'नारी तेरे रूप अनेक'



ममता की मूरत प्यारी
सी तू लगती है,
भोली सूरत तेरी
कितनी न्यारी लगती है।

कभी पक्की इरादों की तू
नज़र आती है,
कभी कच्ची माटी सी हर
माहौल में ढल जाती है।

ममतामयी माँ की माया तुझमें
ही तो समायी है,
बेटी,बहन का दुलार सारा भरकर
तू ही लाई है।

पत्नी बन जीवन सारा तू समर्पित
कर देती है,
बहू बन कर सेवा का सुख अर्पित
कर जाती है।

ज्ञान की देवी सरस्वती भी तुझे कंठ
लगाती है,
काली का रूप धर संहार का दृश्य
भी दिखाती है।

सुकोमल कन्या के रूप में घर
घर पूजी जाती है 
गृहलक्ष्मी के रूप में अवतरित हो
सौभाग्य जगाती है।

अपने समृद्ध व्यक्तित्व का मान
स्वीकार नहीं कर पाती है,
वज़ूद की गहराई को अपने तू
क्यों नकारे जाती है।

विराट स्वरुप से तेरे ही सृष्टि ये
संचारित है
नारी तेरे रूप अनेक आज भी
सम्मानीय है।

स्वरचित
शैली भागवत 'आस'

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