"कलयुगी मानव"



मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू। 
किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू। 

मानव बन कर आया इस धरती पर, पर भगवान बनना चाहे तू।
कहने को तो हैं तू धरती माँ का रक्षक, पर भक्षक बनता जाएं तू।

मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू। 
किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू। 

जब जानता है जीवन की हर सच्चाई तू , तो क्यू अनजान बनना चाहें तू। 
जान कर भी अनजान बने ये नादानी , क्यू करना चाहें तू। 

मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू। 
किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू। 

जब हार गई ये मानवता आगे तेरे, अब मानव कहा कहला पाएं तू। 
मानव को मानव ना समझे, भक्षक बनता जाएं तू। 

मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू। 
किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू। 

मानवता की राह को छोड़, ये किस राह पर बढ़ता जाएं तू। 
छोड़ दे इस दलदल भरी राह को,बाद में कहीं पछता भी ना पाएं तू।

मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू। 
किस बात का हैं ये अभिमान तूझे, जो सर्वनाश करता जाएं तू। 

छोड़ दे माया माया करना, नेकी का धन कुछ भी ना कमाए तू। 
कर ले कुछ नेकी के काम, इससे ही जीवन के भव सागर से पार पाएं तू। 

मिट्टी का है पुतला तू, तभी अभिमान करता जाएं तू। 
किस बात का हैं ये अभिमान तूझे जो सर्वनाश करता जाएं तू। 

अभिमान करता जाएं तू।
सर्वनाश करता जाएं तू।
- नीति अनेजा पसरिचा

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