स्पर्श
स्पर्श पा नवजात शिशु का,
उर स्पंदन खिल गयी।
एहसास कर के पूर्णतः का,
वो ममतामयी मूरत बनी।
गुनगुना स्पर्श लबों का,
नफ़स सरगम गा उठी।
तनमन रोमांचित जब हुआ,
वो नवतरंगिणी शरमा उठी।
आवारा आशिक भ्रमर ने,
स्पर्श कलियों का किया।
प्रीत की थी रीत सच्ची,
पाकर मधु मदमस्त हुआ।
स्पर्श राघव ने किया जब,
पत्थर अहिल्या जड़वंत थी।
चेतन हुई वो पतित पावन,
जो नारि ऋषि कुलवंत थी।
एहसास ही स्पर्श प्रिय का,
ये घुट्टी जिसको मिल गई।
बिन स्पर्श मीरा दीवानी,
कान्हा चरण में समा गई।
शीला द्विवेदी "अक्षरा"
उत्तर प्रदेश "उरई"
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