इंकलाब जिंदाबाद ;भगत सिंह भाग २६


 नौजवान भारत सभा लाहौर का घोषणापत्र ( तृतीय भाग) - 

पंजाब के नौजवानों ,दूसरे प्रांतों के युवक अपने क्षेत्रों में जी तोड़ परिश्रम कर रहे हैं। बंगाल के नौजवानों ने 3 फरवरी को जिस जागृति तथा संगठन क्षमता का परिचय दिया उससे हमें सबक लेना चाहिए। अपनी तमाम कुर्बानियों के बावजूद हमारे पंजाब को राजनीतिक तौर पर पिछड़ा हुआ प्रांत कहा जाता है  , क्यों ? क्योंकि लड़ाकू कौम होने के बावजूद हम संगठित एवं अनुशासित नहीं है। हमें तक्षशिला विश्वविद्यालय पर गर्व है लेकिन आज हमारे पास संस्कृति का अभाव है और संस्कृति के लिए उच्च कोटि का साहित्य चाहिए ,जिसकी संरचना  सुविकसित भाषा के अभाव में नहीं हो सकती। दुख की बात यह है कि आज हमारे पास उनमें से कुछ भी नहीं है।
देश के सामने उपस्थित उपरोक्त प्रश्नों का समाधान तलाश करने के साथ-साथ हमें अपनी जनता को आने वाले महान संघर्ष के लिए तैयार करना पड़ेगा। हमारी राजनीतिक लड़ाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ठीक बाद से ही आरंभ हो गई थी। वह कई दौरों से होकर गुजर चुकी हैं। बीसवीं शताब्दी के आरंभ से अंग्रेज तथा निम्न पूंजीपति वर्ग को सहूलियत देकर उन्हें अपनी तरफ मिला रहे हैं। दोनों का हित एक हो रहा है। भारत में ब्रिटिश पूंजी के अधिकाधिक प्रवेश का अनिवार्यताः यही परिणाम होगा। निकट भविष्य में बहुत शीघ्र हम उस वर्ग को तथा उसके नेताओं को विदेशी शासकों के साथ जाते देखेंगे। किसी गोलमेज कांफ्रेंस या इसी प्रकार की और किसी संस्था द्वारा दोनों के बीच समझौता हो जाएगा। तब उनमें शेर और लोमड़ी के बच्चों का रिश्ता नहीं रह जाएगा। समस्त भारतीय जनता के आने वाले महान संघर्ष के भय से आजादी के इन तथाकथित पैरोंकारों की कतारों की दूरी बगैर किसी समझौते के भी कम हो जाएगी।
देश को तैयार करने के भावी कार्यक्रम का शुभारंभ इस आदर्श वाक्य से होगा- "क्रांति जनता द्वारा ,जनता के हित में "दूसरे शब्दों में, 98% के लिए स्वराज! स्वराज, जनता द्वारा प्राप्त ही नहीं, बल्कि जनता के लिए भी। यह एक बहुत कठिन कार्य है। यद्यपि हमारे नेताओं ने बहुत से सुझाव दिए हैं लेकिन जनता को जगाने के लिए कोई योजना पेश करके उस पर अमल करने का किसी ने भी साहस नहीं किया। विस्तार में गए बगैर हम यह दावे से कह सकते हैं कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए रूसी नवयुवकों की भांति हमारे हजारों मेंधावी नौजवानों को अपना बहुमूल्य जीवन गांव में बिताना पड़ेगा !और लोगों को समझाना पड़ेगा, कि भारतीय क्रांति वास्तव में क्या होगी। उन्हें समझाना पड़ेगा कि आने वाली क्रांति का मतलब केवल मालिकों की तब्दीली नहीं होगा। उसका अर्थ होगा नई व्यवस्था का जन्म ,एक नई राज्य सत्ता। यह एक दिन या एक वर्ष का काम नहीं है। कई दशकों का अद्वितीय आत्मबलिदान ही जनता को उस महान कार्य के लिए तत्पर कर सकेगा और इस कार्य को केवल क्रांतिकारी युवक ही पूरा कर सकेंगे। क्रांतिकारी से अर्थ सिर्फ एक बम और पिस्तौल वाले आदमी से अभिप्राय नहीं है।
युवकों के सामने जो काम है वह काफी कठिन है और उनके साधन बहुत थोड़े हैं। उनके मार्ग में बहुत से बाधाएं भी आ सकते हैं । लेकिन थोड़े किंतु निष्ठावान व्यक्तियों की लगन उन पर भी विजय पा सकती है। युवकों को आगे जाना चाहिए उनके सामने जो कठिन एवं बाधाओं से भरा हुआ मार्ग है और उन्हें जो महान कार्य संपन्न करना है उसे समझना होगा। उन्हें अपने दिल में यह बात रख लेनी चाहिए कि "सफलता मात्र एक संयोग है ,जबकि बलिदान एक नियम है"। 

क्रमशः 

गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार

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