पापा, आप मुझे भूल गए।
"पापा, प्लीज़ मुझे मत छोड़ना। मैं गिर जाऊंगी। पापा, मुझे डर लग रहा है। मुझे पकड़ लो।" नन्ही स्नेहा अपने पापा से चिपक कर मैरी गो राउंड में बैठी थी।
"डरती क्यों हो स्नेहू, मेरी गुड़िया , मैं हमेशा तुम्हारे पास ही रहूंगा। तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा।" उसके पापा राम प्रताप सिंह ने उसको कसकर पकड़ते हुए कहा।
"आप कभी मुझे भूल गए तो?" स्नेहा ने भोलेपन से पूछा।
"ऐसा दिन कभी नहीं आएगा मेरी लाडो। मैं और तुम्हें भूल जाऊं। हो ही नहीं सकता। अगर ऐसा हुआ तो वो मेरी ज़िंदगी का आखरी दिन होगा।" राम प्रताप हंसते हुए बोले।
फिर दोनों मिलकर हंसने लगे और चारों तरफ उनकी हंसी गूंजने लगी।
उस हंसी की गूंज में स्नेहा को कोई परिचित सी आवाज़ सुनाई पड़ी,"स्नेहा,पापा....उठो पापा के पास चलो।"
स्नेहा जैसे अपने स्वप्न से निकलकर हकीकत में लौटी। उसने अपने इर्द-गिर्द के वातावरण को देखा। वह हॉस्पिटल में बैठी थी। उसके सामने उसका पति कार्तिक और बेटी पूजा खड़ी थी।
"क्या हुआ पापा को?" स्नेहा चौंक कर खड़ी हो गई।
"तुम चलो। डॉक्टर बुला रहे हैं।" कार्तिक बोला।
स्नेहा ने अपने जड़ शरीर को ज़बरदस्ती उठाया। उसके पैर रूम की तरफ जाना ही नहीं चाहते थे। पर जाना तो था।
*****
दो साल पहले उसकी मां शकुंतला का देहांत हो गया था। उसकी मां और पिता में बहुत गहरा लगाव था। इसलिए अपनी पत्नी, अपनी हमसफ़र की जुदाई उसके पापा सहन नहीं कर पा रहे थे।
स्नेहा ने बहुत ज़िद्द की कि उसके पापा उसके पास आकर रह लें। पर पापा मानते ही नहीं थे।
स्नेहा का अपने पापा से बहुत ज़्यादा लगाव था। बचपन से ही वह अपने पापा की लाडली बेटी थी। उसके पापा उसको उसके भाई आर्यन से ज़्यादा प्यार करते थे। और इसलिए वह अपने भाई को हमेशा छेड़ती थी।
उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था। उसके पापा की प्राइवेट नौकरी थी। जैसे - जैसे बच्चे बड़े हो रहे थे, ज़रुरतें भी बढ़ रही थीं। तो उसके पापा ने ट्यूशन लेना प्रारंभ कर दिया। और रविवार को भी पार्ट टाइम जॉब किया।
स्नेहा से यह सब छिपा हुआ नहीं था। वह अपने पापा को इतनी मेहनत करते देख रही थी। इसलिए उसने और आर्यन ने भी पढ़ाई में जी-जान लगा दी। आर्यन ने अपनी मेहनत से मेनेजमेंट की डिग्री हासिल करी। और स्नेहा ने इंजीनियरिंग की।
कुछ साल बाद आर्यन विदेश चला गया और मां-बाप के पास स्नेहा ही रह गई। शादी के बाद भी स्नेहा बराबर उनसे मिलने आती थी। उनके साथ वक़्त बिताती थी।
पर मां के जाने के बाद उसके पापा ने अपना ख्याल रखना जैसे बंद कर दिया। वह अपनी ब्ल्ड शुगर को लेकर भी लापरवाही दिखाते थे। इसलिए कभी-कभी मधुमेह बढ़ जाता था।
स्नेहा ने तीन महीने पहले अपने पापा को मना लिया कि वह उसके साथ रहें। स्नेहा भी खुश हो गई कि अब वह अपने पापा की देखभाल कर सकेगी।
पर धीरे - धीरे उसके पापा का शुगर बढ़ता ही जा रहा था। इसलिए डॉक्टर ने इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने की सलाह दी।
अब स्नेहा हर रोज़ अपने पापा को सुबह-शाम खाने से पहले इंजेक्शन लगाती थी। उनके खान -पान का विशेष ध्यान रखती थी।
एक दिन जब वह अपने पापा को इंजेक्शन लगा रही थी तो वह अचानक बोले," स्नेहा, यह तू मुझे किस चीज़ का इंजेक्शन लगा रही है?"
स्नेहा थोड़ा चौंक गई और बोली,"पापा रोज़ आपको इंसुलिन के इंजेक्शन लगाती हूं। भूल गए क्या आप?"
"अरे! नहीं - नहीं याद है मुझे। पर.... क्यों लगाती है?" उसके पापा ने बच्चों जैसी भाषा में पूछा।
स्नेहा ज़ोर से हंस पड़ी और बोली,"क्योंकि आप मीठा खाना नहीं छोड़ते। अगर आप मीठा छोड़ दोगे तो मैं ये इंजेक्शन लगाना छोड़ दूंगी।"
"अच्छा जी याद है जब तू छोटी सी थी और मीठे की ज़िद्द करती थी तो मैं तुझे कहीं से भी मीठा लाकर देता था। एक बार महीने के आखिरी दिन तूने मुझसे काजू की बर्फी की फरमाइश की थी। पर जेब में उस दिन पैसे नहीं थे तो मैंने अपने दोस्त से उधार लेकर तुझे बर्फी खिलाई थी।" वह अतीत के पन्नों से एक वाक्या सुनाते हुए बोले।
यह सुन स्नेहा के आंसू बह निकले। वह उनसे लिपट गई और बोली,"पापा, मैं भी आपको ढ़ेर सारी मिठाइयां खिलाना चाहती हूं पर आपकी बिमारी ही ऐसी है। मजबूर हूं।"
उन्होंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और उठ कर चले गए।
*****
"यह किस की हरकत है। पूजा,इशान, मैं तुम्हें आज छोड़ूंगी नहीं।" स्नेहा फ्रिज खोलते ही चिल्लाई।
वह दोनों भागे - भागे आए। आते ही उसने दोनों के कान पकड़ लिये और ज़ोर से डांटती हुई बोली,"यह आइरन रॉड फ्रिज में तुम दोनों में से किसने रखी है?"
"मां हम पागल थोड़ा ही हैं जो ऐसी हरकत करेंगे। हमने नहीं किया।" इशान बोला।
"और क्या मां, अब बात आइस्क्रीम खत्म करने की होती तो हम मानते कि आप हमें डांट रहीं हों। पर यह काम हम क्यों करेंगे।" पूजा ने जवाब दिया।
चीख-चिल्लाई सुनकर पापा रूम से बाहर आए और बोले,
"अरे! यह तो मैंने गलती से रख दी। वो उस वक़्त याद ही नहीं आया कि इसे कहां रखते हैं।"
"पापा आप इन दोनों को बचाने की कोशिश मत करिए। मैं जानती हूं कि यह इनका ही काम है।" स्नेहा ने भड़कते हुए कहा।
"मैं कह रहा हूं ना कि मैंने रखी है। बस बात ख़त्म।" कहकर पापा रूम में वापस चले गए।
स्नेहा और बच्चे दोनों हैरान नज़रों से एक दूसरे को देख रहे थे।पर फिर बिना कुछ कहे अपने काम में व्यस्त हो गए।
********
"पापा, इतनी गर्मी में यह आपने क्या पहना हुआ है? स्वेटर और टोपी?" स्नेहा हैरान होकर कहा।
"देख ना स्नेहू, मैं बड़ा कन्फ्यूज हूं। समझ नहीं आया कि क्या पहनूं।" पापा सच में असमंजस में लग रहें थे।
स्नेह उनकी अलमारी से कुर्ता पायजामा निकाल उनको दिया। और काम में लग गई। पर उनकी यह हरकत बहुत अजीब लगी।
स्नेह ने आर्यन को अमेरिका फोन लगाया और उसे सब बताया।
"दीदी, आप बेकार ही परेशान हो रहे हो। देखो सच्चाई तो यह है कि अब पापा की उम्र हो गई है। इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक है। परेशान मत होइए।"
"आर्यन, पापा आजकल बहुत देर तक सोते रहते हैं। फिर देर रात तक जागते रहते हैं। कभी कभी तो सुबह चार बजे उठकर चाय बनाने को कहते हैं और कभी - कभी आठ बजे भी चाय नहीं पीते।" उसने अपने पापा की अजीब सी दिनचर्या के बारे में आर्यन को बताया।
पर आर्यन ने इसे उम्र का फर्क कह कर टाल दिया। उसने कार्तिक को भी यह सब बताया तो उन्होंने भी आर्यन के अल्फाज़ दोहराए।
उसने भी सोचा कि शायद सच में यह उम्र का ही तकाज़ा हो। वह नाहक ही परेशान हो रही है।
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"बेटा, वो उससे कह ना कि मेरा फोन ठीक कर दे।" पापा ने स्नेहा के पास बैठते हुए कहा।
"पापा किसको कहूं?" मैंने पूछा।
"अरे! वो है ना तेरा बेटा, क्या ... नाम है उसका.." पापा अपने दिमाग पर ज़ोर डालते हुए बोले।
"पापा!....इशान..." मैंने हैरान होकर बताया।
"हां... हां...इशान। माफ करना बेटा बहुत देर से याद कर रहा हूं। पर याद ही नहीं आ रहा था। कहां है इशान? उसको बोल मेरा फोन खराब हो गया है ठीक कर दे।" पापा ने फोन दिखाते हुए कहा।
मैंने फोन देखा और कहा,"पापा इसे चार्ज कर लीजिए। ठीक हो जाएगा।"
"अच्छा, चार्ज करूं। पर कैसे करते हैं? चार्ज!" पापा ने फिर सोचते हुए कहा।
मैंने उनके फोन को चार्ज कर दिया। वह एक छोटे से बच्चे की तरह खुश होते हुए अपने कमरे में चले गए।
मैंने अब ठान लिया कि इस बारे में डॉक्टर से बात करनी ही चाहिए। मैंने पापा के मधुमेह के डॉक्टर को फोन कर सारी बात बताई। उन्होंने मुझे पापा को साथ लेकर आने को कहा।
पापा की हालत को देखते हुए उन्होंने एम.आर. आई करने की बात की। पापा थोड़े घबरा से गये। पर मैं पापा के साथ पूरे टैस्ट के दौरान खड़ी रही। वह मुझे देखते रहे और मैं उनका होंसला बढ़ाती रही, ठीक वैसे ही जैसे वह मेरा होंसला बढ़ाते थे जब डॉक्टर बचपन में मुझे इंजेक्शन लगाते थे।
जब पापा की रिपोर्ट आई तो मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। पापा को पिछले दो साल से अल्जाइमर (भूलने) की बिमारी थी और हम इस बात अनभिज्ञ थे।
डॉक्टर के हिसाब से जैसे - जैसे उम्र बढ़ेगी यह बिमारी भी उतनी ही बढ़ती जाएगी। अब हमें पापा का ज़्यादा ख्याल रखने की ज़रूरत थी।
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एक दिन पापा मां की तस्वीर के सामने खड़े थे। उन्हें बहुत गौर से देख रहे थे।
"पापा आप तस्वीर को ऐसे क्यों देख रहे हैं?" मैंने पापा को उनका दूध का गिलास पकड़ाते हुए कहा।
"मैं याद कर रहा हूं कि यह महिला कौन हैं? पर याद नहीं आ रहा।" पापा ने बच्चों की तरह कुछ दूध कपड़ों गिराते हुए और कुछ पीते हुए कहा।
"आप इन्हें भूल गए?" मेरी आंखों में आंसुओं का समन्दर उमड़ पड़ा।
फिर मैं अलमारी से मां-पापा की शादी की एलबम निकाली।
उन्हें एक -एक कर सारी तस्वीरें दिखाईं। और याद दिलाया कि वह जिसे भूल गए थे वह उनकी जीवनसंगिनी है।
अब मैं रोज़ पापा को कभी अपने बचपन की तो कभी शादी की, कभी इशान और पूजा के बचपन की, फोटो एलबम दिखाने लगी। उन्हें कभी तो कुछ लोग याद आ जाते और कुछ याद दिलाने पर भी याद नहीं आते।
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"आज मुझे किसी ने खाना नहीं पूछा।" पापा ने कार्तिक से शिकायत लगाते हुए कहा।
"पर पापा अभी कुछ देर पहले ही तो आपने खाया था खाना।" मैंने हैरान होकर कहा।
"तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं? देखा बेटा ये कैसी हो गई है अब।" पापा ने कार्तिक से कहा।
कार्तिक ने फौरन मुझे खाना लगाने को कहा। मैंने उसे इशारा किया कि यह तीसरी बार पापा खाना खा रहे हैं। हाज़मा खराब हो जाएगा। पर कार्तिक ने मुझे इशारे से खाना लाने को कहा।
मैं जब खाना लाई तो पापा रूठ कर बैठ गए," मैं नहीं खाऊंगा। तू मुझे खाना नहीं देती।"
"मेरे प्यारे पापा, मुझे माफ कर दो। अच्छा देखो मैंने अपने कान पकड़ लिये। चलो मैं आपको खिलाती हूं।" मैंने पापा को गले लगाते हुए कहा।
पापा एक छोटे बच्चे की भांति मेरे हाथों से खाना खा रहे थे और मैं उन्हें खाना खिलाते हुए अतीत के पन्नों में फिर खो गई जब किसी बात पर रूठने पर पापा मुझे अपने हाथों से खाना खिलाते थे।
खाना खाने के बाद पापा हो गये।
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पापा की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी। अब तो वह हर बात पर सवाल करते थे और हमारे बताने पर भी जब उन्हें याद नहीं आता था तो वह बहुत परेशान हो जाते थे।
एक दिन पापा हमें बिना बताए घर से निकल गये। जब हमें पता चला तो हम सब उन्हें ढूंढने में लग गए। पार्क, मंदिर, बाज़ार हर तरफ ढूंढ लिया पर नाकाम रहे।
मेरा रो - रो कर बुरा हाल हो गया था। पापा अगर रास्ता भूल गए तो क्या होगा। कार्तिक ने पुलिस को सूचित करना उपयुक्त समझा।
पुलिस भी पापा को ढूंढने में लग गई। सुबह से रात हो गई पर पापा नहीं मिले। मेरा दिल किसी उन्होंने की तरफ इशारा कर रहा था।
हमने सभी हॉस्पिटल में भी फोन घुमाए। ऐसे हालात में मन में उल्टे-सीधे ख्याल आना स्वाभाविक है। हम सब थक हार कर बैठ गए। पूजा ने बहुत कोशिश करी कि वह मुझे खाना खिला सके। पर मेरे गले से एक भी निवाला नहीं उतर सकता था। पापा की फ़िक्र ने भूख-प्यास भी खत्म कर दी थी।
जब हम सब मायूस होकर बैठे थे तभी दरवाज़े पर घंटी बजी। हमारे सामने हमारी बिल्डिंग के चौथे फ्लोर पर रहने वाले डॉक्टर खरे खड़े थे। उनके साथ फटे हुए कपड़ों में पापा खड़े थे।
पापा को देखते ही मैं खुशी से झूम उठी। और उन्हें गले से लगा लिया। पर पापा वहीं जड़ अवस्था में खड़े रहे। उन्होंने मुझे प्यार भी नहीं किया।
"पापा आप कहां चले गए थे? हम सब कितना परेशान हो गए थे। आपको जाना था तो बता कर जाते।" मैं बोलती जा रही थी और वह मुझे आंखों में उलझन लिए सुन रहे थे।
"पापा आप बोलते क्यों नहीं? कुछ तो बोलिए।" मैंने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा।
उन्होंने झट अपना हाथ छुड़ा लिया और बोले,"आप कौन हैं। मैं आपको नहीं पहचाना।"
यह शब्द सुनते ही मेरी तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई। पापा आज मुझे भूल गए। पर उन्होंने मुझसे प्रोमिस किया था कि वह मुझे कभी भूल ही नहीं सकते।
डॉक्टर खरे ने कार्तिक को बताया कि उन्होंने पापा को सिग्नल पर भीख मांगते देखा था। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि क्या हुआ है। उन्होंने फौरन पापा को गाड़ी में बैठाया और घर ले आए।
कार्तिक ने उनका धन्यवाद किया
मेरी आंखों से आंसू बहे चले जा रहे थे। "कार्तिक आज पापा मुझे भूल गए।" मैंने रोते हुए कहा।
"स्नेहा यह तो एक दिन होना था। डॉक्टर ने तुम्हें इस बात के लिए पहले से ही तैयार रहने को कहा था। है ना? फिर क्यों रो रही हो? अब हमें पापा का ज़्यादा ध्यान रखना चाहिए। ऐसा करता हूं एक नर्स रख लेते हैं। जो हर समय उनके साथ रहेगी। ठीक है।" कार्तिक ने कहा।
मैं कुछ और ही सोच रही थी। पर क्यूं ऐसा सोच रही थी नहीं मालूम। पर अंदर से एक अजीब सी बेचैनी थी। वही अजीब सी बेचैनी मुझे पापा के कमरे तक ले गयी। और वहां जो देखा तो रोंगटे खड़े हो गए। पापा ज़मीन पर गिरे हुए थे। बेहोश थे।
हम फौरन उनको लेकर हॉस्पिटल भागे।
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आज का दिन
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स्नेहा धीरे धीरे आई सी यू की तरफ बढ़ी। उसकी बेचैनी और डर सच हो गया था।
बचपन में उस दिन झूले पर उसके पापा ने कहा था कि जिस दिन वह उसे भूल जाएंगे वह उनकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा।
आई सी यू में पहुंच उसने देखा कि उसके पापा के मुंह पर, हाथों पर, नलियां लगी हैं और वह तेज़ - तेज़ सांस ले रहे हैं। डॉक्टरों ने उन्हें जवाब दे दिया।
कार्तिक ने फौरन उसे संभाला। वह जानता था कि स्नेहा इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकेगी।
उसके पापा ने उसे देखा और इशारे से उसे बुलाया और कहा,"मुझे कुछ याद नहीं आ रहा..... कि तुम कौन... हो। पर मेरे लिए ...रो रही हो... तो ज़रूर मेरी... अपनी होगी। माफ ... करना...." और उन्होंने उसे प्यार से देखा और आंखें बंद कर लीं। और वह चले गए हमेशा के लिए।
स्नेहा इस सच्चाई से भलीभांति परिचित थी कि इस संसार में जो आया है वह जाएगा भी। पर दुख इस बात का था कि वह उसे भुला कर गए। उन्हें अपनी स्नेहू याद नहीं रही। वह अपने पापा के अवचेतन शरीर से लिपट कर रोती रही,
"पापा, आप मुझे भूल गए।"
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