इतनी नाराजगी क्यों ?

इतनी नाराजगी क्यों ? 
बोलो मुझसे कोई गलती हुई है क्या?
नहीं! कुछ नहीं ,पता नहीं 
फोन रखो! 
अच्छा ठीक है माफ कर दीजिए ना
अब नहीं बोलेंगे
कितनी बार कहूं,  एक बार में समझ नहीं आता क्या?

तेज चल रही आंधी में
लौ बहुत मध्धम था
एक झोंका बार बार उसे बुझाता
पर लौ सहम कर फिर जल जाता 
उसे कहां पता था मनसा ,किसी और के आने का
नासमझी में वो बार बार है मनाता
मिथ्या आरोप से वो घिरता जाता
पर लौ फिर भी है मुस्कुराता जाता
समय का पर्दा जब थोड़ा लहराता
पुरी कहानी तब उसे है समझ आता
फिर हृदय जलता और आंखें भर आती
इतनी जलन को सहेज वह
देख उसे मुस्कुराता ,बस जलता
और जलता फिर एक दिन स्थिर 
हो कहीं बिखर जाता है 
पर उसकी व्यथा उसी में रह जाता।।

प्रिया प्रसाद

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४