तेरे इश्क़ में
है तेरे इश्क़ में पागल मेरी नजरें,, बस तुझे ही ढूंढती रह जाती है।
जाने क्या कहना चाहती है?,,लेकिन कुछ नही कह पाती है।
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चाहती है कि बांट ले खुशियां तुमसे,,और ले ले तुम्हारे सारे गम।
चाहती है कि रौनकें हो तेरी निगाहों में,,और न हो एक छोटा सा भी गम।
है तेरे इश्क़ में पागल मेरी नजरें......
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कभी किसी महफ़िल में जिक्र तेरा हो,तो ये शर्म से यूं ही झुक जाती है
कभी बेशर्म हो ढूंढती तुमको ,,देखती ही तुम्हे ये बदल जाती है
है तेरे इश्क़ में पागल ये मेरी नजरें......
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देखती राह तुम्हारी कि ये तन्हाई में तुम आओगे कभी।
और कर कर के इंतजार तुम्हारा ये बहुत थक जाती है।
है तेरे इश्क़ में पागल ये मेरी नजरें......
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रातभर गिनती है चाँद सितारे और पूछती है पता तुम्हारा कहाँ हो तुम।
कही कोई हमनवां तो मिल न गया है तुमको बस यही सोच के घबराती है।
है तेरे इश्क़ में पागल ये मेरी नजरें........
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इंदु विवेक उदैनियाँ(स्वरचित)
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