तेरे इश्क में



तेरे इश्क ने इस कदर 
मुझको मजबूर किया 
दुनियां का होश नहीं 
ख़ुद से दूर किया 
निकम्मा बना तेरी नशीली
 आंखों का नशा हुआ
लगी मृगतृष्णा भटकता
 फिरू यहां वहां 
गुलाबी होठों पर खिलखिलाती 
मदमस्त हंसी का सुरूर 
जीने नहीं देता सुकून से 
जान भी कैसे दे दूं 
तेरे इश्क में दीवानों सा 
मेरा हाल हुआ 
रुसवाईयों के डर से तेरी
गलियों में जाना छोड़ दिया 
तेरे दिए जख्मों का दर्द 
सहना सीख लिया
बुझा दी उम्मीदों की रोशनी 
अंधेरों में जीना सीख लिया 
मैं क्या था क्या हो गया 
 तेरे इश्क में
बेवफ़ा मैं फना हो गया
तेरे इश्क में 
नेहा धामा " विजेता " 
बागपत , उत्तर प्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४