इंकलाब जिंदाबाद ; भगत सिंह भाग २४


 नौजवान भारत सभा ,लाहौर का घोषणा पत्र- 
शहीद भगत सिंह और भगवती चरण वोहरा ने नौजवानों और विद्यार्थियों को संगठित करने का प्रयास 1926 से ही शुरु कर दिए थे । अमृतसर में 11 ,12,13 अप्रैल 1928 को हुए नौजवान भारत सभा के सम्मेलन के लिए सभी का घोषणा पत्र तैयार किया गया, भगत सिंह इस सभा के महासचिव और भगवती चरण वोहरा प्रचार सचिव बनें। इस घोषणापत्र के माध्यम से भगत सिंह ने नौजवानों से कहा -

नौजवान साथियों , 

हमारा देश  एक और अव्यवस्था की स्थिति से गुजर रहा है। चारों तरफ एक दूसरे के प्रति अविश्वास और हताशा का साम्राज्य है। देश के बड़े नेताओं ने अपने आदर्श के प्रति आस्था को दी है और उसमें से अधिकांश को जनता का विश्वास प्राप्त नहीं है। भारत की आजादी के पैरोंकारों के पास कोई कार्यक्रम नहीं है ,और उनमें उत्साह का अभाव है। चारों तरफ अराजकता है। लेकिन किसी राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में अराजकता  एक अनिवार्य तथा आवश्यक के दौर है। ऐसे ही नाजुक घड़ियों में कार्यकर्ताओं की इमानदारी की परख होती है ,उनके चरित्र का निर्माण होता है ,वास्तविक कार्यक्रम बनता है और तब नए उत्साह, नई आशाओं ,नये विश्वास और नए जोशो खरोश के साथ काम आरंभ होता है। इसलिए इसमें मन ओछा करने की कोई बात नहीं है।
हम अपने आप को एक नए युग के द्वार पर खड़ा पाकर बड़े भाग्यशाली हैं। अंग्रेज नौकरशाही के बड़े पैमाने पर गुणगान करने वाले गीत अब सुनाई नहीं देते। अंग्रेज का हमसे एक ऐतिहासिक प्रश्न है की "तुम तलवार से प्रशासित हो गए या कलम से ?अब ऐसा नहीं रहा कि उसका उत्तर ना दिया जाता हो। लॉर्ड बकेनहेड के शब्दों में "हमने भारत को तलवार के सहारे जीता और तलवार के बल से ही हम उसे अपने हाथ में रखेंगे"। इस खरेपन ने अब सब कुछ साफ कर दिया है। जलियांवाला बाग और मानावाला के अत्याचारों को याद करने के बाद उदित करना कि अच्छी सरकार स्वशासन का स्थान नहीं ले सकती बेहुदगी ही कही जाएगी यह बात तो स्वतः स्पष्ट हैं।
भारत में अंग्रेजी हुकूमत की दि हुई सुख संपदाओं के बारे में  भी दो शब्द सुन लीजिए । भारत के उद्योग धंधों के पतन और विनाश के बारे में बतौर गवाही क्या  रमेशचंद्र दत्त ,विलियम डीगबि और दादा भाई नौरोजी के सारे ग्रंथों को उद्त करने की आवश्यकता होगी क्या? क्या इस बात को साबित करने के लिए कोई प्रमाण जुटाना पड़ेगा कि अपनी उपजाऊ भूमि तथा खानों के बावजूद आज भारत सबसे गरीब देशों में से एक हैं, भारत जो अपनी महान सभ्यता पर गर्व कर सकता था आज बहुत पिछड़ा हुआ देश है, जहां साक्षरता का अनुपात केवल पांच है? क्या लोग यह नहीं जानते कि भारत में सबसे अधिक लोग मरते हैं और यहां बच्चों की मौत का अनुपात दुनिया में सबसे ऊंचा है ?
प्लेग , हैजा इन्फ्लूएंजा तथा इसी प्रकार के  अन्य महामारियाँ  आए दिन की व्याधियाँ बनती जा रही हैं। क्या बार-बार यह सुनना कि हम स्वशासन के योग्य नहीं है एक अपमानजनक बात नहीं है ?क्या यह  तौहिन की बात नहीं है कि गुरु गोविंद सिंह ,शिवाजी और हीरासिंह जैसे सुरवीरों के बाद भी हमसे कहा जाए कि हम में अपनी रक्षा करने की क्षमता नहीं है? खेद है कि हमने अपने वाणिज्य और व्यवसाय को उसकी शैशवावस्था में ही कुचला जाते नहीं देखा। जब बाबा गुरुदत्त सिंह ने 1914 में गुरु नानक स्टिमशिप चालू करने का प्रयास किया था तो दूर देश कनाडा में और भारत आते समय उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया और अंत में बज बज के बंदरगाह पर उन साहसी मुसाफिरों का गोलियों से खूनी स्वागत किया गया। और भी क्या कुछ नहीं किया गया ?क्या हमने यह सब नहीं देखा ?उस भारत में जहां द्रोपदी के सम्मान की रक्षा में महाभारत जैसा महायुद्ध लड़ा गया था, वहाँ 1919 में दर्जनों द्रोपदियों को बेइज्जत किया गया उनके नंगे चेहरों पर थूका गया । क्या हमने यह सब नहीं देखा? फिर भी हम मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट हैं । क्या यह जीने योग्य जिंदगी है? 

क्रमशः 

गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार

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