पलाश


देखो, भर गया वृक्ष पलाश 
आने वाला है मौसम खास।

यादों में जैसे कोई खोया हुआ
मुद्दातों के बाद आज जागा हुआ। 

जैसे वीरान विराट जंगलों में 
लगा नारंगी तिलक मंगलों में।

पत्ते झड़ जाते जब पतझड़ में खास
अकेले लहलाहाता नारंगी पलाश।

अलसाई गौरी के उलझे गेशु
मदमस्त भरा बहकता सा टेसू।

बसंती हवा लगाती जंगल में आग
रंग बिरंगी छटा , गाए मौसमी फाग।

धीरे से कहता, मैं रंगों की हूं आस
आने वाला है कोई त्यौहार खास।

स्वरचित मौलिक,, अप्रकाशित
कीर्ति चौरसिया जबलपुर मध्यप्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४