बस यूँ ही



रिश्ता नहीं है तुमसे
कोई मोह भी नहीं हैं।
फिर भी न जाने क्यूँ
कुछ तार से जुड़े हैं।
सिवाय बात करने के
कोई चाहत नहीं हैं।
कुछ कहने, सुनने के
अलावा तृष्णा नही हैं।
रोज बस अतृप्त रहती हूँ
तेरीआवाज सुन  तृप्त होती हूँ।
पर रोज कहाँ तृप्त होती हैं,
ये तृषा मेरी।
अतृप्त जागती हूँ
अतृप्त हूँ सोती।
दुनिया के मैंने कई रंग देखे
छोटी सी उम्र में कई ढंग देखे।
तुमसे जो मिली तो
यूँ ही एक विश्वास आ गया।
रिश्ता नहीं हैं,
फिर भी तू यूँ ही 
मन में बस
नजरों में छा गया।
बस यूँ ही......।
गरिमा राकेश गौत्तम
कोटा राजस्थान

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