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Showing posts from February, 2022

पीबी कालेज स्थित शिव मंदिर में शिव प्रार्थना

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1898से गुरु-शिष्य प्रार्थना स्थल पर शिव स्तुति करते हैं शिवाकांत शम्भो शशांकार्ध मौले, महेशान शूलिन जटा जूट धारिन। त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप, प्रसीद-प्रसीद प्रभो पूर्णरूप। परात्मानमेकं जगदबीजमाद्यम, निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम। यतो जायते पाल्यते येन विश्वम, तमीशंभजे लीयते यत्र विश्वम। न भूमिर्न चापो न वहिर्न वायु:, न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा। न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो, न यस्यास्तिमूर्ति स्त्रिमूर्तिम तमीडे। अजं शाश्वतं कारणं कारणानां, शिवं केवलं भासकं भास्कनाम। तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं, प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम। नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते, नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते। नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य, नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य। प्रेषक : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र .

शिवरात्रि की रात

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"आज फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि है मांजी । इस दिन भगवान शिव के साथ - साथ शिव परिवार  अर्थात माता पार्वती और उनके पुत्र भगवान गणेश एवं कार्तिकेय जी  की भी पूजा की जाती है । भगवान शिव के प्रिय गण नंदी की भी आज पूजा की जाती है । मैं....ने .... पूजा इससे आगे कुछ और बोल पाती उससे पहले ही उसकी सास ने उसे रोकते हुए बीच में ही बोलना शुरू किया और उसकी तरफ गुस्से में देखते हुए कहा :- " देखो बहू ! तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारा पति ईश्वर को नहीं मानता है । याद है तुम्हें ?  शादी करके जब तुम आई थी, पहले दिन ही जब उसने तुम्हें अपने साथ लाए हुए देवी मां की तस्वीर की पूजा करते हुए देखा था तो उसने तुम्हें क्या - क्या नहीं सुनाया था ? याद तो होगा ही तुम्हें इसीलिए मैं नहीं चाहती  कि आज शिवरात्रि के दिन घर में कलह हो । जब तक मेरे पति जिंदा थे तब तक वह मेरा समर्थन करते थे इसलिए मैं अपने बेटे के विरोध के वावजूद भी  शिवरात्रि का व्रत कर  लेती थी लेकिन जब से वह मुझे छोड़ कर गए हैं, मेरे बेटे ने मुझे कोई  भी व्रत  करने नहीं दिया । पहले मुझे भी बहुत...

मेरी दुनिया थी तू भाग_5

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     रितु ,सुयश के साथ कार में बैठ गई ।सुयश ने  उसी कॉफी शॉप के सामने कार रोकी। रितु ने जैसे देखा उसका दिमाग गरम हो गया,उसने कहा प्लीज डॉक्टर सुयश अगर आपको यहीं चलना है, तो आप मुझे घर पर ही ड्रॉप कर दीजिए और कॉफी मैं बहुत अच्छा बनाती हूं ,आप मेरे घर पर ही अपनी बात  कह भी सकते हैं। सुयश समझ गए कि इस कॉफी शॉप से शायद रितु की कोई गहरी याद जुड़ी है,उन्होंने कार आगे बढ़ाया और दूसरे कैफे में पहुंचे। बिना लाग लपेटे कॉफी की चुस्की लेते हुए डॉक्टर सुयश ने कहा_रितु मैम,आप ज्यादातर गुमशुम रहती हैं,केवल बच्चों के बीच ही खुश रहती हैं। रितु ने कहा _हां ,मुझे बच्चे पसंद हैं। मैने सुना आपकी एक बेटी थी _,सुयश ने बात को आगे बढ़ाया। जी सही सुना,मेरी एक छोटी बेटी थी ,जो अब इस दुनिया में नहीं है 10 साल हो गए ,उसे मुझसे बिछड़े हुए। आपने दूसरी शादी का नहीं सोचा ,आपको अकेलेपन से डर नहीं लगता _डॉक्टर सुयश ने कहा। कहां है अकेलापन ,रितु हंसी।मुझे तो लगता है 24 घंटे भी कम हैं मेरे लिए,क्लास,और फिर बच्चों के बीच कैसे समय निकल जाता है ,पता ही नहीं चलता। और आप मुझसे जो पूछ रहे हैं,अब ...

शिवरात्रि

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पावन ये घड़ी आई, मंगल की बेला छाई। विवाह है गौरा संग, सभी गण आइए।। धूनी रमी अंग-अंग, छाने लगा प्रेम रंग। रुद्र जाते हैं मगन, नगाड़े बजाइए।। वर माला लिए हाथ, चली सखी संग साथ। अंखियन लाज सजी, फेरे तो लगाइए।। शिव-रात्रि आई आज, पूरे होंगे सब काज। शिव-गौरा का जो साथ, आशीर्वाद पाइए।। मनीषा अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश

तुम बिन जीवन, जीना नहीं

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तुम बिन जीवन, जीना नहीं। तुम बिन जीवन, कुछ भी नहीं।। सपना तुम्ही हो, मेरे जीवन का। तुम बिन खुशी मेरी, कुछ भी नहीं।। तुम बिन जीवन--------------------।। एक रोशनी बनकर, आई हो तुम। एक गुलशन बनकर, आई हो तुम।। रोशनी तेरे बिना, नहीं जीवन में। तुम बिन महक, कुछ भी नहीं।। तुम बिन जीवन------------------।। कितनी हसीन, तुम लगती हो। माहताब जैसी, तुम लगती हो।। नहीं कोई खूबसूरत, तुम जैसा। तुम बिन मुहब्बत, कुछ भी नहीं।। तुम बिन जीवन-------------------।। जोड़ी हमारी, रब ने बनाई है। किस्मत हमारी, रब ने सजाई है।। निभाऊंगा अपना वादा, मैं तुमसे। तुम बिन दुनिया यह, कुछ भी नहीं।। तुम बिन जीवन------------------।। साहित्यकार एवं शिक्षक- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)

शिवरात्रि

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भोले नाथ देखो चले, सर्प गले संग भले। खुश गौरा होने लगी , तपस्या पूरी हुई।। आज घर आने वाले, भस्म अंग लगा डाले। लगते मनभावन, गौरा शिव की हुई।। माता मैना चिंता करे, नाजों पली बेटी डरे। काले - काले नाग देख, बेटी बावरी हुई।। चली गौरा भोला संग, ढ़ली देखो पिया रंग। शिवरात्रि आज आई, भक्तों में खुशी छाई।। *** कविता झा काव्या कवि रांची, झारखंड

फागुन भाग ४

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   भगवान सूर्य नारायण आसमान तक आ गये और सुजान अभी तक बिस्तर पर ही था। रात बहुत देर में वह अपने घर आया था तो जगने में देर हो गयी। वैसे सच्ची बात तो यह थी कि उसे नींद ही सुबह के समय आयी थी। ज्यादातर समय तो वह बिस्तर पर करवट बदलता रहा था। ज्यादातर समय वह बाबा की बातों की समीक्षा कर रहा था। वैसे वह खुद उन बातों को सही मान रहा था फिर भी उसका साहस उसका साथ नहीं दे रहा था। बड़े से बड़े सांड़ को फसल से भरे खेत से भगाने का साहस रखने बाला युवक अपनी प्रेम की राह पर आगे बढने का साहस नहीं कर पा रहा था। सचमुच मुख्य साहस तो विचारों को मूर्त रूप देने में है। फिर उसे तो दूसरे प्रेमियों से भी अधिक साहस दिखाना हो सकता है। प्रेम की अधिकांश कहानियाँ छोटे बड़े, मजहब और जाति के बंधनों में बंध अपना अस्तित्व भुला देती हैं। पर सुजान की प्रेम गाथा तो एक ऐसी गाथा थी जिसकी पात्रा ही वैधव्य का दंश भोग रही थी। खुद निर्दोष होने पर भी अपनी पति की मृत्यु की दोषी समझी जा रही थी।    सुजान के सामने बार बार सुंदरिया का चेहरा आता। जिस दिन रमतो भैय्या बीमार हुए थे, वही तो उन्हें अस्पताल लेकर गया था। साथ मे...

मनी मनी

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सबका सपना मनी मनी। बिन इसके ना धनी-धनी। मनी हो तो मान भी बनी-बनी। मनी संग स्नेह भी सनी-सनी। वीरानी नहीं सब घनी-घनी। मुस्कान लबों से छनी-छनी। जेब में मनी,कद भी तनी-तनी। मनी संग लगो सबको फनी-फनी। सबका सपना मनी-मनी।           -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण

इंकलाब जिंदाबाद ;भगत सिंह भाग २६

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 नौजवान भारत सभा लाहौर का घोषणापत्र ( तृतीय भाग) -  पंजाब के नौजवानों ,दूसरे प्रांतों के युवक अपने क्षेत्रों में जी तोड़ परिश्रम कर रहे हैं। बंगाल के नौजवानों ने 3 फरवरी को जिस जागृति तथा संगठन क्षमता का परिचय दिया उससे हमें सबक लेना चाहिए। अपनी तमाम कुर्बानियों के बावजूद हमारे पंजाब को राजनीतिक तौर पर पिछड़ा हुआ प्रांत कहा जाता है  , क्यों ? क्योंकि लड़ाकू कौम होने के बावजूद हम संगठित एवं अनुशासित नहीं है। हमें तक्षशिला विश्वविद्यालय पर गर्व है लेकिन आज हमारे पास संस्कृति का अभाव है और संस्कृति के लिए उच्च कोटि का साहित्य चाहिए ,जिसकी संरचना  सुविकसित भाषा के अभाव में नहीं हो सकती। दुख की बात यह है कि आज हमारे पास उनमें से कुछ भी नहीं है। देश के सामने उपस्थित उपरोक्त प्रश्नों का समाधान तलाश करने के साथ-साथ हमें अपनी जनता को आने वाले महान संघर्ष के लिए तैयार करना पड़ेगा। हमारी राजनीतिक लड़ाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ठीक बाद से ही आरंभ हो गई थी। वह कई दौरों से होकर गुजर चुकी हैं। बीसवीं शताब्दी के आरंभ से अंग्रेज तथा निम्न पूंजीपति वर्ग को सहूलियत देकर उन...

सबका सपना मनी मनी

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पैसा और इंसान का रिश्ता बड़ा गहरा है,  सदियों से ही चला आ रहा है ,       पैसा ही तो सब कुछ है,  पैसा है तो पहचान है  वरना सब बेकार है,  सब करते पैसा पैसा, इसके पीछे पागल इंसान है,  बड़ी अजीब कहानी है, इसके बिना जिंदगी विरानी है,  मनी मनी के चक्कर में सब लोग हुए घनचक्कर है,  अपने भी साथ छोड़ देते है जब जेब खाली होती है,  गैर भी अपने हो जाते है जब बटुऐ भरे होते है,  लोभ इसका इतना है कि सपने मे भी दिखता पैसा ,        दूर कर देता है इंसान को इंसान से ,            लोभ है इसका इतना बड़ा,        सपने मे भी बडबडाऐ पैसा पैसा,  यही सबकी जुबानी है, बड़ी अजीब कहानी है।

यूक्रेन

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आज कल "यूक्रेन" बहुचर्चित राष्ट्र की गणना में आ गया है।बहुत से लोग उसे गरीब, कमजोर और लाचार समझने की गलत फहमी में हैं जबकि यह सत्य नहीं है। आइए इस विषय में कुछ जानते हैं  -: भारतीय समाज के कुछ अति बुद्धिमानों ने एक अतार्किक तथ्य उधेड़ने  प्रारम्भ कर दिये हैं। इस वक्त युद्ध विभीषिका में फंसे हुए यूक्रेन को गरीब व पिछड़ा देश माना जा रहा है वह भी भारत की तुलना में। सोचा कि कुछ तथ्यों की ओर ध्यान दिलवा दूं, ताकि यदि तथ्यों की जानकारी नहीं है तो जानकारी उपलब्ध हो जाएगी।      यूक्रेन भारत की तुलना में अमीर देश है, अधिक विकासशील है। यूक्रेन की शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा व नागरिक सेवाएं भारत की तुलना में बहुत अच्छी हैं।     यूक्रेन सामरिक रूप से रूस की तुलना में कमजोर है इसका मतलब यह नहीं कि वह भारत की तुलना में पिछड़ा देश है या गरीब देश है। सामरिक दृष्टि से ताकतवर होना या न होना किसी देश को समृद्ध या गरीब नहीं बनाता है। आइए कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं। •  भारत भी लोवर-मिडिल इनकम इकोनॉमी की श्रेणी का देश है।  • यूक्रेन भी लोवर-मिडिल इनकम इकोन...

मेरी दुनिया थी तू भाग_4

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      रिया ओ रिया _वह चिल्ला रही थी।राधा भी खाना छोड़ दौड़ती हुई कमरे की ओर भागी।दोनों ने हिलाया डुलाया लेकिन कोई हरकत नहीं ।राधा ने कहा _अब रिया बेबी नहीं रही मैडम। रितु बुत बनी हुई थी।राधा ने उसकी खुली आंखों को बंद किया ,और नमित को फोन मिलाया। नमित शहर से दूर ग़ज़ल के साथ पार्टी कर रहा था। बहुत मुश्किल से कई बार फोन करने के बाद उसका फोन उठा तो,राधा ने रोते हुए बताया रिया बेबी अब नहीं रहीं आप आजायिए साहब,मैडम भी गुमशुम हो गई हैं। नमित ने कहा वो  सुबह से पहले  नहीं आ पाएगा ,वैसे तो सभी रस्में सुबह ही होंगी कह कर फोन काट दिया। राधा अवाक रह गई ,उसे आश्चर्य हो रहा था कि क्या बड़े  लोगों में जज्बात भी खत्म हो जाते हैं। मैं रिया की कुछ नहीं थी,लेकिन उसकी भोली मुस्कुराहट,उसका प्यार दिखाना सबकुछ कितना चुम्बकीय था,एक अनजान आदमी भी उस प्यारी बच्ची से प्यार कर बैठता ,और उसके अपने पिता को  उसकी मृत्यु पर भी कोई दुख नहीं। आस पास के लोग ,दूर के रिश्तेदार भी खबर सुन पहुंच गए। सुबह देर से नमित पहुंचा तो सभी रिश्तेदारों ने पूरी तैयारी कर ली थी उसे दफनाने की।आत...

फागुन भाग ३

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  गांव से ठीक उत्तर की दिशा में मुख्य मार्ग जो उसे नजदीकी कस्बे  से जोड़ता, कुछ वक्र गति से आगे बढता, दांयी और बांयी और छोटे छोटे रास्तों को जोड़ता जाता। उसी मार्ग पर लगभग आधा किलोमीटर की दूरी के बाद बांयी और की तरफ एक दगरा जो एक छोटे से जंगल की और जाता था। जंगल का अर्थ रीछ, शेर जैसे जंगली जानवरों के निवास स्थान से अलग एक सरकारी जगह जहाँ घने पेड़ थे। वैसे सरकारी संपत्ति तो जनता की ही माननी चाहिये। इसीलिये पूरे गाँव के लोग इसी जंगल से ईधन जुटाते। उसी जंगल और मुख्य मार्ग के मध्य दगरे के एक किनारे पर एक चबूतरे के ऊपर एक कुछ कच्चा, कुछ खपरैल का आशियाना जिसमें द्वार पर कोई फाटक भी न था। वैसे फाटक की जरूरत ही किसे थी। मढैया में रहने बाले बाबा के पास ऐसी क्या संपत्ति थी कि कोई चुराता। उसी जंगल के फलों और कंदमूलों से अपना जीवन चलाता, गांव से दूर रहकर भी दूर न था। पिछले दस सालों या उससे ज्यादा समय से भी वह सन्यासी यहीं था। हालांकि यह मढैया उसका आरंभ से निवास स्थल न थी। आरंभ में गांव के मंदिर में उसे श्रद्धा से जगह दी गयी थी। मंदिर में भगवान की उचित समय पर सेवा हो जाती। पर ऐसा अधिक दिनो...

यह तन सच में वतन के,काम में जब आये

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यह तन सच में वतन के, काम में जब आये। अमर सच में यह तन , इस जगत में कहलाये।। यह तन वतन के-----------------।। मन मैला ,तन उजला हो, बात यह अच्छी नहीं। तन मैला ,मन पापी हो , यह भी बात अच्छी नहीं।। तन से सभी का हो भला, परोपकारी तन कहलाये। अमर सच में यह तन, इस जगत में कहलाये।। यह तन सच में वतन --------------------------।। मानव तन को पाने वाले, बहुत नसीब वाले हैं। देखो दशा उन पशुओं की, जो नहीं बुद्धि वाले हैं।। सबको खुशी हमसे मिले, सुंदर तन यह कहलाये। अमर सच में यह तन,इस जगत में कहलाये।। यह तन सच में वतन------------------।। तन से अगर हो बलशाली, मत भूलो दया करना। मत फैलाओ दशहतगर्दी, रक्षा वतन की करना।। कुर्बान वतन पर हो जाये, यह तन शहीद कहलाये। अमर सच में यह तन, इस जगत में कहलाये।। यह तन सच में वतन-----------------।। साहित्यकार एवं शिक्षक-  गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

बंद दरवाजे

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महल के बंद दरवाजों के पीछे  बंद पड़ी हैं, अनगिनत कहानियां  जिनमें से कुछ चर्चाओं में आ गई तो कुछ सुनी जाती हैं लोगों की जुबानियां  कुछ प्रेम भरी, कुछ दर्द देने वाली  कुछ विरह की तो कुछ गुदगुदाने वाली  कुछ बेशर्मी की , कुछ बेहयाई की  कुछ वफाओं की, कुछ बेवफाई की  कुछ षडयंत्रों की , कुछ विश्वासघात की  कुछ पारिवारिक संबंधों पर कुठाराघात की  नारियों पर जुल्म के असीम प्रहार की  निर्दोष, मासूमों के निर्मम संहार की  केसरिया बानों की वीरता की उनके बलिदान की  वीर क्षत्राणियों के अद्भुत जौहर महान की  मीराबाई की भक्ति, प्यार की शक्ति की  पन्ना धाय की अप्रतिम स्वामीभक्ति की  दासियों को रखैलों की तरह इस्तेमाल की  तलवार की नोक पर होने वाले बवाल की  सौतेली माता के द्वारा अबोधों पर अत्याचार की  सिसकने को मजबूर होते देह व्यापार की  धर्म के नाम पर कटते हुए नरमुंडों की  ताकत के बल पर मनमानी करते मुस्टंडों की  अपने बेटे की खातिर किसी को वन भेजने की  अपनी ही कुलवधू को सभा में निर्वस्त्र करने क...

चन्द्रशेखर आज़ाद

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वीर सपूत थे भारत माँ के, नाम चंद्रशेखर आज़ाद। चबवा दिए चने गोरों को, फैलाएं जो सदा  विवाद।। सीना ताने  अकड़  चाल में,कर न सके कोई भी वार। धूल चटा दी अंग्रेजों को, जड़ें हिलाकर फेंके पार।। आजाद बोले नाम अपना, स्वतंत्रता  है बाप नाम। भारत माता का बेटा हूँ, जेल कहा निवास का नाम।। शौर्यपुंज थे शक्ति पुंज तुम, करते नमन  झुका कर माथ। सदियों तक पूजेंगे भ्राता, अर्ध्य चढ़ाएं दोनों हाथ।। वंदे मातरम गरज सुनके ,  दहली अंग्रेजी सरकार। सहमे शातिर धूर्त फिरंगी, जो थे बहुत बड़े मक्कार।। दिए प्राण आजादी खातिर, आये नहीं फिरंगी हाथ।। अंतिम गोली मारी खुद को, छोड़ गए हम सबका साथ।। क्रांति वीर हे लाल धीर , गए मात का कर्ज उतार। माँ भारती हो गई आहत,अल्फ्रेड बहा खून की धार। बिना बताए किरिया कर दी, आ गया जनता में उबाल। निकल पड़े घर से सब बाहर, आँखन आँसू रहे निकाल।। माटी खन के घर को ले गए,और लगाया अपने भाल। वह भूमि अति पावन हो गई, सोया जहाँ देश का  लाल।। याद करेंगे श्रद्धा  पूर्वक, प्यारे प्रखर  वीर आजाद।  सभी शोक में डूबे तेरे, तुमपर सदा देश को नाज।। शौर्यपुंज ...

"युद्ध और शांति"

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प्रगति का द्वार खोलता है शांति, युद्ध ने केवल नरसंहार किया, शांति ने किया सृष्टि का सृजन, युद्ध ने सभ्यता का विनाश किया। शांति ने बहायी प्रेम की रसधारा, युद्ध ने केवल रक्तपान किया, एक ने जलाए दीप आत्मा में, दूजे ने केवल अंधकार किया। शांति ने मनुष्य को बनाया देव, युद्ध ने मनुष्यता को शर्मसार किया, जहां शांति सिखाए वसुधैव कुटुम्बकम्, युद्ध ने भाई-भाई को शत्रु किया। स्वरचित रचना रंजना लता समस्तीपुर, बिहार

युद्ध और शांति

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ख़ामोश थे लब उसके मगर उसकी आँखें उसका हाले ए दिल  बया कर रही थी इन्तज़ार जो आँखो दे गया था  वो आया ही कुछ इस तरह से था हाथो की मेहंदी अभी ताज़ी थी महावर का रंग अभी फीका न हुआ था कलाइयों से भरा चूड़ा था।   सब चीख़कर उसके नए नबेली दुल्हन, होने की गवाही दे रहे थे , पूछ रहे थे कसूर अपना, अभी तो तन पर  उंसके सजे थे ।।  अपने होशो हवास में कहा थी वो अपने  सुहाग को खोने के बाद बस एक टक देखे जा रही थी निर्जीव पड़े अपने प्रियतम को कल तक जिसकी शरारतो से आँगन  महका करता था जिसकी खिलखिलाहट में बूढे माँ बाप की जान बसती थी।। आज वो सब को रोता छोड़ गया दे गया जिंदगी भर का दर्द और  दवा अपने साथ ले गया युद्ध मे कहा कोई जीतता है यहा जीता हुआ शख्स भी हारा है मैदाने ए जंग में, अपनो  की लाशों पर  ख़ुशी कैसे  मनाओगे जलाकर अपनो की चिता  फिर अपना घर कैसे रोशन करोगे।। रोक  सको तो रोक लो इस तबाही  कुछ भी हासिल न होगा वरना अश्क़ तो बहेगे मगर कोई पोछने वाला न होगा।। सुमेधा शर्व शुक्ला

नारी तेरे रुप अनेक

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सत्यम शिवम सुन्दरम की वह अनुरुप काली, लक्ष्मी, दूर्गा का स्वरूप है नारी नारी मे निहित है ये तीनो रुप दुनिया मानेगी नारी की महिमा का स्वरुप खेतो मे लहलहाती फसल है तू इन्द्रधनुष के सातों रंग है तू जीवन का आधार है तू सफलता का ऊचा आकाश है तू नारी तू अबला नहीं सबला है यही तो कमला, विमला व सरला है नारी के अनेक रुप वह जुल्म नहीं सहेगी  और गुलामी ना कर पाएगी वह भी पढने जाएगी, अपना भविष्य उज्जवल बनाएगी रंजना झा

इंकलाब जिंदाबाद ; भगत सिंह भाग २५

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 नौजवान भारत सभा लाहौर का घोषणा पत्र( द्वितीय भाग) - आगे भगत सिंह कहते हैं क्या हमें यह महसूस कराने के लिए  कि हम गुलाम है और हमें आजाद होना चाहिए, किसी दैवी ज्ञान या आकाशवाणी की आवश्यकता है? क्या हम अवसर कि प्रतीक्षा करेंगे या किसी अज्ञात की प्रतीक्षा करेंगे जो हमें जो महसुस कराए की हम दलित लोग हैं? क्या हम इन्तजार में बैठे रहेंगे की कोई दैवी सहायता आ जाए या फिर कोई जादू की हम आजाद हो जाए? क्या हम आजादी के बुनियादी सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं? "जिन्हें आजाद होना है उन्हे स्वयं चोट करनी पड़ेगी"। नौजवानों जागो , उठो ,हम काफी देर सो चुके हैं!  हमने केवल नौजवानों से ही अपील की है क्योंकि नौजवान बहादुर होते हैं, उदार एवं भावुक होते हैं, क्योंकि नौजवान भीषण अमानवीय यंत्रणाओं को मुस्कुराते हुए बर्दाश्त कर लेते हैं और बगैर किसी प्रकार की हिचकिचाहट के मौत का सामना करते हैं, क्योंकि मानव प्रगति का संपूर्ण इतिहास नौजवान आदमियों तथा औरतों के खून से लिखा है; क्योंकि सुधार हमेशा नौजवानों की शक्ति, साहस ,आत्मबलिदान और भावात्मक विश्वास के बल पर ही प्राप्त हुए हैं-  ऐसे नौजवान...

युद्ध और शांति

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युद्ध पर विराम हो , अब युद्ध पर विराम हो, युद्ध से हुआ नहीं भला किसी का, युद्ध से विनाश है प्रकृति का, शांति की अब बात हो, अब युद्ध का विराम हो, वार्ता हो बैठकर बेहतर होगा, हो न विवाद ये बेहतर होगा, देश का प्रत्येक तब ही कल्याण हो, अब युद्ध पर विराम हो विध्वंस ही विंध्वस मचा है चारों ओर, दे सका न ये युद्ध जन धन की न हानि हो, अब युद्ध पर विराम हो, इंदु विवेक उदैनियाँ

युद्ध का माहौल

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करूँ इबादत या करूँ प्रार्थना, मतलब दोनों के एक, बुद्धि दे सबको और इरादे नेक, ईश्वर की कृपा से मिली है हम सबको जीने की आज़ादी, रोक लो ये युद्ध का माहौल, बच्चे डर रहें, खौफ का समां है कैसे करेंगे जीवन यापन ग़र युद्ध जो छिड़ गया, क्या होगा अंजाम, क्या निकलेगा निष्कर्ष, अस्त व्यस्त हो जायेगा धरतीवासियों का जनजीवन, वीरानियों का होगा समां, छिन जायेगा अमन और चैन, फूटेगा ना अंकुर फिर जल्द, कैसे बसेगा खुशहाल जहान अनाथ बच्चों के माँ बाप की लाशों पर, कैसे चहकेगा फिर से अमन और शांति का चमन, आओ मिलकर क़र ले प्रण, नहीं छिड़ेगा फिर से रण। निकेता पाहुजा रुद्रपुर उत्तराखंड

युद्ध और शांति

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युद्ध किसी से हो कभी भी नहीं रहा है सुखदाई। युद्ध छिड़ा तो ना जाने कितनों ने है जान गंवाई। इतिहास गवाह है लिखे हुए हैं ये रक्तरंजित पन्नें। किसी काल का पढ़ें उठा के मिलेंगें सैकड़ों पन्नें। युद्ध तभी ये छिड़ता है जब अहम कहीं टकराते। तू बड़ी की मैं बड़ी में ये युद्ध विनाशी छिड़ जाते। जान माल प्रगति में छति दोनों देश-वर्ग ही पाते। एकदूजे से कम न समझते भले बाद में पछताते। महाभारत काल में कैसे युद्ध किए कौरव पांडव। अपने ही अपने को काटे हारे कौरव जीते पांडव। कुरुक्षेत्र की रक्तरंजित धरा आज भी लाल दिखे। दोनों सेनाओं के वीरों ने जानें गंवाईं साफ लिखे। चीन एवं भारत में भी युद्ध होचुका सभी जानते। भारत-पाकिस्तान में भी युद्ध हुएहैं सभी जानते। जबभी युद्ध हुएहैं देश कोई हो बहुत कुछ खोया। कितने सैनिक और नागरिकों को दोनों ने खोया। आपसी बातों एवं समझौतों में कोई अमल नहीं। युध्द कभी भी किसी अशांति का कोई हल नहीं। बच्चे जवान बूढ़े महिलाएं प्रेमी सभी होते हैं ढेर। मेरी ये गुजारिश है युध्द ना हो करें शांति की टेर। शांति सौहार्द्र रहे आपसी तभी विकास ये होता। राष्ट्र और नागरिकों सैनिकों का ये ह्रास न होता। फलता फू...

" स्वयं को जानें"

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आओ यात्रा करें स्व में ,,, बिना लब हिलाये चुपचाप स्व के एहसास में ,, खुद के जज्बात में, खुद के विश्वास में ,खुद के भाव में, खुद के भाव की प्यास में ,खुद के रग रग में, खुद के मन के तंरग में ,,,,।         पूरा अनन्त जिससे सजा है,          वही है खुद की ऊर्जा में, आओ ,,,, खुद से बातें करें ,,,,,     ऐसे-जैसे, अभी अबोध बालक हों जैसे ,,    न जानें कि धर्म क्या है? रीति-रिवाज क्या है?संस्कार क्या हैं ?      अँधकार क्या औ प्रकाश क्या है ,,,,?    क्या हैं जीवन के रंग, हाल क्या हैं ,,,? केवल इन्सान बनकर इन्सानियत को पहचाने ,,,,,,,,       स्व में रह कर वक़्त बिताएं। स्व का परिचय स्वयं से कराएं। स्वयं के अन्दर दीप जलाएँ।                  रचयिता --  सुषमा श्रीवास्तव मौलिक रचना रुद्रपुर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड।                                    ...

उम्र भर

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पैदल ही चला वो  सड़क पर उम्र भर , उम्र भर जो सड़क बनाता चला गया।  खुद का घर कभी नसीब नहीं हुआ,  उम्र भर जो तुम्हारे घर बनाता चला गया।  एक दीया दीवाली पर जला न सका , तुम्हारे घर को दीयो से सजाता चला गया।  मंदिर में उसके कभी अगरबत्ती न जली,  तुम्हारे लिए जो अगरबत्ती बनाता गया । बच्चे कभी उसके पढ़ नहीं पाए , विद्यालय जो तुम्हारे लिए बनाता गया । बच्चों को भरपेट भोजन कराना सका , तुम्हारी झूठी थाली जो उठाता गया । आंखें तो उसकी भी नम होती है , झूठे भोजन से जब भोजन चुराता गया।  जिस अस्पताल को बनाने में पसीना बहाया, अस्पताल के दरवाजे पर दम तोड़ता गया । जो देता गया तुमको दो वक्त का खाना ,  उसके घर कई बार चूल्हा जलाया न गया।  जो बुनते वस्त्र दुनिया के लिए,  देह को उनकी चिथड़ों से सजाया गया । पैदल ही चला वो सड़क पर उम्र भर , उम्र भर जो सड़क बना था चला गया।  गरिमा राकेश गौतम  कोटा राजस्थान

क्या यही प्यार है

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मानसिक शारीरिक आघात कर  अपना दंभित पुरुषुत्व का रूप दिखाते हो  जिस हृदय में बसता असीम प्रेम तुम्हारे लिए  उसे ही बड़ी निर्लज्जता से भावविहीन कर जाते हो क्या यही प्यार है क्या तुम इसे ही अपना प्यार कहते हो..........।  केरोसिन उड़ेल जलती माचिस की तीली फेंककर  अपने धड़कते दिल को तुम कैसे पाषाण बना जाते हो भले ही झूठ-मूठ का मोह जाल था तुम्हारी ओर से मेरे लिए दुष्टता से भरे कृत्य कर आखिर कौन सी संतुष्टि तुम पा जाते हो क्या यही प्यार हैं क्या तुम इसे ही अपना प्यार कहते हो..........।  स्त्री जाति स्त्री सम्मान पर खूबसूरत विवेचना कर तुम सबके मन पर अधिकार जमाने की कुशलता रखते हो अन्याय होने पर मुक बघिरों सा तुम चुप्पी साध लेते स्वार्थ लिए तब क्यूं सबको समझाने की उन कलाओं को परोस नही पाते हो क्या यही प्यार है क्या तुम इसे ही अपना प्यार कहते हो...........।  गुस्सा लिए आंखों में किसी कुसुम पर तेजाब की बौछार कर उसके जीवन को वीभत्स बना तुम कैसी आत्मसंतुष्टि पा जाते हो जिसके प्यार में तुम घंटों व्यर्थ करते उसके हुस्न के दीदार के लिए उसे कुरूप बना अपने प्यार क...

मेरी दुनिया थी तू भाग_3

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       शाम को मानस घर आया,रिया की हालत देख उसे रितु से सहानुभूति हो रही थी । उसने बताया कि नमित ने तुम्हारे बारे में झूठी खबर  फैलाई थी कि, तुम किसी को भी देखकर अपना आपा खो देती हो,हिंसक हो जाती हो।और  ये सब सुना उसने ऑफिस के स्टाफ में अपने लिए सहानुभूति बटोरी हुई है, मैं भी इसी कारण कभी घर नहीं आया _मानस कह रहा था। रितु कुछ न बोली। मानस ने आगे कहा_ नमित ने करीब दो साल पहले पर्सनल सेक्रेटरी की पोस्ट का विज्ञापन दिया था ,जिसमें कई लड़कियां इंटरव्यू देने आईं थीं,उसमें गजल नाम की भी लड़की थी ,जो बुद्धि और खूबसूरती में बेमिसाल थी ,उसका चयन हुआ,और उसके बाद  से नमित का झुकाव ग़ज़ल की तरफ होता गया।आज भी नमित उसी के साथ गया है।बिजनेस मीटिंग तो एक बहाना होता है जो महज 2,3 घंटों में खत्म हो जाता है ,और 2,3 दिन ये लोग सैर सपाटा करेंगे। रितु उन बातों को सुन अंदर ही अंदर  हिल गई ,उसके पांव तले से जैसे किसी ने जमीन ही सरका दी हो।उसके बाद मानस ने क्या कहा क्या नहीं ,उसे कुछ सुनाई नहीं दिया। थोड़ी देर बाद मानस ये कहता हुआ उठ खड़ा हुआ , रितु ये बात तुम नमि...

पलाश

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देखो, भर गया वृक्ष पलाश  आने वाला है मौसम खास। यादों में जैसे कोई खोया हुआ मुद्दातों के बाद आज जागा हुआ।  जैसे वीरान विराट जंगलों में  लगा नारंगी तिलक मंगलों में। पत्ते झड़ जाते जब पतझड़ में खास अकेले लहलाहाता नारंगी पलाश। अलसाई गौरी के उलझे गेशु मदमस्त भरा बहकता सा टेसू। बसंती हवा लगाती जंगल में आग रंग बिरंगी छटा , गाए मौसमी फाग। धीरे से कहता, मैं रंगों की हूं आस आने वाला है कोई त्यौहार खास। स्वरचित मौलिक,, अप्रकाशित कीर्ति चौरसिया जबलपुर मध्यप्रदेश

जंगल में मोर तो नाचा, मगर किसने वह देखा

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जंगल में मोर तो नाचा, मगर किसने वह देखा। जंगल में मंगल तो हुआ, मगर किसने वह देखा।। जंगल में मोर तो नाचा---------------।। नाम तो उसी का होता है , प्यार जो सबको करता है। हरता है दुःख जो औरों के, सम्मान जो सबका करता है।। प्यार वो ही पवित्र है, लोगों को जिसने स्वीकारा। आया जो दूसरों के काम, सम्मान जिसमें सबने देखा।। जंगल में मोर तो नाचा ------------------------।। जीवन देने में किसी को, बहाता है कोई खून को। चालाक लोग कहते हैं अपना,बहे किसी के खून को।। मिटा देते हैं उसका नाम, करके गन्दी राजनीति। वही है पूजने योग्य, जिसका बलिदान सबने देखा।। जंगल में मोर तो नाचा----------------।। जमाते हैं चोरी - छुपके , महफिलें शराब - शबाब की। सच में ऐसे ही लोगों ने , जिंदगी औरों की खराब की।। बनते हैं ऐसे ही मसीहा, कलयुग में इस धरती पर। पापी- पियक्कड़ लोगों की, दुनिया को किसने देखा।। जंगल में मोर तो नाचा----------------।। साहित्यकार एवं शिक्षक-  गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

पुष्प बहारों का

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रंग-बिरंगी फूलें बागों में, लहलहाती फूलों की गाँव... पीले-निले अतरंगी सी, मँहक उठूँ खुशबू मेंहकाऊँ... रंग-बिरंगी फूलों...... खिलखिलाती धूप की छिंटे, बिखरे इन्द्रधनुष की रंगों में... इन नजारों की बात अनोखीं, सजती जाये उल्फत गगन में... रंग-बिरंगी फूलें...... मैं मौसम की बादियों में, इतराऊँ कभी भौंरों को लाऊँ... मेरे कोमल सी पंखुरियों में ताज़ी-ताज़ी लुफ्त ऊठाऊँ... रंग-बिरंगी फूलें...... मैं हूँ बागों की अनोखीं रानी, प्यारी रंगों में बिभोर हूँ... झूम ऊठूँ प्राकृतिक के धून में, ना तुमसे मैं अब दूर हूँ... रंग-बिरंगे फूलें......        ✍️विकास कुमार लाभ                मधुबनी(बिहार)

प्रियतम के प्रेम की बह रही बसंती बयार

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पतझड़ का मौसम बीता,ये बसंत ऋतु आई है। सूखी शाखें हुई हरित हैं,ये आम्र मंजरी आई है। पीत वस्त्र सा ओढ़े ये धरती,मंद मंद मुस्काई है। रंगबिरंगे फूल खिले हैं,उर में ये खुशियाँ छाई है। नव यौवन का अनुपम,रूप धरे धरा मुस्काई है। ऋतु ने किया श्रृंगार है,देखो दुल्हन सी आई है। नव युगलों के दिलों में,प्यार की बदली छाई है। ऐसा है ये बसंत मौसम,सबने लिया अंगड़ाई है। कोयल कूकेगी डाली-2,मन का मयूरा नाचेगा। पपीहा टेर लगाएगा अब,जंगल में मोर नाचेगा। सरसो गेहूँ खेत में झूमें,किसान देखके नाचेगा। अपने फसलों को पकते,देख खुशी से नाचेगा। शीतल पवन बयार बहे,वन उपवन मुस्काए गा। कल-2 करती नदियाँ,यह झरने शोर मचाए गा। नई नवेली दुल्हन के मन,प्रेम पिया का भाएगा। सजनी होगी साजन संग,विरह भाग ये जाएगा। परदेशी पिया का प्यारा,अब लो साथ धराए गा। रूप एवं सौंदर्य सलोना,पिया मिलन कराए गा। होली के रंगों जैसा यह,सब रूप रंग हो जाएगा। ऋतु बसंत ये ऐसी है,गोरी तन मन भर जाएगा। रचयिता : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

फागुन भाग २

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   एक साल से थोड़ा ज्यादा ही गुजरा था जब रमतो की बरात में जाने का नौता आया था। सुजान का मन बल्लियों उछल रहा था। पर ऐन बक्त पर उसके अरमान मिट्टी में मिल गये। वास्तव में यह हर जिम्मेदार व्यक्ति की कहानी है। चाहे घर हो या कार्यक्षेत्र, कुछ के जिम्मे बस जिम्मेदारी ही आती हैं। फसल को समय पर पानी देना जरूरी है। जिस समय सुजान के हमउम्र रमतो की शादी में नाच रहे थे, उस समय सुजान उदास हो अपने खेतों पर बैठा सिचाई की व्यवस्था कर रहा था।      वैसे इस बारे में सुजान के घर बालों की भी पूरी गलती नहीं थी। वैसे सुजान के बारात में जाने की पूरी तैयारी थी। पर ऐन मौके पर जब रज्जो ताई ने सुजान के बाबूजी से हाथ जोड़ अनुरोध किया। पिता रहित रमतो की बरात में चाचा तो रहना ही चाहिये। फिर सुजान की बरात की टिकट कट गयी। वैसे भी यह कोई सरकारी नौकरी तो नहीं थी कि महीने के अंत पर बंधी तनख्वाह आती रहे। किसानों की खेती तो तब सार्थक होती है जबकि फसल की बाजिद कीमत मिल जाये। खेतों में खड़ी फसल तो विधाता की होती है जिसे किसान अपने पुरुषार्थ से अपनी बनाता है।     बरात से वापस आये युवकों क...

गाड़ियां लौहार की छोरी भाग 5

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पिछले भाग में हमने पढ़ा कि गाँव का एक लड़का सरवणी लौहार को छेड़ता हैं । पंचायत में गाँव वालों के सामने तो वह सरवणी से माफ़ी माँग लेता है । पर उसके दिमाग़ में उससे बदला लेने की खुराफ़ात चल रही हैं । अब आगें। पंचायत के बाद सब लोग निश्चिन्त हो अपने कामो में लग गए । दो - चार दिन तो सरवणी का भी घर से बाहर जाना बंद था । पर पापी पेट हैं । कब तक  घर में पड़े रह सकती थी । इसलिये फिर से रोजाना सामान बेचने गाँव में आने लगी । कुछ दिन तो सब ठीक ही रहा । पर फिर से कुछ  लड़के जगह - जगह टोली बनाकर बैठने लगें । उस लड़के को सरवणी की समय -  समय पर खबर देते रहतें । वो कब कहा जाती हैं कब कहा से आती हैं । इसी तरह से कुछ दिन आराम से कटे । सब निश्चिन्त हो अपने काम में लग गए । सब नॉर्मल हो गया । पर एक दिन वो समय आ ही गया जिसका उस वहसी दरिंदे को  इंतजार था । खबरियों  ने खबर दी कि सरवणी अकेली  खेतो की तरफ गई हैं । बस फिर क्या था शिकारी ने शिकार पर हमला कर दिया । अचानक हुए हमले में  सरवणी को संभलने का मौका भी नही मिला । उस कुत्ते ने  अपने पंजो से उसे बुरी तरह घायल कर दिया । अपने बचाव...

'नारी तेरे रूप अनेक'

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ममता की मूरत प्यारी सी तू लगती है, भोली सूरत तेरी कितनी न्यारी लगती है। कभी पक्की इरादों की तू नज़र आती है, कभी कच्ची माटी सी हर माहौल में ढल जाती है। ममतामयी माँ की माया तुझमें ही तो समायी है, बेटी,बहन का दुलार सारा भरकर तू ही लाई है। पत्नी बन जीवन सारा तू समर्पित कर देती है, बहू बन कर सेवा का सुख अर्पित कर जाती है। ज्ञान की देवी सरस्वती भी तुझे कंठ लगाती है, काली का रूप धर संहार का दृश्य भी दिखाती है। सुकोमल कन्या के रूप में घर घर पूजी जाती है  गृहलक्ष्मी के रूप में अवतरित हो सौभाग्य जगाती है। अपने समृद्ध व्यक्तित्व का मान स्वीकार नहीं कर पाती है, वज़ूद की गहराई को अपने तू क्यों नकारे जाती है। विराट स्वरुप से तेरे ही सृष्टि ये संचारित है नारी तेरे रूप अनेक आज भी सम्मानीय है। स्वरचित शैली भागवत 'आस'

नारी तेरे रूप अनेक

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हे नारी, तेरे रूप अनेक, कभी बेटी, कभी बहन कभी माँ, कभी बहु, सब किरदारों में अनुपम स्वरुप, बेटी बन मात पिता का नाम रोशन क़र जाये  बहन बन अनुज को राखी का बंधन निभाए, पत्नी बन सात जन्म के वादे निभाने का सामर्थ्य रख पाए एक जान होकर, किरदार अनेक निभाने का अटूट साहस ना जाने तुझमें कहाँ से आये? क़र देती है रोशन तुम्हारे दो जहान को, नारी, दोनों घर का आँगन महका जाये। कभी आँखों में ममता का सागर उमड़े  तो कभी चंद्र छटा पर निश्छल सी मुस्कान बिखरे। कभी ग़म का सागर भी, पलक झपकते सुलझाए कभी मीठे बोल की आस में, निश्छल ममता रस लुटाये नारी, तेरे अनुपम रूप का सम्पूर्ण वर्णन आखिर कैसे मुमकिन हो पाए, आखिर कौन है यहां तेरे जैसा जो जान की बाज़ी लगा संतान को जन्म दे पाए। निकेता पाहुजा रुद्रपुर उत्तराखंड

इंकलाब जिंदाबाद ; भगत सिंह भाग २४

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 नौजवान भारत सभा ,लाहौर का घोषणा पत्र-  शहीद भगत सिंह और भगवती चरण वोहरा ने नौजवानों और विद्यार्थियों को संगठित करने का प्रयास 1926 से ही शुरु कर दिए थे । अमृतसर में 11 ,12,13 अप्रैल 1928 को हुए नौजवान भारत सभा के सम्मेलन के लिए सभी का घोषणा पत्र तैयार किया गया, भगत सिंह इस सभा के महासचिव और भगवती चरण वोहरा प्रचार सचिव बनें। इस घोषणापत्र के माध्यम से भगत सिंह ने नौजवानों से कहा - नौजवान साथियों ,  हमारा देश  एक और अव्यवस्था की स्थिति से गुजर रहा है। चारों तरफ एक दूसरे के प्रति अविश्वास और हताशा का साम्राज्य है। देश के बड़े नेताओं ने अपने आदर्श के प्रति आस्था को दी है और उसमें से अधिकांश को जनता का विश्वास प्राप्त नहीं है। भारत की आजादी के पैरोंकारों के पास कोई कार्यक्रम नहीं है ,और उनमें उत्साह का अभाव है। चारों तरफ अराजकता है। लेकिन किसी राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में अराजकता  एक अनिवार्य तथा आवश्यक के दौर है। ऐसे ही नाजुक घड़ियों में कार्यकर्ताओं की इमानदारी की परख होती है ,उनके चरित्र का निर्माण होता है ,वास्तविक कार्यक्रम बनता है और तब नए उत्साह...