धराम्बर


धरती का अंबर से 
मिलन जब होता हैं 
अधरों का अधरों से 
चुम्बन तब होता हैं 
बरसता हैं धरती के जिस्म पर 
अंबर का प्यार  बूंद बन कर 
 खिल जाता हैं धरा का  
अंग अंग शर्माकर  
तड़पती हैं दोनों की रूह 
एक दूजे की बाहों में आने को
फूल और भंवरे की तरह 
एक हो जाने को 
वसुंधरा ने चाहा हैं 
इस कदर नभ को 
भूल गई  हैं वो एक 
पल के लिये इस जग को 
तमन्ना हैं कि बीछ जाये 
उसकी राह में फूल बनकर 
हसरत हैं कि लहराये 
उसके माथे की लट बनकर
ना जुदा करे कोई 
उनको प्यार की राहों में  
रहे उम्र भर एक  
दूजे की पनाहों में  
रूह का रूह से दिल का 
दिल से मिलना हो जाये 
ना चाहत रहेगी कोई 
दिल की प्यास जो बुझ जाये 
फिर ना कोई कसक ना
तड़प रहेगी इस दिल में 
फिर चाहें मौत भी 
क्यों ना आ जायें 

 नेहा धामा " विजेता "
 बागपत , उत्तर प्रदेश

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