेकिन कुछ नही कह पाती है। -------------------------------- चाहती है कि बांट ले खुशियां तुमसे,,और ले ले तुम्हारे सारे गम। चाहती है कि रौनकें हो तेरी निगाहों में,,और न हो एक छोटा सा भी गम। है तेरे इश्क़ में पागल मेरी नजरें...... ---------------------------------- कभी किसी महफ़िल में जिक्र तेरा हो,तो ये शर्म से यूं ही झुक जाती है कभी बेशर्म हो ढूंढती तुमको ,,देखती ही तुम्हे ये बदल जाती है है तेरे इश्क़ में पागल ये मेरी नजरें...... ---------------------------------- देखती राह तुम्हारी कि ये तन्हाई में तुम आओगे कभी। और कर कर के इंतजार तुम्हारा  ये बहुत थक जाती है। है तेरे इश्क़ में पागल ये मेरी नजरें...... ---------------------------------- रातभर गिनती है चाँद सितारे और पूछती है पता तुम्हारा कहाँ हो तुम। कही कोई हमनवां तो मिल न गया है तुमको बस यही सोच के घबराती है। है तेरे इश्क़ में पागल ये मेरी नजरें........ ---------------------------------- इंदु विवेक उदैनियाँ(स्वरचित)

तेरे इश्क़ में

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हिमालय की तल हटियो में एक छोटा सा गांव, प्राकृतिक सुंदरता से जितना भरपूर उतने ही सीधे साधे व परंपराओं से बंधे लोग ,जो सतत एक दूसरे के काम तो आते हैं।पर रीति रिवाज टूटने के नाम पर बौखला जाते हैं। इसी गांव में रहता था एक नेक सुंदर और शक्तिशाली युवक जो जितना नेक व मददगार था ।उतना ही सजीला। हर समय दूसरों की सहायता को तत्पर किसी के काम आना अपना कर्तव्य समझता था । इसी त्याग की वजह से हमेशा चर्चित रहता और सभी उसका आदर करते थे ।अपने काम के अनुरूप ही नाम था सुवाला । इतने आत्मीय स्वभाव का कि सभी उसके स्वभाव के कारण उसके करीब रहना चाहते ।अपने इन्हीं खूबियों के कारण वह अपने गांव के आसपास के गांव में भी प्रसिद्ध था । लोगों की सहायता करना वह अपना कर्तव्य समझता और जहां भी जरूरत होती वह भागा भागा पहुंचाता। अपने पारंपरिक पोशाक के साथ वह हमेशा एक छुरी अपने साथ रखता था ।जिसे वह अपने से कभी अलग नहीं करता था। हमेशा अपनी कमर में खोंस कर रखता था । अपने से कभी अलग नहीं करने के कारण आसपास मान्यता थी ,कि उसकी छूरी में कोई चमत्कार है और उस छुरी को कोई देवी आशीर्वाद प्राप्त है। और उसके साहसी कारनामों के पीछे उस छ...

तेरे इश्क़ में

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सुनो ना आज एक बात करती हूँ तुमसे आज अपने इश्क का इजहार  करती हूँ तुमसे जीत ही लिया आज तुमने मुझे  प्यार से हार अपनी  तेरे इश्क़ में स्वीकार करती हूँ चाहे होती थी बातें या फिर होती थीं मुलाकातें नही किया था माफ़ हमने कभी तेरी गलती को आज मैं सभी के सामने ये स्वीकार करती हूँ तेरे इश्क़ में तेरी हर गलती को अब माफ़ करती हूँ कदम जो बढ़ा लिए वो पीछे नही करेंगे दूर हूँ चाहे लेकिन साथ तेरे ही जिएँगे आज अपनी हर तड़प का इकरार करती हूँ तेरे इश्क़ में हर वादा चलो मैं आज करती हूँ बहुत सी बातें थीं मन में और बहुत से थे सवाल भी दिया तुमने हर सवाल का जवाब  और मेरा रखा ख्याल भी आज मैं भी दिल का तेरे ख्याल रखती हूँ तेरे इश्क़ में  आज खुद को निसार करती हूँ। जानती हूँ ये भी नही किस्मत में साथ तेरा ये भी मानती हूँ मैं नही किस्मत में पाना तुझे मैं तुझे तेरी मुहोब्बत के सँग ही स्वीकार करती हूँ तेरे इश्क़ में खुद को हर बार मैं बर्बाद करती हूँ ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

तेरे इश्क में

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तेरे इश्क ने इस कदर  मुझको मजबूर किया  दुनियां का होश नहीं  ख़ुद से दूर किया  निकम्मा बना तेरी नशीली  आंखों का नशा हुआ लगी मृगतृष्णा भटकता  फिरू यहां वहां  गुलाबी होठों पर खिलखिलाती  मदमस्त हंसी का सुरूर  जीने नहीं देता सुकून से  जान भी कैसे दे दूं  तेरे इश्क में दीवानों सा  मेरा हाल हुआ  रुसवाईयों के डर से तेरी गलियों में जाना छोड़ दिया  तेरे दिए जख्मों का दर्द  सहना सीख लिया बुझा दी उम्मीदों की रोशनी  अंधेरों में जीना सीख लिया  मैं क्या था क्या हो गया   तेरे इश्क में बेवफ़ा मैं फना हो गया तेरे इश्क में  नेहा धामा " विजेता "  बागपत , उत्तर प्रदेश

"कलयुगी मानव"

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मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू।  किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू।  मानव बन कर आया इस धरती पर, पर भगवान बनना चाहे तू। कहने को तो हैं तू धरती माँ का रक्षक, पर भक्षक बनता जाएं तू। मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू।  किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू।  जब जानता है जीवन की हर सच्चाई तू , तो क्यू अनजान बनना चाहें तू।  जान कर भी अनजान बने ये नादानी , क्यू करना चाहें तू।  मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू।  किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू।  जब हार गई ये मानवता आगे तेरे, अब मानव कहा कहला पाएं तू।  मानव को मानव ना समझे, भक्षक बनता जाएं तू।  मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू।  किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू।  मानवता की राह को छोड़, ये किस राह पर बढ़ता जाएं तू।  छोड़ दे इस दलदल भरी राह को,बाद में कहीं पछता भी ना पाएं तू। मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू।  किस बात का हैं ये...

तेरे इश्क़ में

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लम्हा लम्हा बहक रहे कदम मेरे, तेरे इश्क़ में लम्हा लम्हा खो रहे हम, तेरे इश्क में, खो दी सुधबुध, ख्याल ही नहीं अब दुनिया की रस्मो रिवाज़ो का, तेरे इश्क़ में हम खो रहे अपने ही अक्स को, कैसी खुमारी है तेरी बातों में, लम्हा लम्हा भूल जाये हम खुद को, बस तेरे इश्क़ में ये बारिश की फुहार ये नदिया की धार.. और भी सुहानी सी लगने लगी है, मखमली बातें तेरी, मुझको बेकरार सी करने लगी है,  तेरे इश्क़ भरी बातों में, रूह मेरी खोने सी लगी है ये धड़कने मेरी अब तेरी यादों में धड़कने लगी है, जुगनूओं से भरी रातों में याद तुम्हारी सताने लगी है ये तेरी बातें मीठी, तेरी तरफ खींचने लगी है.... तेरे इश्क में अब मेरी सांसे घुलने लगी है निकेता पाहुजा

तेरे इश्क में

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बैठकर तेरे सुर्खरू ये दिल,  तेरी कहानी लिखना चाहता है।  तेरी दिलकश अदाओं को देख,  तेरी धड़कन बन जाना चाहता है।  जहां के एहसासे-ख्वाब में ही सही,  तेरी बाहों में सिमट जाना चाहता है।  ज़ज्बात की तिश्नगी ने ऐसा मन मोहा,  नेह की आग में पिघल जाना चाहता है।  तेरी मुस्कुराहट में दिखी ऐसी खुदाई,  तन्हाई में भी सुकून पा लेना चाहता है।  तूने मोहब्बत का अमृत पिला दिया ऐसे,  तेरी परछाई को भी अपना बनाना चाहता है।  लगे चिलचिलाती धूप भी मीठी शहद सी,  तेरी आँखों में ये दिल खुद को पाना चाहता है।  आरती झा (स्वरचित व मौलिक)  दिल्ली  सर्वाधिकार सुरक्षित © ®

जिंदगी के दो रंग

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आज मैंने जिंदगी के दो रंग देखे कही विवाह की उमंग कही मौत के गम देखे। बज रही थी शहनाइयां एक तरफ विवाह की एक तरफ हृदय विदारक चीखों के स्वर देखे। आज मैंने......... लाल जोड़े में सजी हुई दुल्हन देखी। वही अर्थी पर एक देह सफेद कफ़न में देखी। आज मैंने..... एक तरफ पांडाल सजा था खुशियों का एक तरफ गम की कनात लगी थी। भोज यहाँ भी हो रहा था, भोज वहाँ भी हो रहा था। यहाँ मिठाइयां खुशियों की बँट रही थी वहाँ मिठाइयों संग आँखे रो रही थी। आज मैंने जिंदगी.... एक ही दिन में सुख दुःख का रैले  देखे आज मैंने जिंदगी के दो रंग देखे। गरिमा राकेश गौत्तम खेड़ली चेचट कोटा राजस्थान

थोड़ा सा आसमान

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मेरे हिस्से का मुझे दे दो आसमान।  मैं बनाऊँगी एक नया जहाँन।।  सपने सजीले रंग रंगीले । ओढ़ूगी एक नया वितान।।  रोक टोक नहीं कोई।  छूलूं अपना आसमान।।  धरती का बिछौना आसमाँ की चादर । घर मेरा सारा जहाँ।।  स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉक्टर आशा श्रीवास्तव जबलपुर

तेरे इश्क में

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तेरे इश्क़ में में दीवानी हुई  इश्क में हुई दीवानी इश्क  तुमसे हुआ तुम ओर एतबार  हुआ तुमको जब देखा पहली बार तुम अच्छे लगे तुमको देखकर दिल धड़क उठा दिलने दी दस्तक  की धीरे धीरे इश्क तुमसे हुआ इश्क धीरे धीरे परवान चढ़ने लगा  तुमसे इश्क हो ही गया तुम पर  एतबार हो ही गया इश्क तुमसे हो  ही गया तेरे इश्क़ में आखिर दिल खो ही गया तेरे इश्क में

तेरे इश्क़ में

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"किताब सी मैं और कहानी से तुम"बन गए, चूम के वरक के लफ़्जों को इश्क की दास्तां बन गए।  बहती हुई नदी का पानी में और तुम समंदर बन गए, कल्पनाओं से भरे मेरे मन में तुम अनन्त से अम्बर बन गए। मासूम से तेरे दिल की मैं हृदय स्पंदन बन गई, समा के तेरी साँसों में मैं प्यार भरी सरगम बन गई। बनाया है तुम्हे शिव सा और मैं तुम्हारी शक्ति बन गई, तुम बने आस्था से दीपक मैं भक्ति की ज्योति बन गई। पाकर तुम्हारा इश्क का तोहफा मेरा मन मयूर हो उठा, इस जहां हो या उस जहां हो खुश किस्मत मैं हो गयी छोड़ कर सब रिश्ते-नाते मैं तुम्हारी हो गई, बसा कर मन में मोहिनी मूरत मीरा श्याम की दीवानी हो गई। शीला द्विवेदी "अक्षरा"

तेरे इश्क़ मे

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💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗 अनजान था दिल प्यार की हर अहसास से  मैं भी तेरे मोहब्बत से अब तक बेखबर रही कैसे बयां करू ये हाल-ए-दिल अपना इतना ही जान लो की मैं काट रही थीं ज़िन्दगी तेरे इश्क़ मे सनम मैं खुलकर जिना सीख गयीं....!! पहले भी ये होठ हमारे मुस्कुराये है ज़िन्दगी मे पर  उस मुस्कुराहट मे कहीं मायूसी भी शामिल रही अब लगता है जैसे एक अदा मिली है इन होठों को तेरे संग प्यार मे खुलकर मुस्कुराने की, तो क्यों न कहु तेरे इश्क़ मे सनम मैं खुलकर हँसना सीख गयीं....!! अब अहसास हुआ क्या गुज़रा होगा दिल पे हमदम जो इतने दिनों से तुम्हे प्यार का इनकार करती रही जाने कैसे सून न पायी अपने ही दिल के आवाज़ को जो धड़क कर तेरे मोहब्बत का धुन सुनाता रहा की सून लो नैना किसीका इश्क़ तुझे है पुकार रही.....!! जो इन हँसी चहरे पर फूलो सी निखार आया है हमारे वो सनम तेरे मोहब्बत का असर है और कुछ नहीं क्यों न कहु हमदम मेरी पतझड़ सी ज़िन्दगी मे तुम मोहब्बत की हँसी बहार बनके आए हो जो बरसो से तेरे इश्क़ के बिना ये गुलशन विरान है रही....!! अब ज़िन्दगी रोशन सी लगती है दिल मे कोई गम नहीं भर दो सनम प्यार से...

दुनिया के रंग भाग २४ - यथार्थ सन्यास

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  ठाकुर साहब और जानकी देवी अब बड़ी बहू संध्या के साथ रहने लगे। दोनों को ही एक दूसरे से लाभ हो रहा था। जहाँ बुजुर्ग दंपति को बहू से सहयोग मिल रहा था। वहीं संध्या को भी जीवन में पहली बार सहयोग मिला। अन्यथा भागमभाग की जिंदगी में वह खुद जीना भी भूल चुकी थी। प्रवेश भी दादा दादी के साथ बहुत खुश था। ठाकुर साहब नाती को स्कूल छोड़ और ले आते। बाजार के भी छोटे मोटे काम खुद कर देते। जब शाम को संध्या ड्यूटी से वापस आती, उसे अक्सर घर में शाम के भोजन की तैयारी पूरी मिलती। छोटे छोटे सहयोग से सभी का जीवन सुखी बन चुका था। वैसे संध्या बहुत समय से फौज में नौकरी करती आयी थी, इस समय भी पुलिस विभाग में नौकरी करती थी, फिर भी वह कोशिश करती कि घर पर अपना पहनावा एक बहू जैसा रखे। हालांकि ठाकुर साहब और जानकी देवी ने उसे मनमुताबिक कपड़े पहनने की आजादी दे रखी थी। पर एक सत्य यह भी है कि आजादी का भी एक सार्थक गणित होता है। जरूरत से अधिक आजादी चाहने बाले अक्सर कठिनाइयों में घिर जाते हैं। जीवन के इस मोड़ पर संध्या को जो प्रेम, और सुख मिला है, उसे झूठी आजादी के लिये दाव पर लगाना कभी भी समझदारी नहीं लगती।   ...

मुक्ति कहां'

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' विचार ही जब शुद्ध नहीं  तो आत्म की मुक्ति कहां.....? ह्रदय जब पावन ही नहीं तो परमात्मा की प्राप्ति कहां.....? जीवन ही बन जाए उलझन तो जीने का उल्लास कहां.....? दिखावे के इस दौर में भक्ति का सही अर्थ कहां.....? तर्क और वितर्क में  ईश्वर में आस्था कहां.....? कलयुग के इस दौर में अनमोल विचारों का मोल कहां......? अच्छे संस्कारों के अभाव में कुसंगती से अलगाव कहां.....? लालच से जब घिरे हों हम तो जीवन मरण से मुक्ति कहां.....? कविता गौतम...✍️

फरेबी दुनिया

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हमने दुनिया बहुत फरेबी देखी,  सांप और नेवले की दोस्ती देखी। जो कल तक रोज गली को भी सलाम ठोकते थे हमारी ,सामनेआकर भी ना पहचानने की नीयत देखी। वक्त कब नजर बदल ले खुद अपनी नजर से,  खुद अपनी बेटी पर गंदी नजर फिसलती देखी।  साजिशे कत्ल करते देखा हमने खास अपनों को , दौलत की खातिर साजिशें रचती देखी। खास से आम होते देर नहीं लगती ,'सीमा',  वक्त जरूरत के हिसाब से इंसानियत बदलती देखी। स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा

मेरे रहबर, मेरे मालिक , मुझको तुझ पर यकीं है

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मेरे रहबर मेरे मालिक, मुझको तुझ पर यकीन है। मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।। तेरी तकरीर तेरी तहरीक , इबारत है जीने की । तेरी तालीम की तामिल ,हर महफिल में करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक------------।। कोई दूजा नहीं है और, वतन में तु ही मकबूल है। तेरी जो भी नसीहत है, मुझको दिल से कबूल है।। मुस्तहिबी करूँ तेरी, तुझको तरजीह देता हूँ। मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक------------।। देखता हूँ हरपल मैं, हकीकी तेरी शिरकत में । मुझको राह दिखाई है, तुमने सदा गफ़लत में।। रिज्क तेरी जमीं की है, इबादत तेरी करता हूँ। मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक------------।। एक अहसान यह कर दे,मुझको यह खयाल भी दे दे। तेरी तहजीब ना भूलूँ , ऐसा एक ख्वाब भी दे दे ।। मांगू सबकी खुशियां मैं, दिल से फरियाद करता हूँ। मुलाजिम हूँ फकत तेरा,तेरी खिदमत करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक----------।। रचनाकार एवं लेखक-  गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद  जिला- बारां(राजस्थान)