चुनाव
लो चुनाव का समय आया छीटा कशी व्यंग्य का दौर। * सबको अपनी कुर्सी का मोह चुनाव प्रचार के नये नये तरीके। * प्रलोभनो के आकर्षक रूप सज रहा तम्बू सज रही गाड़ी। * होंगें सवार, पावर का है कमाल जनता को गुमराह करेगें। * चिकनी चुपड़ी बातों में लपेटकर जनता की आंखो में धूल झोंकेगे। * वादों की लड़लड़ी लगाकर जनता को डुबकी अब देगें। * देखो आया चुनावों का दौर नेताओं की बातों का दौर। * कितने वादे,कितने नारे सबकी सब है खोखले पिटारे। * प्रचार-प्रसार के रंग निराले टीवी चैनलों पर धूम मचाते। * सबकी की बखिया खूब उधेड़ते हरेक पार्टी दूसरे पर कीचड़ उछालती। * नेताओं की सभाओं का दौर गरीब जनता की फिक्र का दौर। * सब पार्टी के लोलुप हैं धन-जन-उपहारों का वादा । * एक दूसरे की पोल खोलते कितना भाषणबाजी करते। * काश जनता को ये समझते? अब जागरूक है जनता । ----अनिता शर्मा झाँसी -----मौलिक रचना