धरती

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शांत स्वभाव के देवी की हम सब है संतान 
क्यों न हम सब दिल से नमन करे पृथ्वी की 
जो न कोई लोभ न कोई स्वार्थ रखती है दिल मे 
सबको एक सम्मान प्रेम करती है माँ धरती.....!

पशु, पंछी,ये पहाड़, पेड़ पौधा हो या इंसान
या बहती धारा हो गाँगा की या बहती लहरे समंदर की 
हम सब पलते है जो इनकी ममता की आँचल मे
सारी सृष्टि की ही माँ है ये पवित्र धरती....!

समझना मुश्किल है की कितना ये दर्द सहती है
फिर भी होठों से उफ्फ तक न करती है माँ धरती
हर कदम पर जो हमें प्रेणा देजाती है ज़िन्दगी मे
सच मे सहनशीलता की देवी है माँ धरती.....!

कभी तपती धुप से जलती है पतझड़ मे
कभी ज्यादा बारिश से ढह जाया करती है धरती
कभी भीग जाती है सर्दियों मे ओस की बूंदो से
जो लगता है मोतियों से सजी है धरती....!!

कहीं पर पर्वत सजा है स्वेत पत्थरो से
तो कभी नीले धाराएं लिए पवित्र गाँगा है बहती
कहीं ओढ़ ली है चादर रंग बसन्ती लहराते खेतो ने
तो कहीं पेड़ पौधो से हरियाली मे रंगी है धरती....!!

कभी लगता है ये कुछ कहती है हमसे
शायद अपनी दिल का दर्द बयां है ये करती
जाने कितनो ने किये है टुकड़े इनके स्वार्थ मे अपने 
तभी तो इतने दरारे पढ़ जाते है सीने पे इनकी....!!

जो संसार माता है उनसे ही क्यों अनजान है
ना होती धरा पैरो तले तो क्या कोई रहता है ब्रम्हाण मे
दुनिया जीतेजी भी रिश्तो को भूल जाए पर
अपने बच्चों के शव को भी गोद मे समेट लेती है धरती...!!

हर भेदभाव से दूर रहना एकता की प्रतिक है धरती
खुद दर्द सह कर अपनों मे खुशियाँ बाँटना सिखाती है धरती
काँटों के बिच हर कर भी जो गुलाब गुलशन महकाती है
वैसे ही दिल मे जख्म लिए होठों से मुस्कुराती है धरती..!!

बदलते वक़्त के साथ ज़िन्दगी को हर रंग मे ढलते जाना
धुप मे जलना,छाव मे निखरना और बारिश मे पिघलती है धरती
जिसने संवारा है मिट्टी के घरौंदे वाले किसानो के ज़िन्दगी
वो ममता की मुरत सारी सृष्टि की जननी है माँ धरती...!!
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नैना... ✍️✍️

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