तूने भृकुटी तान दी
पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया, और तुझको पहचान दी।
वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।।
अथक परिश्रम किया उन्होंनेे कष्ट बहुत सा झेला था।
उनके कांधे पर चढ़ कर,तू खेल अनेकों खेला था।।
उसकी मेहनत ने ही तुझको,ये दुनिया आसान दी।
वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।।
तेरी जिद पर कर्ज लिया, वह नहीं बताया भूल से।
दिए फूल तुझको जीवन भर,आहत होकर शूल से।।
पथ के कंटक दूर किए,और तुझे राह आसान दी।
वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।।
उन्नति पथ पर तुझे चलाया,योग्य बनाया पढ़ा लिखा।
लेकिन तुझको एक पिता का,त्याग बता क्यों नहीं दिखा।।
किया विवाह तुम्हारा अपनी,सब दौलत अनुदान दी।
वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।।
जिसके कारण है समर्थ तू,धन दौलत और कोठी से।
वही पिता बंचित बैठा है,घर की दो दो रोटी से।।
बृद्धाश्रम में पिता पड़ा है,जिसने तुझको शान दी।
वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।।
वृद्धाश्रम में रोते -रोते ,कहता तेरा वही पिता।
बेटा फर्ज भुला बैठा है,जाने कैसे जले चिता।।
रावत कहता हे ईश्वर, तूने कैसी संतान दी।
वृद्ध पिता लाचार हुआ तो,तूने भृकुटी तान दी।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश
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