तेरे इश्क में

एक दिन ढलती दोपहरी में अपनी सहेलियों के साथ खेलने निकली गुड़िया

अचानक,अपने पड़ोस की चाची को उसने किसी से बात करते हुए देखा। जो एक घर की देहरी पर बैठी हुई थी। 

                                   शायद चलते-चलते थक गई थी वो शायद किसी को ढूंढते-ढूंढते बौरा सी गई थी वह।

बेहद मैले कुचले, काले हो चुके कपड़ों में लिपटी सामने से अधखुला वक्षस्थल दिखाई दे रहा था। 
                                                 हां अब उसे किसी चीज की सुध कहां थी अब शर्म, हया, लाज उसके गहने नहीं रह गए थे। 
जुल्फें बिखरे हुए, न जाने कितने दिन हुए होंगे उसे अपने बाल सवारें हुए।आईने में चेहरा देखे...
या कुछ महीने न जाने...........

चाची जी ने कहा सामने दिख रहा है। 
बटन क्यों नहीं लगाती। 
तो उसने कहा बटन टूट गया है ना। 

उसे सेफ्टी पिन ला कर दिया चाची जी ने। 
स्त्री की परवाह, स्त्री का सम्मान, लिहाज करना जो सिखाया गया है बचपन से एक स्त्री को। 

आगे चाची जी ने पूछा किसके साथ आई है यहां तक कहां की रहने वाली हैं। 
उसने कहा रमन के साथ वह ट्रक ड्राइवरी करता है उसने कहा चल भाग चलते हैं किसी दूसरे शहर में जाकर मैं तुझ से शादी कर लूंगा। उसके साथ भाग कर आई हूं। 

अब कहां है वह चाची जी ने उससे पूछा। 
उस पगली ने कहा पता नहीं.... 
हां पगली जो प्यार कर बैठी एक धोखेबाज इंसान से, जिसने उससे उसका घर बार लूट लिया और एक लड़की से जुड़े खूबसूरत सपनों को भी। 
सारी जिंदगी अब वह अपने उस प्यार को ढूंढती रहेगी जो शायद उसका कभी था ही नहीं। 

उसकी दुर्दशा पर उस गुड़िया का मन सहम गया उसे प्यार में खामियाजा का जीता जागता उदाहरण दिख गया था। 
उस पगली ने भी एक सबक पढ़ा दिया कि ऐसे दगाबाजों के ऊपर कभी विश्वास नहीं करना। जो ना खुद साथ देते हैं और अपनों का साथ भी छुड़वा देते हैं हमेशा के लिए 

तेरे इश्क में
हां प्रीत में पागल हुई मैं.... 
मुझे अब कहां चैन सुध करार 
अधूरा रह गया जो था मेरा पहला प्यार।

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