युग पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल
भारत के विस्मार्क , विस्मार्क से भी ज्यादा काबिल ,कौटिल्य के जैसी कूटनीति,शिवाजी महाराज के जैसी दूरदर्शिता हर भारतीय हृदय के सरदार ,कुछ ऐसा परिचय है वल्लभ भाई पटेल का।
31 अक्टूबर 1875 को एक सितारा झवेर भाई पटेल और लाडबा देवी के घर आसमान से उतरा था।
देश के भविष्य की दिशा जिसने तय की।
आजादी से पहले और आजादी के बाद इन्होंने देश के लिए खुद को झोंक दिया।
प्रारंभिक काल में उन्होंने अपने आप को एक वकील के तौर पर स्थापित किया, वे प्रखर वक्ता थे।
एक बार का वाकया था ,जब वो क्रांतिकारियों के लिए न्यायालय में बहस कर रहे थे ,उसी समय किसी में एक पर्ची पकड़ाई,जिसे पढ़ वल्लभ भाई ने पर्ची जेब में रख ली ,और बहस जारी रखी।बाद में जब उनसे पर्ची के विषय में पूछा गया तो पता चला कि उस पर्ची में उनकी पत्नी के देहांत की खबर थी,उसे पढ़कर भी वे बहस करते रहे।उनका कहना था ,जो चला गया वो तो लौट कर नहीं आएगा परंतु जो है उसे जाने से रोका जा सकता है।
1917 तक वे भारतीय राजनीतिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहे।
अंग्रेजों की शैली के कपड़ों ,और फैशनेबल गुजरात क्लब में ब्रिज चैंपियन के रूप में जाने जाते थे।
1917 के बाद गांधीजी के संपर्क के बाद उन्होंने अपनी दिशा और दशा ही बदल दी।अंग्रेजी कपड़ों का त्याग कर भारतीय किसान की तरह कपड़े पहनने लगे।
खेड़ा आंदोलन ,बारडोली आंदोलन में उनका सक्रिय योगदान रहा।अंग्रेजों ने किसानों के उपर अत्यधिक लगान लगा दिया जिसका विरोध वल्लभ भाई ने किया ,और इस आंदोलन के आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा , उस समय उन्हें कुशल नेतृत्व के लिए सरदार की उपाधि दी गई।
अब वे सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे।
आजादी मिल तो गई लेकिन उसके बाद ,सबसे बड़ी समस्या थी भारत में रियासतों का विलय कर अखंड भारत का निर्माण।
आजाद भारत के उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में पटेल ने 600 से ज्यादा देशी रियासतों को जिस बुद्धिमत्ता और दृढ़ता के साथ भारत में मिलाया वह अपने आप में मिशाल है।सिर्फ कुछ रियासतों जैसे जूनागढ़,हैदराबाद,और भोपाल,कश्मीर के लिए उन्हें थोड़ी कूटनीति और कुछ बल प्रयोग का सहारा लेना पड़ा।
सरदार ऑफ इंडिया के लेखक अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि रूसी प्रधानमंत्री निकोलाई बुलगानिन का कहना था की "आप भारतीयों के क्या कहने !आप राजाओं को समाप्त किए बिना रजवाड़ों को समाप्त कर देते हैं"।
15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गई , वे इतने सबके अजीज थे कि के एम मुंशी ने अपनी किताब "पिलग्रिमेज " में लिखा था कि नेहरू नहीं चाहते थे की कोई राष्ट्रपति किसी कैबिनेट मंत्री की अंत्येष्टि में भाग ले,इससे गलत परंपरा शुरू होगी।
फिर भी राजेंद्र प्रसाद गए ,आंखों में आंसू के साथ उन्होंने चिता के पास भाषण भी दिया।
राजेंद्र प्रसाद ने अपने भाषण में कहा था
"सरदार के शरीर को अग्नि जला तो रही है,लेकिन उनकी प्रसिद्धि को कोई अग्नि नहीं जला सकती"।
उनके अखंड भारत के योगदान के लिए 2014 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में घोषित किया।
इनके सम्मान में देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2018 को एकता की मूर्ति अर्थात स्टैच्यू ऑफ यूनिटी रास्ते को समर्पित किया।प्रतिमा एक छोटे चट्टानी द्वीप "साधू बेट" पर स्थापित किया गया जो केवडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है।
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