" स्वयं को जानें"



आओ यात्रा करें स्व में ,,,
बिना लब हिलाये चुपचाप स्व के एहसास में ,,
खुद के जज्बात में, खुद के विश्वास में ,खुद के भाव में, खुद के भाव की प्यास में ,खुद के रग रग में, खुद के मन के तंरग में ,,,,। 
       पूरा अनन्त जिससे सजा है,
         वही है खुद की ऊर्जा में, आओ ,,,,
खुद से बातें करें ,,,,,
    ऐसे-जैसे, अभी अबोध बालक हों जैसे ,,
   न जानें कि धर्म क्या है? रीति-रिवाज क्या है?संस्कार क्या हैं ?
     अँधकार क्या औ प्रकाश क्या है ,,,,?
   क्या हैं जीवन के रंग, हाल क्या हैं ,,,?
केवल इन्सान बनकर इन्सानियत को पहचाने ,,,,,,,,
      स्व में रह कर वक़्त बिताएं।
स्व का परिचय स्वयं से कराएं।
स्वयं के अन्दर दीप जलाएँ।
                 रचयिता --
 सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक रचना
रुद्रपुर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड। 

                   
                 

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