युद्ध और शांति



ख़ामोश थे लब उसके मगर उसकी
आँखें उसका हाले ए दिल  बया कर रही थी
इन्तज़ार जो आँखो दे गया था 
वो आया ही कुछ इस तरह से था

हाथो की मेहंदी अभी ताज़ी थी
महावर का रंग अभी फीका न हुआ था
कलाइयों से भरा चूड़ा था।
 
सब चीख़कर उसके नए नबेली दुल्हन,
होने की गवाही दे रहे थे ,
पूछ रहे थे कसूर अपना,
अभी तो तन पर  उंसके सजे थे ।। 

अपने होशो हवास में कहा थी वो
अपने  सुहाग को खोने के बाद
बस एक टक देखे जा रही थी
निर्जीव पड़े अपने प्रियतम को

कल तक जिसकी शरारतो से
आँगन  महका करता था
जिसकी खिलखिलाहट में
बूढे माँ बाप की जान बसती थी।।

आज वो सब को रोता छोड़ गया
दे गया जिंदगी भर का दर्द और
 दवा अपने साथ ले गया

युद्ध मे कहा कोई जीतता है
यहा जीता हुआ शख्स भी हारा है
मैदाने ए जंग में,

अपनो  की लाशों पर  ख़ुशी कैसे  मनाओगे
जलाकर अपनो की चिता 
फिर अपना घर कैसे रोशन करोगे।।

रोक  सको तो रोक लो इस तबाही 
कुछ भी हासिल न होगा
वरना अश्क़ तो बहेगे
मगर कोई पोछने वाला न होगा।।
सुमेधा शर्व शुक्ला

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