उम्र भर
पैदल ही चला वो सड़क पर उम्र भर ,
उम्र भर जो सड़क बनाता चला गया।
खुद का घर कभी नसीब नहीं हुआ,
उम्र भर जो तुम्हारे घर बनाता चला गया।
एक दीया दीवाली पर जला न सका ,
तुम्हारे घर को दीयो से सजाता चला गया।
मंदिर में उसके कभी अगरबत्ती न जली,
तुम्हारे लिए जो अगरबत्ती बनाता गया ।
बच्चे कभी उसके पढ़ नहीं पाए ,
विद्यालय जो तुम्हारे लिए बनाता गया ।
बच्चों को भरपेट भोजन कराना सका ,
तुम्हारी झूठी थाली जो उठाता गया ।
आंखें तो उसकी भी नम होती है ,
झूठे भोजन से जब भोजन चुराता गया।
जिस अस्पताल को बनाने में पसीना बहाया, अस्पताल के दरवाजे पर दम तोड़ता गया ।
जो देता गया तुमको दो वक्त का खाना ,
उसके घर कई बार चूल्हा जलाया न गया।
जो बुनते वस्त्र दुनिया के लिए,
देह को उनकी चिथड़ों से सजाया गया ।
पैदल ही चला वो सड़क पर उम्र भर ,
उम्र भर जो सड़क बना था चला गया।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा राजस्थान
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