एक टुकड़ा धूप का भाग १६

गतांक से आगे
संतोष अपनी भाभी के विषय में संयोगिता को बताता है कि जब से बुआ जी ने भाभी के खिलाफ मां के कान भरें है तब से भाभी को बहुत बुरा लगा है और वो अपने आपको खत्म करने के लिए जा रही थी अगर मैं इनके पीछे पीछे जाकर इन्हें बचा नहीं लेता तो ये अपने साथ साथ उस नन्हें से चिराग को भी खत्म कर देती जो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं था। वो बच तो गई लेकिन उन्होंने यह ठान लिया है कि अब वो घर नहीं लौटकर जाएंगी , वो यहीं रहेंगे आश्रम में रह कर अपना शेष जीवन बिता लेंगी। हमने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वो मान ही नहीं रही हैं। हारकर जबरदस्ती घर ले जाना चाह रहे थे हम, ताकि घर की इज्जत बनी रहे।तो वो चीखने चिल्लाने लगीं। अब आप ही बताइए हम क्या करें? अगर भाभी यहां रहती हैं तो हमारी समाज में कितनी थू थू होगी। लोग हमारा जीना हराम कर देंगे। लोग यही कहेंगे कि भाई के मरने के बाद हमने भाभी को घर से निकाल दिया। आप उन्हें समझाइए शायद वो आपकी बात मान जाएं। और अपनी जिद छोड़कर हमारे साथ घर चलने को तैयार हो जाएं। हम लोग इलाहाबाद के रहने वाले हैं यहां भैया भाभी रहते थे। भाभी की प्रेगनेंसी की खबर  थी , घरमें खुशियों का माहौल था  तो मां और बाबूजी भी यहीं आ गए थे। लेकिन इससे पहले ही ये सब हो गया ।हम सब लोग अब भी भाई की अस्थियों को लेकर अपने घर इलाहाबाद जाना चाहते हैं ताकि उनकी अस्थियां संगम में प्रवाहित कर सकें । लेकिन ये जाने को तैयार ही नहीं हैं , और ये यहां रहेंगी तो हमारी बहुत बदनामी होगी।

संयोगिता ध्यान से संतोष की बातें सुन रही थी । उसे भी चिंता हुई कि एक गर्भवती स्त्री कैसे यहां रहेगी ? उसकी देखभाल यहां कैसे हो पाएगी? माना कि मां साहेब बहुत ही अच्छी हैं बहुत दयालु हैं लेकिन वो अकेले कैसे इनका ख्याल रख पाएंगी। और उसका तो कोई भरोसा नहीं पता नहीं कितने महीने इस दुनिया की मेहमान है नौ महीने...… छह महीने? तीन महीने? या एक महीने ?

उसका दिल भर आया ये सोचकर, काश ईश्वर उसे थोड़ी और मोहलत दे देता तो वह किसी के काम आ सकती। क्यों ईश्वर ने उसे इतना मजबूर कर दिया कि वह  चाहते हुए भी किसी के लिए कुछ भी नहीं कर सकती। दिन प्रतिदिन उसका शरीर उसका साथ छोड़ने लगेगा ।एकदम लाचार हो जायेगी वो । ना चाहते हुए भी आंखों से दो बूंदे टपक पड़ी। संतोष ने उसे रोते हुए देखा तो उसके दिल को धक्का सा लगा। पता नहीं क्यों वो इतने कम समय में ही  बहुत अपनी अपनी सी लगने लगी थी। ना जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि इस नाजुक सी दिखने वाली लड़की के अंदर दर्द का अथाह समंदर हिलोरे मार रहा है और ऊपर से ये शांत झील सी दिखने वाली लड़की अंदर से कितनी दुखी है। संतोष बेखुद सा उसे देख रहा था, उसके आंसू उसे अपने सीने में महसूस हो रहे थे। उसका दिल कर रहा था कि वो उसके आंसुओ को पोंछ लें और उससे कहे कि तुम ऐसे मत रोया करो, तुम्हारे रोने से मुझे बहुत तकलीफ होती है। लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकता था , उन दोनों के बीच एक अदृश्य दीवार थी, और संयोगिता ने अपने चारों ओर एक घेरा बना रखा था जिसे भेद पाना ब मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन था। संतोष का पहली ही मुलाकात में संयोगिता के प्रति आकर्षित हो जाना आश्चर्यजनक है लेकिन प्रेम ऐसी चीज है जो कब किस पल किस व्यक्ति के लिए उत्पन्न हो जाए ये कोई नहीं जान सकता। संतोष को भी शायद संयोगिता से प्रेम ही हो गया था। तभी तो वो उसको अपने दिल में बिठा चुका था। उसकी आंखों से निकलने वाले  हर आंसू से उसे फर्क पड़ने लगा है और वो भी सिर्फ एक ही मुलाकात में । 
संतोष से रहा नहीं गया उसने संयोगिता से पूंछ ही लिया

आपकी आंखों में आंसू क्यों? क्या आपको कोई तकलीफ है? आप मुझसे अगर चाहे तो शेयर कर सकती हैं। संतोष ने झिझकते हुए पूंछ लिया।

नहीं ऐसा कुछ नहीं है, बस यूं ही आंख में कुछ पड़ गया था। हमें कोई समस्या नहीं है। आप परेशान न हों। हम आपकी भाभी को समझाने का पूरा प्रयास करेंगे। और हमें विश्वास है कि वो हमारी बात जरूर समझेंगी। संयोगिता ने थोड़ी सी बेरुखी से कहा, उसे संतोष की आंखों में अपने लिए कुछ दिख रहा था। वो नहीं चाहती थी कि कोई पुरुष उसकी जिंदगी में दखल दे।

जी, जरूर मैम, अच्छा ,क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं? अगर आपको बुरा ना लगे तो?

संयोगिता.... संयोगिता राजपूत । अब आप जाइए, हमें कुछ काम करना है।

  उसकी बेरुखी देखकर संतोष की  आगे कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं हुई। वो वहां से उठकर बाहर चला आया।
वो अपने ख्यालों से उसको जितना दूर करने की कोशिश करता उतना ही अपने आपको बेबस पाता। 

संयोगिता ने संतोष की भाभी प्रियंका से  से बात की उसे बहुत समझाया , तब कहीं जाकर वो अपने घर जाने के लिए राजी हुई । संयोगिता ने कहा

प्रियंका, आप चिंता मत करिए, हम आपसे मिलने इलाहाबाद  आते रहेंगे। अगर आपको थोड़ी सी भी तकलीफ हुई तो हम आपको आश्रम वापस ले आयेंगे।

संतोष अपनी भाभी प्रियंका को लेकर  चला गया जाते समय उसने एक नजर संयोगिता को देखा लेकिन संयोगिता ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। जैसे वो कह रही हो कि

तुम लाख उलझो हमारे तसव्वुर में
हमें आपकी बातों में आना नहीं है
मर्द कैसे होते हैं हमको पता है
फिर से उस राह में जाना नहीं है

संयोगिता चुपचाप अपने कमरे में चली गई , और आराम करने का सोच ही रही थी कि तभी मोहन ने बताया कि मां साहेब का फोन आया है वो दो बजे की गाड़ी से आ रही हैं और साथ में मिशेल दीदी भी है। 

संयोगिता को बहुत खुशी हुई। मां साहेब के बिना ये आश्रम सूना सूना लगता है। और पहली बार वो मिशेल से भी मिलेगी यह जानकर वो बहुत ही एक्साइटेड थी। उसने सारा इंतजाम कर लिया मां साहेब के आने से पहले । ताकि उन्हें और मिशेल को कोई तकलीफ न हो। 
दो बज चुके थे तभी एक गाड़ी आश्रम के गेट के पास आकर रूकी , जिसमे से सफेद चोंगे में लिपटी पवित्रता की मूर्ति सिस्टर मारिया बाहर निकली। और फिर स्लीवलेस टॉप और मिनी स्कर्ट पहने हुए एक लड़की 
  बाहर आई जिसे देखकर संयोगिता चौंक गई ......

क्रमशः

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