तेरे बिन
लिख तो लेती हूं,
पर पढ़ नहीं पाती,
लफ्ज़ो को तुम्हारे,
जी नहीं पाती,
तेरे बिन.........
बैठ के सोचती हूं,
रेत के मैदान में,
जल तो लेती हूं,
पर सुलग नहीं पाती,
तेरे बिन........
लहरों के थपेड़े में,
सह तो लेती हूं,
तैरना न जानती,
पर डूब नहीं पाती,
तेरे बिन............
रात की तन्हाई में,
तकिए के सहारे,
रो तो लेती हूं,
पर सो नहीं पाती,
तेरे बिन...........
अक्सर बन्द किताबें,
खोले बिना ही,
खत्म कर लेती हूं,
पर सीख नहीं पाती,
तेरे बिन...........
डाली पे सजे,
लाल गुलाबों को,
तोड़ तो लेती हूं,
पर महक नहीं पाती,
तेरे बिन..........
इंदु विवेक उदैनियाँ
(स्वरचित)
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