तेरे इश्क़ में



"किताब सी मैं और कहानी से तुम"बन गए,
चूम के वरक के लफ़्जों को इश्क की दास्तां बन गए। 

बहती हुई नदी का पानी में और तुम समंदर बन गए,
कल्पनाओं से भरे मेरे मन में तुम अनन्त से अम्बर बन गए।

मासूम से तेरे दिल की मैं हृदय स्पंदन बन गई,
समा के तेरी साँसों में मैं प्यार भरी सरगम बन गई।

बनाया है तुम्हे शिव सा और मैं तुम्हारी शक्ति बन गई,
तुम बने आस्था से दीपक मैं भक्ति की ज्योति बन गई।

पाकर तुम्हारा इश्क का तोहफा मेरा मन मयूर हो उठा,
इस जहां हो या उस जहां हो खुश किस्मत मैं हो गयी

छोड़ कर सब रिश्ते-नाते मैं तुम्हारी हो गई,
बसा कर मन में मोहिनी मूरत मीरा श्याम की दीवानी हो गई।

शीला द्विवेदी "अक्षरा"

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४