"युद्ध और शांति"

प्रगति का द्वार खोलता है शांति,
युद्ध ने केवल नरसंहार किया,
शांति ने किया सृष्टि का सृजन,
युद्ध ने सभ्यता का विनाश किया।

शांति ने बहायी प्रेम की रसधारा,
युद्ध ने केवल रक्तपान किया,
एक ने जलाए दीप आत्मा में,
दूजे ने केवल अंधकार किया।

शांति ने मनुष्य को बनाया देव,
युद्ध ने मनुष्यता को शर्मसार किया,
जहां शांति सिखाए वसुधैव कुटुम्बकम्,
युद्ध ने भाई-भाई को शत्रु किया।


स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार

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