मेरे रहबर, मेरे मालिक , मुझको तुझ पर यकीं है


मेरे रहबर मेरे मालिक, मुझको तुझ पर यकीन है।
मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।।
तेरी तकरीर तेरी तहरीक , इबारत है जीने की ।
तेरी तालीम की तामिल ,हर महफिल में करता हूँ।।
मेरे रहबर मेरे मालिक------------।।



कोई दूजा नहीं है और, वतन में तु ही मकबूल है।
तेरी जो भी नसीहत है, मुझको दिल से कबूल है।।
मुस्तहिबी करूँ तेरी, तुझको तरजीह देता हूँ।
मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।।
मेरे रहबर मेरे मालिक------------।।



देखता हूँ हरपल मैं, हकीकी तेरी शिरकत में ।
मुझको राह दिखाई है, तुमने सदा गफ़लत में।।
रिज्क तेरी जमीं की है, इबादत तेरी करता हूँ।
मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।।
मेरे रहबर मेरे मालिक------------।।



एक अहसान यह कर दे,मुझको यह खयाल भी दे दे।
तेरी तहजीब ना भूलूँ , ऐसा एक ख्वाब भी दे दे ।।
मांगू सबकी खुशियां मैं, दिल से फरियाद करता हूँ।
मुलाजिम हूँ फकत तेरा,तेरी खिदमत करता हूँ।।
मेरे रहबर मेरे मालिक----------।।



रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
 जिला- बारां(राजस्थान)

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