कर्म फल

कहते हैं ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती।
इसी जन्म में अपने अच्छे ,बुरे कर्मों का फल मिल जाता है।
 गरीबों की आह लेकर सेठ रामेश्वर  ने  खूब पैसे इकट्ठे  किए और उन्ही पैसों को अधिक  ब्याज पर    उठाया ।
नियति के खेल निराले,
अचानक एक दिन उनके पूरे शरीर में लकवा मार गया।
मुंह टेढ़ा हो गया ,कुछ कह न पाएं न चल पाएं ।बिस्तर पर पड़ गए।
अब धंधा चौपट हो गया,लड़के सब आराम के आदी  थे।जहां जहां सेठ जी का पैसा फंसा था ,सब मुकर गए,क्योंकि ज्यादातर लोगों को लिखा पढ़ी में नहीं दिया था ।
सेठ जी के बेटों ने जितना पैसा चल ,अचल बचा था ,सेठ जी से अंगूठा लगवा आपस में बांट लिया ,और सेठ जी को अपने हाल पर छोड़ दूसरे शहरों में बस गए।
जिंदगी में सेठ जी ने एक ही नेक काम किया था ,एक अनाथ को सड़क से तरस खा  उठा लाये थे ।उससे अपने  घर  का छोटा मोटा काम करवाते थे, ।थोड़ा बड़ा हुआ तो उससे बैल की तरह काम लेते और तब जाकर उसे   दो रोटी नसीब होती ।
लेकिन वह पढ़ने में होशियार था,रात को जब सब सो जाते तो ,वो सेठ जी के लड़कों की किताबें पढ़ता।
सेठ जी को जब पता चला तो उन्होंने उसका नाम   वहीं सरकारी स्कूल में नाम लिखवा दिया।
सप्ताह में एक दिन ही स्कूल जाने देते थे ,लेकिन उसमें इतनी लगन थी की उसमें इतनी लगन थी कि वह हमेशा परीक्षा में अव्वल आता था आखिर 12वीं पास करके उसे वजीफा मिलने लगा किसी तरह उसने मेहनत करके बैंक के क्लर्क की नौकरी पा ली लेकिन वह सेठ जी का हमेशा ख्याल रखता था जब सेठ जी बिस्तर पर आ गए लड़के छोड़ कर चले गए तब वह उनके घर में आ गया और उनकी सेवा करने लगा उसकी सेवा और लगन का नतीजा था कि सेठजी में थोड़ा थोड़ा सुधार आने लगा विनय ने सेठ जी के लड़कों को खबर देना चाहा परंतु सेठ जी ने मना कर दिया ।
थोड़े दिन बाद विनय की सेवा से सेठ जी पूर्णतः स्वस्थ हो गए।उसके बाद ,सेठ जी ने किसी को नहीं बताया था थोड़ी जमा पूंजी  निकाल एक व्यवसाय शुरू किया ,विनय बैंक में था उसने अपने नाम  से लोन ले  लिया ,दोनों ने मिलकर व्यवसाय बढ़ा लिया,जब बिजनेस चल पड़ा ,तो सेठ जी ने विनय ने नौकरी छुड़वा दी।
काफी दिनों के बाद जब बेटों को पता चला तो वे परिवार सहित आ गए पिता के पास।
और माफी मांगने लगे , वे सब आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे।
सेठ जी ने कहा_ किस लिए माफी मांगते हो?
उन्होंने कहा पिता जी हम आपको आपकी बीमारी की हालत में छोड़ कर चले गए,जब आपको हमारी सबसे ज्यादा जरूरत थी ।
सेठ जी ने कहा , मैं किसी को माफ करने वाला कौन होता हूं,सजा और माफी तो हमारे कर्मों से ईश्वर ही देता है।
मैने गरीबों को बहुत सताया था उसका परिणाम मेरे शरीर ने भोगा और इससे मुझे रिश्ते नातों की कड़वी सच्चाई का पता चला।
अच्छे कर्म थे तो विनय ने सहारा दिया।तुम लोगों ने सेवा के बदले धन को चुना इसलिए श्री हीन हो गए।
स्वागत है तुम्हारा लेकिन तुमलोग मेरे साथ नहीं रहोगे।
विनय ही मेरा बड़ा बेटा ,और वारिस है ,वो तुमलोगों के साथ जो करना चाहे वो करे मैं उसके उपर छोड़ता हूं,मैने 
विनय को ही अपना वारिस मान सारी संपत्ति उसके नाम कर दी है।
विनय एक ईमानदार,और नेक लड़का था ,उसने सेठ जी की इच्छा का सम्मान कर  उन सबको अलग घर दे दिया, और  जायदाद में भी उनको हिस्सा दिया।अब सभी सुघर चुके थे वक्त के थपेड़ों ने उन्हें भी सही राह पर ला दिया था।
अंत भला तो सब भला
समाप्त

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