Posts

Showing posts from October, 2021

चुनाव

Image
लो चुनाव का समय आया छीटा कशी व्यंग्य का दौर। * सबको अपनी कुर्सी का मोह चुनाव प्रचार के नये नये तरीके। * प्रलोभनो के आकर्षक रूप सज रहा तम्बू सज रही गाड़ी। * होंगें सवार, पावर का है कमाल जनता को गुमराह करेगें। * चिकनी चुपड़ी बातों में लपेटकर जनता की आंखो में धूल झोंकेगे। * वादों की लड़लड़ी लगाकर जनता को डुबकी अब देगें। * देखो आया चुनावों का दौर नेताओं की बातों का दौर। * कितने वादे,कितने नारे सबकी सब है खोखले पिटारे। * प्रचार-प्रसार के रंग निराले टीवी चैनलों पर धूम मचाते। * सबकी की बखिया खूब उधेड़ते हरेक पार्टी दूसरे पर कीचड़ उछालती। * नेताओं की सभाओं का दौर गरीब जनता की फिक्र का दौर। * सब पार्टी के लोलुप हैं धन-जन-उपहारों का वादा । * एक दूसरे की पोल खोलते कितना भाषणबाजी करते। * काश जनता को ये समझते? अब जागरूक है जनता । ----अनिता शर्मा झाँसी -----मौलिक रचना

...🌿वो सर्द की रातें 🌿...

Image
एक ठिठुरती सर्द शाम की अनोखी है ये दास्तान जिसमें कुछ अनमोल यादों की सरगोशियां शामिल हैं बेहिसाब जब लोग दुबके रहते हैं रजाइयों में और  मां के नुस्खे काम आते हैं हल्दी दूध के प्याले में।। कोई तुम्हें देखता होगा जी भरकर पर अफसोस,ये कब जान पाओगे तुम इन खामोशी सी सर्द रातों की बेचैनी  कब समझ पाओगे तुम।। मौसम कितना भीगा सा  सुहाना सा है, इस सर्द की रात में बारिश की बूंदों ने मन के सारे घावों पर  मरहम लगा सा दिया है।। सभी मौसम होते हैं खास ठण्ड की हैं कुछ अलग ही बात, गरम गरम चाय और पकौड़े हो साथ कप कप करके ठंडी बजती ओस की बुँदे घास पर सजती कोहरा सजता हैं बड़ा दमदार पहाड़ों पर सजता ये सदाबहार।। दिन कब ढल जाये पता ना चले रात की गहराई में हम आसमां तले इक्कट्ठी करके ढेर सारी लकड़ी आग जला कर सब अन्ताक्षरी खेले हर साल बीते ऐसी ही सर्द की छुट्टियाँ जब मिल बैठे भाई बहन और सखा सखियाँ।। ठण्ड में साँसों से हैं धुँआ निकलता भीनी भीनी धुप में जन्मो का सुख हैं मिलता चाय का प्याला भी खूब अपना सा लगता आग की गर्मी में ही मौसम  है जचता ।। कोई चिथड़े में लिपटा ,कोई घर में है सिमटा...

चलो इस बार कुछ नया करते है!!

Image
चलो इस बार कुछ नया करते है!! इस बार दीवाली की सफ़ाई के साथ-2 मन की सफ़ाई भी करते है!! घर के जाले तो सबने साफ कर ही लिये होंगे चलो अब मन में लगे जाले साफ करते है!! एकता श्रीवास्तव✍️

आओ मन का दीप जलाएं

Image
बन जुगनू जगमग कर जाएं |  आओ मन का दीप जलाएं||  भेद भाव की छोड़ बुराई  भर मन में अपने अच्छाई  दिल में जो अंधकार भरा है  दीपक दिल में बुझा पड़ा है  दिल से नफ़रत द्वेष मिटाएं |  आओ मन का दीप जलाएं ||  दीप जलाना एक बहाना  साथ खड़े हो प्रेम निभाना  हाथ बांध कर एक पंक्ति में  सारा जग जगमग कर जाना  लता- बेल सा हम बन जाएं |  आओ मन का दीप जलाएं ||  कोना कोना गांव देश का  जाति धर्म का वर्ण वेश का,  मिल रंगों सा बन रंगोली  लाल गुलाबी नीली पीली,  स्नेह प्यार का नेह जगाएं |  आओ मन का दीप जलाएं ||  फोड़ पटाखा चकाचौंध में  घर घर लक्ष्मी पूजी जाती  बिच्छू गोजर सांप छछूंदर  मंत्र जाप खूब की जाती  सोंच समझ का ज्ञान बढ़ाएं |  आओ मन का दीप जलाएं ||  देखो ढूढ़ो ऐसे बच्चें  भूखे प्यासे रोते सोते  बेसहारा जीवन जीते !  क्या दीवाली ऐसे होते?  उनकी खुशियां वापस लाएं |  आओ मन का दीप जलाएं||  दीपक बाती सा जीवन में,  रिश्ता क़ायम हो मन मन में,...

हमें तुमसे प्यार हैं

Image
💞💕💞💕💞💕💞💕💞💕💞💕💞💕💞💕💞💕💞 जबसे मिले है तुमसे तब से दिल का बुरा हाल है क्या सनम तुम्हारा भी दिल का यही हाल है सोचती हूँ कैसे बयां करू अपने मोहब्बत तुमसे दिल करता है कब कह दू की हमें तुमसे प्यार है मैं कुछ भी सोचु बस तेरा ही ख्याल आना गुजरती हवाओ के साथ तेरा मुझे छेड़ जाना अब मुश्किल है दिल में ये बात अब छुपा पाना दिल करता है कब कह दू की हमें तुमसे प्यार है मेरी होठों मुश्कुराहट मेरी चहरे की नूर है तुमसे तुम क्या हो मेरे लिए आओ आज बतादू तुम्हे हर पल साँसे बस तुम्हारी खुशबू महसूस करने लगी दिल करता है कब कह दू की हमें तुमसे प्यार है जानती हूँ कभी तुम किसी से कुछ कहते नहीं ये भी जानती हूँ भोले सनम मुझे देखे बिन तुम रहते नहीं मेरा न दिखने पर जो बेचैनी पढ़ती हूँ तुम्हारे आँखों में उस पल दिल करता है कब कह दू की हमें तुमसे प्यार है माना थोड़ी पागल दिल हूँ पर जान बस तुम्हारी हूँ तुम क्या समझो तेरे मोहब्बत में कितनी दीवानी हूँ जो रहते हो यूँ दूर दूर हमसे यूँ नज़र अंदाज़ करना तेरा तो दिल करता है कब कह दू की हमें तुमसे प्यार है मेरी रातो की आख़री याद सुबह की पहली ख्याल हो तुम मेरी ज़ि...

पापा, आप मुझे भूल गए।

Image
"पापा, प्लीज़ मुझे मत छोड़ना। मैं गिर जाऊंगी। पापा, मुझे डर लग रहा है। मुझे पकड़ लो।" नन्ही स्नेहा अपने पापा से चिपक कर मैरी गो राउंड में बैठी थी। "डरती क्यों हो स्नेहू, मेरी गुड़िया , मैं हमेशा तुम्हारे पास ही रहूंगा। तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा।" उसके पापा राम प्रताप सिंह ने उसको कसकर पकड़ते हुए कहा। "आप कभी मुझे भूल गए तो?" स्नेहा ने भोलेपन से पूछा।  "ऐसा दिन कभी नहीं आएगा मेरी लाडो। मैं और तुम्हें भूल जाऊं। हो ही नहीं सकता। अगर ऐसा हुआ तो वो मेरी ज़िंदगी का आखरी दिन होगा।" राम प्रताप हंसते हुए बोले।  फिर दोनों मिलकर हंसने लगे और चारों तरफ उनकी हंसी गूंजने लगी।  उस हंसी की गूंज में स्नेहा को कोई परिचित सी आवाज़ सुनाई पड़ी,"स्नेहा,पापा....उठो पापा के पास चलो।"  स्नेहा जैसे अपने स्वप्न से निकलकर हकीकत में लौटी। उसने अपने इर्द-गिर्द के वातावरण को देखा।‌ वह हॉस्पिटल में बैठी थी। उसके सामने उसका पति कार्तिक और बेटी पूजा खड़ी थी।  "क्या हुआ पापा को?" स्नेहा चौंक कर खड़ी हो गई।  "तुम चलो। डॉक्टर बुला रहे हैं।" कार्त...

फूलों की वादियाँ

Image
  जीवन के पचपन बसंत देख चुकी सुषमा ने अपने जीवन के सारे सुख भोग लिये थे। राकेश के रूप में बङे अच्छे पति, एक बेटा और एक बेटी का सीमित परिवार, दोनों बच्चे पढे लिखे, लङकी की शादी हो चुकी, और अब बेटी की कमी बहू ने पूरी कर दी, फिर कौन कह सकता है कि सुषमा के जीवन में कुछ भी दुख है।     बेटा रजत और बहू रागिनी घूम कर आये । रागिनी बार बार फूलों की वादियों  का जिक्र कर रही थी। " मम्मी जी। बङी हसीन जगह है। एक बार देखो तो देखते ही रह जाओंगे। लगता है कि सचमुच जन्नत में आ गये हैं।"    आज सुषमा थोङा व्यथित थी। कुछ मन में छिपा था। भीतर ही भीतर...। बाहर नहीं निकाल सकती।    राकेश ने सुषमा के कंधे पर हाथ रखा।     " लगता है कि आज फिर मोहन की याद आ गयी। "   " सचमुच... ।उन हसीन वादियों में हम कितना घूमे। पर मोहन था सिपाही देश का। देश के लिये सब छोड़ सकता। मैं उसके आने का इंतजार कर रही थी। पर वह नहीं आया। आयी तो उसकी शहादत की खबर।"     सुषमा ने राकेश के कंधे पर सर रख दिया। राकेश जो मोहन का पक्का दोस्त था, वह जिसने मोहन के बाद भी सुषमा को सहारा द...

युग पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

Image
भारत के विस्मार्क , विस्मार्क से भी ज्यादा काबिल ,कौटिल्य के जैसी कूटनीति,शिवाजी महाराज के जैसी दूरदर्शिता  हर भारतीय हृदय के सरदार ,कुछ ऐसा परिचय है वल्लभ भाई पटेल का। 31 अक्टूबर 1875 को एक सितारा  झवेर भाई पटेल और लाडबा देवी के घर आसमान से उतरा था। देश के भविष्य की दिशा जिसने तय की। आजादी से पहले और आजादी के बाद इन्होंने देश के लिए खुद को झोंक दिया। प्रारंभिक काल में उन्होंने अपने आप को एक वकील के तौर पर स्थापित किया, वे प्रखर वक्ता थे। एक बार का वाकया था ,जब वो क्रांतिकारियों के लिए न्यायालय में बहस कर  रहे थे ,उसी समय किसी में एक पर्ची पकड़ाई,जिसे पढ़ वल्लभ भाई ने पर्ची जेब में रख ली ,और बहस जारी रखी।बाद में जब उनसे पर्ची  के विषय में पूछा गया तो पता चला कि उस पर्ची में  उनकी पत्नी के  देहांत की खबर थी,उसे पढ़कर भी वे बहस करते रहे।उनका कहना था ,जो चला गया वो तो लौट कर नहीं आएगा परंतु जो है उसे जाने से रोका जा सकता है। 1917 तक वे भारतीय राजनीतिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहे। अंग्रेजों की शैली के कपड़ों ,और फैशनेबल गुजरात क्लब में ब्रिज चैंपियन ...

इतनी नाराजगी क्यों ?

Image
इतनी नाराजगी क्यों ?  बोलो मुझसे कोई गलती हुई है क्या? नहीं! कुछ नहीं ,पता नहीं  फोन रखो!  अच्छा ठीक है माफ कर दीजिए ना अब नहीं बोलेंगे कितनी बार कहूं,  एक बार में समझ नहीं आता क्या? तेज चल रही आंधी में लौ बहुत मध्धम था एक झोंका बार बार उसे बुझाता पर लौ सहम कर फिर जल जाता  उसे कहां पता था मनसा ,किसी और के आने का नासमझी में वो बार बार है मनाता मिथ्या आरोप से वो घिरता जाता पर लौ फिर भी है मुस्कुराता जाता समय का पर्दा जब थोड़ा लहराता पुरी कहानी तब उसे है समझ आता फिर हृदय जलता और आंखें भर आती इतनी जलन को सहेज वह देख उसे मुस्कुराता ,बस जलता और जलता फिर एक दिन स्थिर  हो कहीं बिखर जाता है  पर उसकी व्यथा उसी में रह जाता।। प्रिया प्रसाद

तूने भृकुटी तान दी

Image
पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया, और तुझको पहचान दी। वृद्ध  पिता  लाचार  हुआ  तो,तूने भृकुटी तान दी।। अथक परिश्रम किया उन्होंनेे कष्ट बहुत सा झेला था। उनके कांधे पर चढ़ कर,तू खेल अनेकों खेला था।। उसकी  मेहनत ने ही तुझको,ये दुनिया आसान दी। वृद्ध  पिता  लाचार  हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।। तेरी जिद पर कर्ज लिया, वह नहीं बताया भूल से। दिए फूल तुझको जीवन भर,आहत होकर शूल से।। पथ के कंटक दूर किए,और तुझे राह आसान दी। वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।। उन्नति पथ पर तुझे चलाया,योग्य बनाया पढ़ा लिखा। लेकिन  तुझको एक पिता का,त्याग बता क्यों नहीं दिखा।। किया विवाह तुम्हारा अपनी,सब दौलत अनुदान दी। वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।। जिसके कारण है समर्थ तू,धन दौलत और कोठी से। वही पिता बंचित बैठा है,घर की दो दो रोटी से।। बृद्धाश्रम में पिता पड़ा है,जिसने तुझको शान दी। वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।। वृद्धाश्रम  में  रोते -रोते ,कहता तेरा वही पिता। बेटा  फर्ज  भुला बैठा है,जाने कैसे जले चिता।। रावत  कहता  ह...

हे लौह पुरुष

Image
३१ अक्टूबर १८७५ को चमका एक सितारा..  "वल्लभ भाई" नाम पडा़, फिर हिम्मत कभी न हारा..  पिता "झवेर" के स्वाभिमान का परचम  भी लहराया था..  माँ लाडवा देवी के आंचल का मान बढाया था..  स्वतंत्रता सेनानी जो पहले गृहमंत्री भारत के..  एकता का पाठ पढा कर जन-जन में आशा भरते..  युगद्रष्टा, हो "लौहपुरुष " भारत का मान बढाया था..  किसानों के दिल में जब सागर बन कर लहराया था..  बारडोली सतयाग्रह का बिगुल बजाने वाले आप..  न्याय मिले धरती के किसान को दूर किया उनका संताप..  रुकी ह्रदय गति डूब गया अस्ता़ंचल में एक सितारा..  अमर रहा जन के उर में भारत माता का दुलारा...  ...

न रखो उम्मीद किसी से

Image
ना रखा करो उम्मीद दूसरों से  टूट जाती है जब पूरी नहीं होती!! मिलता है फिर गम और यह सोच-सोच कर  उदास होते हैं फिर हम!! यह जानते हैं हम कि जो दिया है वह बापिस लौटकर आएगा जरूर  तो फिर क्यों इतनी बेचैनी ,इतना गुस्सा और इतना गुरुर !!  करो ना वही जो तुमको हो पसंद  खुद से खुद को मिलाकर लिख डालो इबारत सच्चे प्यार की!! ना मिलता ना मिले, किसी से चाहत का इकरार  तुम दे दो यह सोच कर कि आएगा जरूर लौटकर बेहिसाब!! एकता श्रीवास्तव✍️

कर्म फल

Image
कहते हैं ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती। इसी जन्म में अपने अच्छे ,बुरे कर्मों का फल मिल जाता है।  गरीबों की आह लेकर सेठ रामेश्वर  ने  खूब पैसे इकट्ठे  किए और उन्ही पैसों को अधिक  ब्याज पर    उठाया । नियति के खेल निराले, अचानक एक दिन उनके पूरे शरीर में लकवा मार गया। मुंह टेढ़ा हो गया ,कुछ कह न पाएं न चल पाएं ।बिस्तर पर पड़ गए। अब धंधा चौपट हो गया,लड़के सब आराम के आदी  थे।जहां जहां सेठ जी का पैसा फंसा था ,सब मुकर गए,क्योंकि ज्यादातर लोगों को लिखा पढ़ी में नहीं दिया था । सेठ जी के बेटों ने जितना पैसा चल ,अचल बचा था ,सेठ जी से अंगूठा लगवा आपस में बांट लिया ,और सेठ जी को अपने हाल पर छोड़ दूसरे शहरों में बस गए। जिंदगी में सेठ जी ने एक ही नेक काम किया था ,एक अनाथ को सड़क से तरस खा  उठा लाये थे ।उससे अपने  घर  का छोटा मोटा काम करवाते थे, ।थोड़ा बड़ा हुआ तो उससे बैल की तरह काम लेते और तब जाकर उसे   दो रोटी नसीब होती । लेकिन वह पढ़ने में होशियार था,रात को जब सब सो जाते तो ,वो सेठ जी के लड़कों की किताबें पढ़ता। सेठ जी को...

लौह पुरुष

Image
लौह का सीना लेकर आए जो कहलाए आयरन मैन अपने देश में शांति फैलाई खोकर अपना सुख और चैन 31 अक्टूबर अठारह सौ पिचहत्तर को जन्में नाडियाड में झाबेर भाई और लाडबा पटेल के आंखों के उज्ज्वल तारे बने झाबेरबा संग रिश्ता जोड़ा गृहस्थी के संसार में तेंतीस  वर्ष की अल्पायु में वो छोड़ गई मझधार में बारडोली सत्याग्रह की डोर संभाली अपने हाथ में सफल करके दिखलाया सब लोगों के साथ में मिली उपाधि तब महिलाओं से और बन बैठे वो सरदार अपने देश की सेवा के लिए उनके मन में जोश अपार देश का एकीकरण कराया गृहमंत्री के पद पर रहकर अखंड भारत का स्वप्न सजाया त्याग और तप के बल पर भारत रत्न इन्होंने पाया भारत के विस्मार्क बने एकता की मूर्ति बनकर भारत के यूनिटी मार्क बने

दिप तले अंधेरा

Image
🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻 किस्मत ने हमसे ये कैसा खेल खेला ज़िन्दगी में रह गया बस हर तरफ अंधेरा जो हमेशा जहाँ में खुशियाँ बिखरती रही आज वही दिल गम में है जैसे दिप तले अंधेरा रूठ गया मुस्कान होठों से हमारे भर गया गम की आँसू आँखों में हमारे कभी किसी के चहरे पर मायूसी न आने दी  आज वही दिल गम में है जैसे दिप तले अंधेरा कैसा दस्तूर है ये ज़िन्दगी का भी मौका नहीं देता था कभी शिकायत का भी जो हर पल अपने ही धुन में ख़ुश रहता था आज वही दिल गम में है जैसे दिप तले अंधेरा कोई खता हमसे हुई कुछ खामिया नसीब का हर रिश्तों की धागे टूट गए फुटते इस किस्मत का कभी हर पल अपनों के साथ रहे हँसी महफ़िल में आज वही दिल तन्हा है ऐसे जैसे दिप तले अंधेरा हमारे जुबाँ भी बेज़ुबाँ होजाता है ज़िन्दगी में ज़ब आँखों की नमी आग सी पलकों पे जलता है कभी लगता था शब्दो की मेला इस दिल के दुनिया में आज वही दिल विरान हुआ नैना जैसे दिप तले अंधेरा...!! 🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻 नैना.... ✍️✍️

सरदार पटेल

Image
गुजरात में बहुत गरीब किसान परिवार में जन्में, हर दर्द से गुजरे,किसान के दर्द को भी बहुत करीब से जाना उन्होंने, नमन है सरदार जी को इतिहास द्वारा जाना हमने, सुना है उनके बारे में तभी उन्हें पहचाना हमने, लौह पुरुष सरदार पटेल कहलाते थे, अंग्रेजों को भारत से बाहर भगाया, भारत देश को आजाद करवाया, आज भी हमें वही लौह पुरुष चाहिए, जिसने किसानों के लिए लड़ाई लड़ी, सरदार पटेल भारत को अच्छा उत्पादक बनाना चाहते थे, कोई भूखा न रहे ऐसा भारत चाहते थे, वकील वकालत छोड़,देश सेवा में जुट गया, भारत को एकता की डोर में बांधने  लग गया, सम्मान दिया एकता की मूर्ति बनाकर, जिसको नाम दिया स्टैचू ऑफ़ यूनिटी, तुम देश की हो आन, बान और शान, तुम्हीं से बनी है देश की पहचान, सारा देश करता तुम्हें शत शत प्रणाम। हरप्रीत कौर दिल्ली

🌿..लौह पुरुष की लौह हुंकार..🌿

Image
बापू के अनुयायी रहे जो खेड़ा के रण से रखे कदम भर हुंकार बरदौली में बोले न दे लगान की रत्ती भर हम।। अत्याचार के शासन का दृढ होकर जिसने दमन किया उस युग शिल्पी को ही सबने लौहपुरुष का नाम दिया।। खुशबू से जिसकी महक उठा था सारा हिन्दुस्तान वो थे वल्लभ भाई पटेल अपने भारत की शान प्रतिभाशाली, व्यक्तित्व के थे वो ऐसे धनवान भारत की आजादी के बने वो नायक महान।। देश भक्ति थी जिसके रग रग में. सबल बने, भारत इस जग में. एकीकरण के स्वप्न को जिसने. कर निश्चय ,बदल दिया यथार्थ में ।। हृदय कोमल,आवाज में सिंह सी दहाड़ लिए भारतीय राजनीति के प्रखण्ड के वो विद्वान बने शत् शत् नमन हो ऐसे महान व्यक्तित्व को बन बैठे भारत की आन बान और शान है जो ।।

अरमानों का आकाश

Image
मानवेन्द्र के पिता सोमेंद्र और माँ रितिका अपने समय के मशहूर चिकित्सक थे डेहरी गांव के नजदीक कस्बे कखारदुल में पाइवेट नर्सिंग होम चलाते थे दोनों की प्रैक्टिस अच्छी खासी थी और दूर दूर से मरीज अपने इलाज के लिये आते थे। सोमेंद्र और रितिका की दो संताने थी मानवेन्द्र और मनीषा दोनों को पढ़ने के लिये क्लास सिक्स के बाद ही भोपाल के प्रतिष्ठित कैथोलिक चर्च के स्कूल में एडमिशन करा दिया था सोमेंद्र और रितिका की चाहत थी कि उनके बेटे बेटी डॉक्टर बनकर उनके कार्य को और आगे बढ़ाए उनकी संतानो ने भी इसके लिये कोई कोर कसर नही उठा रखी थी मानवेन्द्र को एम बी बी एस में पूना प्रवेश मिला मनीषा को भोपाल में ही महात्मा गांधी मेडीकल कालेज में एडमिशन मिल चुका था। मानवेन्द्र और मनीषा की मेडिकल की पढ़ाई बहुत शानदार चल रही थी दोनों अपने कॉलेज में गोल्ड मेडल के साथ एम बी बी एस की परीक्षाओं को पूर्ण किया सोमेंद्र और रितिका को अपने संतानो पर गर्व था जो  भी मरीज उनके नर्सिंग होम से ठीक होकर जाने लगता वही अपनी दुआओं में डॉक्टर दंपति को उनके लायक बच्चों की दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की दुआएं देता डॉक्टर दंपति को बहुत आत्म...

राष्ट्रीय एकता के दिव्य प्रतिमान हैं सरदार पटेल

Image
(भारत एक रहे-अखण्ड रहे का सपना साकार किए) ************************************** भारत की धरती आसमान का चमकता सितारा। भारत में रहे एकता  जिसको था प्राणों से प्यारा। जन्मा भारत की धरती पे था ऐसा भी एक लाल। इस देश को अखण्ड बनाया है वो माई का लाल। 31अक्टूबर1875को नाडियाड बम्बई प्रेसिडेंसी। ब्रिटिश भारत में हिस्सा था जन्में जहाँ एक्सलेंसी। 'भारत रत्न' श्रीमान बल्लभभाई झाबेरभाई पटेल। लोकप्रिय नाम रहाहै ये सरदार बल्लभभाई पटेल। पिता झाबेरभाई और माँ लाडबा देवी की संतान। सोमाभाई नरसीभाई विट्ठलभाई  ये चौथी संतान। प्रारंभिक शिक्षा स्वाध्याय से आगे लंदन में पढ़ाई। पढ़ने में थे तेज बहुत ही  बैरिस्टर की करी पढ़ाई। वापस लौट अहमदाबाद में  शुरू किया वकालत। गांधी के विचारों से प्रभावित हो छोड़ीहै वकालत। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अहं भूमिका निभाई। गांधी के साथरहे सत्याग्रह में अहं भूमिका निभाई। बारदोली सत्याग्रह में सरदार पटेल की छवि आई। बिस्मार्क ऑफ इंडिया ये लौह पुरुष हैं पदवी पाई। ऐसे राजनीतिज्ञ थे भारतीय प्रथम उप प्रधानमंत्री। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता राजनेता गृहमंत्री। पटेलजी...

तेरे बिन

Image
लिख तो लेती हूं, पर पढ़ नहीं पाती, लफ्ज़ो को तुम्हारे, जी नहीं पाती, तेरे बिन......... बैठ के सोचती हूं, रेत के मैदान में, जल तो लेती हूं, पर सुलग नहीं पाती, तेरे बिन........ लहरों के थपेड़े में, सह तो लेती हूं, तैरना न जानती, पर डूब नहीं पाती, तेरे बिन............ रात की तन्हाई में, तकिए के सहारे, रो तो लेती हूं, पर सो नहीं पाती, तेरे बिन........... अक्सर बन्द किताबें, खोले बिना ही, खत्म कर लेती हूं, पर सीख नहीं पाती, तेरे बिन........... डाली पे सजे, लाल गुलाबों को, तोड़ तो लेती हूं, पर महक नहीं पाती, तेरे बिन..........                इंदु विवेक उदैनियाँ                  (स्वरचित)

हम अपनी मनोदशा क्या लिखें

Image
इश्क़ के सुलगते अंगारों में,,हम अपनी मनोदशा क्या लिखें,,,ढलता हुआ सूरज लिखें,,या उगती  हुई शाम लिखें,,,हम अपनी मनोदशा क्या लिखें??? सुबहा  की  तन्हाई  लिखें,,,या  रातों अंगड़ाई लिखें,, लिखें क्या समझ नही आता,,जीवन  बेतरतीबी  में गुजर  रहा,,कहां  मोहब्बत  की  भरपाई  लिखें,,, आठों  पहर  दसों  दिशाएं,,,और  हृदय में गुमनामी की  शहनाई,,,बताओ   यार  हम  अपनी मनोदशा क्या लिखें,,, अब जीने कहां देती है ये तन्हाई की तरुनाई,, हम अपनी मनोदशा क्या लिखें,,,                                     ®कुमार

एक टुकड़ा धूप का भाग १६

Image
गतांक से आगे संतोष अपनी भाभी के विषय में संयोगिता को बताता है कि जब से बुआ जी ने भाभी के खिलाफ मां के कान भरें है तब से भाभी को बहुत बुरा लगा है और वो अपने आपको खत्म करने के लिए जा रही थी अगर मैं इनके पीछे पीछे जाकर इन्हें बचा नहीं लेता तो ये अपने साथ साथ उस नन्हें से चिराग को भी खत्म कर देती जो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं था। वो बच तो गई लेकिन उन्होंने यह ठान लिया है कि अब वो घर नहीं लौटकर जाएंगी , वो यहीं रहेंगे आश्रम में रह कर अपना शेष जीवन बिता लेंगी। हमने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वो मान ही नहीं रही हैं। हारकर जबरदस्ती घर ले जाना चाह रहे थे हम, ताकि घर की इज्जत बनी रहे।तो वो चीखने चिल्लाने लगीं। अब आप ही बताइए हम क्या करें? अगर भाभी यहां रहती हैं तो हमारी समाज में कितनी थू थू होगी। लोग हमारा जीना हराम कर देंगे। लोग यही कहेंगे कि भाई के मरने के बाद हमने भाभी को घर से निकाल दिया। आप उन्हें समझाइए शायद वो आपकी बात मान जाएं। और अपनी जिद छोड़कर हमारे साथ घर चलने को तैयार हो जाएं। हम लोग इलाहाबाद के रहने वाले हैं यहां भैया भाभी रहते थे। भाभी की प्रेगनेंसी की खबर ...

प्रेम का मूल्य

Image
"शाम ढलने लगी थी।सूर्य देव अपनी रश्मियाँ समेटकर सोने की तैयारी कर चुके थे।पाकुड़,  एक बहुत ही छोटा सा गाँव जिसके निवासी दीनू, बसिया,हरिया अपने पशुओं को चराकर वापस घर लौट रहे थे।बारह-पंद्रह साल के बच्चे.., पढ़ाई से कोई वास्ता नहीं।बस खाना ,खेत और काम।सब अपनी धुन में आपस मे ग्रामीण अंदाज में हंसी मजक करते चले जा रहे थे।आगे आगे पशु और पीछे सारे बाल गोपाल।चलते चलते अंधेरा घिर आया था।जिससे उबड़ खाबड़ रास्तो पर चलना मुश्किल हो रहा था, सबकुछ धूमिल सा हो चुका था।गहराती सांझ अपने साथ सन्नाटे को लेकर आ रही थी।जिसे उनकी बातें ही तोड़ रही थीं।बातें करते करते हरिया अचानक से चीखने लगा.. आ.....आ...!"    हरिया को चीखता देख बाकी बच्चे रुक गये। डर की बजह से हरिया के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी। जानबर आगे बढ चुके थे।    वैसे दीनू और बसिया समझ गये कि कुछ तो परेशानी की बात है। गांवों में वैसे भी भूत प्रेतों की कहानियाॅ ज्यादा सुनी जाती थीं। अफवाह थी कि रात के समय गांव के बाहर पांच पीपल के पेड़ों के नीचे भूतों की बारात निकलती है। उस समय जो भी वहाॅ से गुजरता है, वह कभी वापस नहीं आता ह...

दिल से आवाज़ आयी है

Image
दिल से आवाज़ आयी है जो कहा नहीं जाता वो सब बोलता है दिल शायद आँखों से पता लग जाये क्या कहता है दिल यार अजीब बात है इतनी याद आयी है कि सोचते सोचते मेरी आंख भर आयी है ये मैं नहीं बोल रहा ये तो दिल से आवाज़ आयी है सुबह उठते ही आपको देखने  को बोलता है दिल सोने से पहले आपको सुनने को बोलता है दिल अब इसको क्या पता कि मेरी जान को भी नींद नहीं आयी है मैंने नहीं बोला ये तो मेरे दिल से आवाज़ आयी है बार बार आपकी तस्वीर देखता है दिल आपकी आँखों और हंसी में क्या ढूंढता है दिल आपकी नज़रों में प्यार देखते देखते मेरी आंख भी शरमाई है मैं नहीं बोल रहा ये तो मेरे दिल से आवाज़ आयी है बार बार ध्यान मेरा घड़ी की तरफ जाता है ये वक़्त बेरहम है इसे जितना ज़्यादा देखो उतना इंतज़ार करवाता है ये इंतज़ार करने को तैयार है पर एक बेचैनी सी छाई है मैंने नहीं बोला, ये तो मरे दिल से आवाज़ आयी है आपके चेहरे पे ख़ुशी देख के ये ज़ोर से धड़कने लगता है थोड़ी सी भी उदासी देख के ये बहुत तड़पने लगता है आपको हँसता हुआ देख के इसने बहुत ख़ुशी मनाई है मैंने थोड़ी कुछ बोला, ये तो मेरे दिल से आवाज़ आयी है आपके पास आने की ज़िद करता है तो इसे समझा देता ...

अपराधबोध भाग २

Image
तब से वो इस मिशन पर लगी थी ,रोजाना समीर  को जब समीर कमरे में आता तो कुछ न कुछ उल्टी सीधी बातें पापा जी के बारे में भरती रहती । फिर मिसेज भल्ला ने एक दिन कोई दवा ,अंजली को दी ,और कहा की अपने पापा जी को मिला कर दे देना । अंजली ने ऐसा ही किया ,उसने दवा पापा जी को चाय में मिला कर दे दी। पता नही क्या था उस दवाई में ,शांत रहने वाले पापा जी की आंखें लाल हो गई वो हिंसक बर्ताव करने लगे।चाय का कप उठा फेंक दिया ,कमरे का सारा सामान इधर उधर बिखेर दिया। अंजली ने तुरंत समीर को ऑफिस से बुलाया।मिसेज भल्ला आईं ,उन्होंने अपने डॉक्टर का पता दिया, कि ये बहुत अच्छे डॉक्टर हैं इन्हें दिखा लो। डॉक्टर ने चेक अप किया और बताया कि अकेले रहने के कारण इन्हें इस तरह का दौरा आया है , मैं दवा लिख रहा हूं ,आप 15 दिन खिला कर देखिए ,अगर फायदा हुआ तो ठीक वरना फिर आप सोचिए क्या करना है ,इनका अकेलापन दूर करने को। समीर परेशान था,इधर अंजली अब दो दिन में वही मिसेज भल्ला वाली दवा मिला कर दे रही थी ,इसलिए राकेश जी ठीक होने के बजाय और भी बीमार हो रहे थे। वो धीरे धीरे हिंसक होने लगे।अब अंजली समीर को भरती रहती ,हम लोगों...

इश्क में हर सांस

Image
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ ज़ब किसी से दिल लग जाता है हर तरफ दिलकश समा लगता है करते है आशिक़ हवाओ से बाते पतझड़ में बहार सा लगता है नींद उड़ जाती है आँखों से कही दूर रातो को सोना गवारा नहीं होता है सजाते है आँखों में महबूब की सपने इश्क़ में जैसे हर ख्वाब पूरा सा लगता है छुप छुप कर दिलबर की दीदार करना ना दिखे गर कभी तो दिल का आहे भरना गर मिल जाता है एक झलक भी सनम की तो दिल का हर ख्वाहिश पूरा सा लगता है रात अँधेरी हो या चाँदनी के साथ चाँद रोज़ करते है झिलमिलाती तारो से बात दर्द कितना भी हो दिल में फर्क नहीं पढ़ता इश्क़ में मिला जख्म भी दिल को बहुत प्यारा लगता है न कोई गिला न कोई शिकायत होता है सच्ची मोहब्बत में कहाँ कोई इम्तेहान होता है भूलकर सारी दुनिया को खोये रहना सनम की यादो में दिल के हर धड़कन की यही बयां होता है चल पड़ते है दीवाने काँटों भरी राहो में भी हर मुश्किल भी जैसे आसन सा लगता है एक बार जो डूबे इस इश्क़ की दरिया मे पार करने से ज्यादा उन्हें डूबना अच्छा लगता है लाख सितम कर ले ये दुनिया मोहब्बत में  फिर भी होठों पे हर पल मुश्कान रहती है मिट जाती है हस्ति पर प्यार ...

बारूद पर मासूम

Image
नियति की गति बड़ी निराली देख अचरच होता है। खतरे का न इल्म इन्हें तो बारूद पर जीवन जीते हैं।      ऐ मासूमियत की उम्र !      क्यों बारूद के ढेर में?      खतरो का न भान इन्हें      रोटी- भूख सवाल बड़ा। खेलने की उम्र में ये खतरों से खेल रहे हैं। किसी के मनोरंजन के लिए जीवन दाव पर लगा रहे।       विषमताओं के इस संसार में       लाचारी बेमोल बिक रही।       मासूमियत बारूद के ढेर में       देखो कैसे सुलग रही। बाल-मजदूरी के कानून की धज्जियां देखो उड़ रही। नेताओं की बात खोखली मासूमो की जान जोखिम में ।      कब भारतीयता जागेगी?     कब होगा कानून सुदृढ़ ?     कब तक बारूदी खेल चलेगा?     कब मानवता स्वतंत्र विचारो की होगी? --------अनिता शर्मा झाँसी -------मौलिक रचना

बेजुबानों कि बस्ती

Image
मज़हबो  कि  बस्ती, हुक्मरानों  कि  बस्ती गुम सी हुई है लगता अब इंसानों कि बस्ती दिल तोड़ने  को फ़क़त अपने ही काफी है मुझे मुकद्दर से मिली है  ये तानों कि बस्ती इक  जाम है जो हर  धर्म एक  कर देता है देखना हो  तो  देखिए मयखानों कि बस्ती मेरे गांव में मुझे हर घर,घर नज़र आता था शहरों में तो दिखती फ़क़त मकानों कि बस्ती दूसरों पर उंगलियां उठाने  वालों जरा सुनों  क्या झांकी कभी खुद के गिरेबानों कि बस्ती सुनो प्रीत यहां कोई न समझेगा तेरे जज़्बात है ये दयार ए संगदिल ए बेजुबानों कि बस्ती -प्रीती वर्मा✍️✍️ (कानपुर),

आखिरी मुलाकात

Image
वो मुलाकात पहली आखिरी हो गई, प्यार वाली इन आँखों में नमी हो गई,  हम तो बैठे थे थामे ही दिल को मगर, आपको भी तो हमसे दिल्लगी हो गई, वो मुलाकात पहली आखिरी हो गई।         आप आए नजर तो घटा छा गई,         हम ठहर से गए वो घड़ी थम गई,         हम अभी तो निगाहों में उतरे ही थे,         कि मिलने से पहले जाने की घड़ी हो गई,         वो मुलाकात पहली आखिरी हो गई। माना अनजान हैं आपसे हम मगर, जाने क्यों फिर मेरा दिल धड़कने लगा, हम ना दो पल भी बैठे आपके पास में, फिर भी लगता है जन्मों की पहचान हो गई , वो मुलाकात पहली आखिरी हो गई।           अब तो हर रात को चाँद तारों से हम,          आपका हाल क्या है ये हैं पूछते,          क्या पता उनको हम याद है या नहीं,          पर उनकी यादें ही मेरी तकदीर हो गईं,           वो मुलाकात पहली आखिरी हो गई।          ...

श्रीराम अवध में आए

Image
श्रीराम अवध में आए नित मंगल मोद बधाए।  घर घर में मनी दीवाली दीपों से नगर सजाए।।   है भव्य बना मंदिर यह हैं भक्त सभी कराए।  नित होती आरती पूजन जनमन हरषित हो जाए।।  फूलों की बरसा होती झाँकी मोहित कर जाए।  मणिमय पुष्प सुशोभित जीवन आनंद भर जाए।।  नभ मेघ दुंदुभी बाजी शहनाई मधुर सुहाग।  सरयू जल अति पुलकित हो राघव की रटन लगाए।।  शुभ बेला है मंगल की न्यौछावर तनमन जाए।  स्वरचित मौलिक प्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉक्टर आशा श्रीवास्तव जबलपुर

बस यूँ ही

Image
रिश्ता नहीं है तुमसे कोई मोह भी नहीं हैं। फिर भी न जाने क्यूँ कुछ तार से जुड़े हैं। सिवाय बात करने के कोई चाहत नहीं हैं। कुछ कहने, सुनने के अलावा तृष्णा नही हैं। रोज बस अतृप्त रहती हूँ तेरीआवाज सुन  तृप्त होती हूँ। पर रोज कहाँ तृप्त होती हैं, ये तृषा मेरी। अतृप्त जागती हूँ अतृप्त हूँ सोती। दुनिया के मैंने कई रंग देखे छोटी सी उम्र में कई ढंग देखे। तुमसे जो मिली तो यूँ ही एक विश्वास आ गया। रिश्ता नहीं हैं, फिर भी तू यूँ ही  मन में बस नजरों में छा गया। बस यूँ ही......। गरिमा राकेश गौत्तम कोटा राजस्थान

दीपक तले अंधेरा

Image
ये दुनिया भी कमाल की है । क्या क्या रंग दिखाती है । उजालों के जो ठेकेदार बने बैठे हैं , उनके घरों की रोशनी गायब हो जाती है । अध्यापक का बेटा अनपढ रह जाता है थानेदार का चोर उचक्का । जज की नाक के नीचे बाबू तारीख बदलने के पैसे लेता है । डॉक्टर अपने घरवालों का इलाज नहीं करता । जिनको हम बड़े बड़े महानायक समझते हैं वे नशेड़ी निकल जाते हैं । दुनिया भर से सवाल पूछने वाला मीडिया खुद सवालों के घेरे में है । कानून बनाने वाले सांसद विधायक निरक्षर हैं । धर्म की प्रतिमूर्ति समझे जाने वाले धर्म गुरु दुष्कर्म के आरोपों में जेल में बंद हैं । जेलर कैदियों को मोबाइल से लेकर सब कुछ उपलब्ध करवा देता है । भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लोग ईमानदारी पर भाषण झाड़ते हैं । धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार एक समुदाय विशेष का तुष्टिकरण करते हैं । सर्वजन समाज की बात करने वाले एक जाति विशेष का ही काम करते हैं । समाजवाद का राग अलापते अलापते करोडपति बन गये । नारीवादी कहलाने वाले "मी ठू" की चपेट में आ गये । बड़े बड़े शायर जेहादी मानसिकता के निकले । बड़े बड़े बुद्धिजीवी किसी के गुलाम निकले । सबका पेट भरने वाला किसान भूख...