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Showing posts from March, 2022

आदमी नहीं हूँ वैसा

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जैसा समझा गया है मुझको, आदमी नहीं हूँ वैसा। मेरा मतलब तो यही है, बात मतलब की कहो।। मानता हूँ यह तो मैं भी, पाप मुझसे भी हुआ है। मेरा फिर भी यह कहना है, तुम मिलजुलकर रहो।। जैसा समझा गया है-----------------------।। हसीन वक़्त ने मुझसे कहा, छोड़ दूँ मैं यह शराफत। लुत्फ जिंदगी का मैं लूँ ,मानकर खिलौना मोहब्बत।। माफ करना यारों मुझको, मेरी ऐसी नहीं है हसरत। मेरी नसीहत तो यही है, बेअदब कभी ना रहो।। जैसा समझा गया है------------------------।। मुझको मालूम है मुशरिक, मादरे- हिंद का भी फर्ज। शहादत उन शहीदों की, अपने वालिद का भी कर्ज।। मर्ज मेरा भी समझो तुम, और मजबूरी मेरे कर्म की। मेरा मकसद तो यही है, बात ईमान की तुम कहो।। जैसा समझा गया है-----------------------।। ऐसी हो यहाँ सबकी मोहब्बत, अदब जिसमें हो मौजूद। मुकम्मल हो ख्वाब सभी के,ऐसी दुहा जिसमें हो मौजूद।। समझो मेरे अजीज तुम हालात, मेरे लबों की मायूसी। मेरी ख्वाहिश तो यही है, मुझे दुश्मन अपना नहीं कहो।। जैसा समझा गया है----------------------।। साहित्यकार एवं शिक्षक-  गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

किस्सा नया पुराना

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किस्सा तो है पुराना पर नया सा लगता है,  जैसे अभी देखा हो अभी पाया हो,  आज भी इंतजार है, पर वो कुछ खफा सा लगता है,  आज भी कुछ नया सा लगता है।     किस्सा तो है पुराना, बात बात पर रूठ जाना हर बार तुझे मनाना,  थोड़ी ही देर मे तेरा मुस्कुराना, कल फिर आऊंगा ,  कह के जाना, आज भी नया सा लगता है।         किस्सा तो है पुराना,  कसमों वादो मे मुझे बांध देना,  कई जन्मों का रिश्ता है अपना कह देना,  अब न जाउगा दुर तुमसे ये बता देना ,  आज भी नया सा लगता है। किस्सा तो  है पुराना ,  आज भी बैठीं हू कि तु आएगा,  जुदाई का एक क्षण न देगा, मुझे तु ले जाएगा,  रोज तो आता है  ख्वाबों मे, न जाने हकीकत मे कब आएगा,  जल्दी आऊंगा कह कर, न जाने कब आएगा,  किस्सा तो है पुराना पर आज भी नया सा लगता है ।।

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

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अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित है तुम्हें अंजलि इतनी जल्दी क्यों हार गई यही खेद है अंजलि जिन्दगियां बचाती थी तुम औरों की, फिर क्यूँ खुद के लिए हार गई अंजलि। अश्रुपूरित........ शहर छोड़ तुमनें गाँव को कर्मभूमि बनाया अंजलि छोटे से गाँव को सुविधाओं से सजाया अंजलि दुआएँ थी ना कई औरतों की तुम्हारें साथ फिर क्यूँ मौत को तुमनें साथी बनाया अंजलि। अश्रुपूरित........ करबद्ध तुम्हें नमन करते है अंजलि इंसाफ तुम्हें मिले यही कामना है अंजलि जिस जहाँ में भी तुम  गई हो चली समाज के लिए प्रेरणा थी तुम अंजलि। अश्रुपूरित........... गरिमा राकेश 'गर्विता ,गौत्तम कोटा राजस्थान

किस्से नये पुराने

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किस्से नये पुराने लगते हैं गुदगुदाने किस्से नए पुराने जब भी बैठे फुर्सत में याद आते हैं वो मौसम सुहाने भूले नहीं भुलाये जाते वो बचपन के जमाने स्कूल नहीं जाने के  ढूँढते नित नए बहाने पूछे जाने पर लगाते नानी के निधन के बहाने पकड़े जाने पर पड़ते डंडे और पड़ते घरवालों की डांट  भरी दुपहरी में बाग के चक्कर और जाते खट्टी खट्टी इमली की चाट डाकिये की साइकिल  ले जाते सीखने के बहाने पर सीख तो नहीं पाते पर लगा आते चोट डाकिया कहता -ये तो होना ही था जब इसकी नीयत में था खोट कान पकड़ कर सॉरी कह चुप जाते माँ के आँचल की ओट ज्यों हुए कुछ बड़े तो चढ़ा था इश्क का बुखार एक अनजाने से कर बैठे अनजाने में ही प्यार बस अब तो करते रहते हर वक़्त उसका ही इंतजार पर हाय री किस्मत  मेरे नसीब में नहीं था उसका प्यार छोड़ गया मुझको तन्हा रोते आया न जुल्मी कभी आँसू पोंछने उतार फेका सर से इश्क का बुखार अब तो बस खुद से ही है करना प्यार कल्पनाओं को बस देकर रंग जीवन में बढ़ाना है उमंग दिल गाये ख्वाबों के तराने करके याद किस्से नए पुराने.....                    ...

हाइवे का कैफे

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“ अरे यहां शहर से दूर किसको सूझा ये कैफ़े खोलने का ?” मैंने हाईवे से शहर के अंदर मुड़ती हुई सड़क पर अपनी कार मोड़ते हुए लगभग सुनसान जगह पर कैफ़े देखकर सोचा।  उस वक्त रात के करीब नौ बज रहे थे। मैं करीब दस साल बाद उस शहर वापिस जा रहा था। मैंने उस शहर में हॉस्टल में रहते हुए इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की थी। इस हाईवे पर तब भी कुछ ढाबे थे जहां हम कॉलेज के फ्रेंड्स खाना खाने आया करते थे।  कॉलेज की पढ़ाई के बाद मेरी एक मेट्रो सिटी में मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई थी। नौकरी और घर परिवार की व्यस्तताओं के कारण इतने साल यहां नहीं आ पाया था।  पिछले हफ़्ते कॉलेज के समय के एक दोस्त राहुल का फोन आया था कि उसकी बहन की शादी है। उसने मुझे जोर देकर कहा था कि हर हाल में आना है।  मैंने भी ये सोचकर हामी भर दी कि इसी बहाने उस शहर में फिर से जाने का मौका मिलेगा और दोस्तों से मिलना भी हो जायेगा। बच्चों के एग्जाम होने के कारण पत्नी साथ नहीं आ पाई थी।  मैं अकेला खुद कार चलाकर आ रहा था। करीब चार सौ किलोमीटर का सफ़र था। लगभग छः घंटे का वक्त लगता था। घर से दोपहर में तीन बजे के आ...

तेरे बिन

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तेरे बिन चाँदनी रात भी ख़ौफ़नाक मंजर, तेरे बिन बहार भी ऊसर बंजर। तेरे साथ वीराना भी  आवाद तेरे बिन  महल भी खण्डकर। तेरे बिन सुरमई शामे दर्द का पैकर तेरे साथ मन भावन तपती दोपहर। तेरे बिना सूखा मन का दरिया, तेरे साथ सहरा भी समन्दर। तेरे बिन तन्हां तन्हा हर महफ़िल, तेरे साथ मन उल्लासों  का बवंडर। तेरे बिन में रेजा रेजा,  तेरे साथ मुझमें जमाने का जबर। तेरे लिए मैं क्या हूँ तू जाने, तेरे बिन न मेरी कोई मंजिल न सफर। तेरे बिन कोई  हमदर्द हमराह चुनना ही नहीं, तेरे बिन मुझपर सब बे असर। तेरी आमद मेरी सासों का चलन, तेरे बिन मेरी सूनी रहगुजर। अन्जू दीक्षित, उत्तर प्रदेश।

❣️❣️किस्से नये पुराने❣️❣️

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❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ ए ज़िन्दगी आ बैठ कुछ पल साथ मेरे आज सुनाऊ तुम्हे कुछ किस्से नए पुराने कभी अपनों के साथ खुशी की लहर की तराने तो कभी तन्हा सी राह की खामोशियों की बाते ए ज़िन्दगी आ सुनाऊ तुम्हे किस्से नए पुराने  आ बताऊ तुम्हे क्या क्या उपहार मिला हमें तुमसे कभी आँखों मे भर दिया ख्वाब हज़ारो खुशियों के कहीं से मिला दर्द की तोहफा इस दिल को मेरे तो कहिसे आँखों से बहती दरिया का तूफान की बाते  ए ज़िन्दगी आ सुनाऊ तुम्हे किस्से नए पुराने कभी तुमने सोचा नहीं होगा न ए मेरे ज़िन्दगी की क्या क्या महसूस कराता है तू हमें इस दुनिया मे कभी चलती साँसे भी रुक जाती है तेरे सितम से पर फिर भी तुम साथ नहीं छोड़ते उस अफ़सोस की बाते ए ज़िन्दगी आ सुनाऊ तुम्हे किस्से नए पुराने कितने अपनों को मिलाया तुझसे पर कोई साथ नहीं है जाने किसकी तलाश है तुम्हे दिल कुछ समझ पाया नहीं है कभी तो बता दिया कर ए ज़िन्दगी अपने मर्ज़ी दिल के कब तक गुमराह करते रहोगे हमें उस राज़ की बाते ए ज़िन्दगी आ आज सुना दें हमें कुछ किस्से नए पुराने कभी सपनो मे भी नहीं सोचा उस मंजर तक लादिया हमें अब जीने की चाहत नहीं रहा ...

वैराग्य पथ - एक प्रेम कहानी भाग २१

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  शुंभ और निशुंभ के निधन के बाद तथा रक्तबीज जैसे मायावी के अंत के बाद आखिर महिषासुर को ही समर में आना पड़ा। सभी देवों को जीत चुके असुर स्त्रियों की सम्मिलित शक्ति के समक्ष खुद को असहाय महसूस करने लगा। जिन्हें शक्तिहीन समझा था, वे नारियां ही असुरत्व को चुनौती दे रही थीं। कहीं वह भी तो इन नारियों से पराजित तो नहीं हो जायेगा,इस चिंता में महिषासुर का मन शांत नहीं हो पा रहा था।     खुद की शक्ति का प्रदर्शन करते हुए महिषासुर एक विशाल महिष पर आरूण हो रणभूमि के लिये निकल पड़ा। सप्तर्षियों के साथ देव इस रण को देखने नभ मंगल पर आ चुके थे। इतिहास में पहली बार वह घटित होने जा रहा कि नारी शक्ति असुरत्व की शक्ति को सीधे सीधे चुनौती देने जा रही थीं।    " पिता जी। आज वह दिन आ चुका है, जिसके लिये मैंने इस धरा पर जन्म लिया था। आज वह दिन है जबकि आपकी बेटी एक महाबली असुर का सामना करने जा रही है। यह आपके शिक्षण का ही प्रभाव है कि आपकी बेटी न केवल खुद अन्याय का प्रतिकार करती रही है, अपितु उसने विश्व में अनेकों स्त्रियों को संगठित कर दिया है। आज के रण में मुझे विजय मिले, यह आशीर्व...

किस्से नए पुराने

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किस्से नए पुराने,आते-जाते, कहते हैं, मन के तराने। सब बसे होते हैं, जाने-अनजाने। कहते रहते हैं सुख-दुःख के तराने। जब देखो तब आते रहते हैं मुस्काने। किस्से नए- पुराने--------। इन किस्सों में ही तो समाहित हैं, ज़िन्दगी भर के अफसाने। कैसे दूर हो सकता है कोई इनसे? यही तो हैं सारे नगमें औ तराने। छेड़ जाते हैं दिल के तार, बिन कहे सारे अफसाने ये किस्से नए-पुराने-----। आते-जाते रहते हैं बिन बुलाए, पतझर औ बसंत से,सुरे-बेसुरे ही,  कुछ न कुछ गुनगुनाने ये किस्से नए-पुराने------ कभी भी झंकृत कर देते तार मन के, हलचल मचा देते हैं, अतीत से आज तक, बिन स्वर-लहरी के,ताल औ थाप बिन,  गाथा कह जाते जीवन के अफसाने। ये किस्से नए-पुराने-----। माहिर होते हैं।  हँसते को रुलाने में, रोते को हँसाने में।  कुलबुलाते हुए, स्मृति की बगिया में।  ये किस्से नए- पुराने -------। कुछ भूले कुछ भटके, छेड़ जाते हैं तार जीवन के, कुछ कहकर, कुछ सुनकर  ये किस्से  नए-पुराने-----।। रचयिता - सुषमा श्रीवास्तव- मौलिक कृति (सद्यः निःसृत) सर्वाधिकार सुरक्षित

आधुनिक हुए हम

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बचपन की यादें तब और ज्यादा मन में हिलोरें मारने लगती हैं ,जब बेफिक्र बचपन को उछलते कूदते देखती हूं , तुरंत इच्छा होती है उस आगन में पहुंच जाने की जहां हम सब मोहल्ले के बच्चे धमाचौकड़ी मचाते थे ,औपचारिकता शब्द की उम्र अभी बहुत छोटी है,क्योंकि उस समय हम औपचारिकता से परिचित न थे ।   पर आज के वातावरण में औपचारिकता बड़े व्यापकता से जड़े जमाती जा रही है ,   हमें नहीं पता था किसके घर खाना खाना है और किसके घर खाना नहीं खाना है ,   सब बच्चों के घर आपस में सबके अपने होते ,घर में बच्चा ना दिखाई देने पर मां आसानी से कह देती अरे खेल रहा होगा यही कहीं, आज की तरह बच्चे के लिए बेचैनी बढ़ाने वाला माहौल ना होता ।   पिट्ठू गरम,आइस पाइस,  छुपन छुपाई,  इक्कड़ दुक्कड़ खेल से मचने वाला शोर लोगों को डिस्टर्ब ना करता था।        पतंग उड़ाते बच्चों को ढील दे ढील वो काटा  वो काटा सुनकर बड़े लोग भी पतंग उडाने को उत्साहित नजर आते और आ जाते पेंच लड़ाने  के किस्से लिए छत पर ।        कटी पतंग को जोड़ने के लिए पका आलु और चावल की डिमा...

🌺नववर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए 🌺

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नवपल्लव हर वृक्ष पर आए  हरियाली बागों ने लाए । हम सब ने यह हर्ष है पाया। खुशियों भरा बसंत ले नववर्ष आया।। खेतों में ‌फसल लहराईं। नवयौवना सी प्रकृति जगमगाई। मां दुर्गा की हुई अगुवाई नव संवत की आज बधाई।। अंधियारा मिटा सुर्य की लालिमा छाई है। फाग रंगों से रंग गई धरा लहराई है। शीतलहर मिटी बसंत दुल्हन सी सज कर आई। धरा पर खुशहाली ले नववर्ष आई। चहूओर खुशियाली आई है  सब नवमय हो रहा नव संवत्सर पर। धरती अंबर खुश हुआ हर मुख पर लाली छाई। नववर्ष की आप सभी को हृदय से बधाई।🌹 २ अप्रैल २०२२ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय नववर्ष की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं 🌹🌹             अम्बिका झा ✍️

मास्क वाले चेहरे

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चीनी विषाणु ने लाए मास्क वाले चेहरे। दिखते अब दो- दो मास्क वाले चेहरे। सजी-धजी दुल्हन के चेहरे पर मास्क। सुंदरता पूरी नहीं उभरती संग मास्क। मास्क बिना कहीं प्रवेश निषेध। विषाणु ने कर डाला मानों दिल में छेद। मास्क का नया कारोबार चल पड़ा। आधे चेहरे पर पर्दे का सरोकार चल पड़ा। मास्क के पीछे से बेफिक्र उबासी लो। मास्क के अंदर से मुस्कान और हंसी लो। पोशाकों से मेल खाते पहनते मास्क। आंख मूंद यूं ही नहीं खरीदते मास्क। नन्हें-मुन्ने के लिए छोटा बेबी मास्क। डाॅरेमाॅन,बार्बी,सुपर हीरो वाले मास्क। पर निर्दयी विषाणु से बचने के लिए दो गज दूरी। इसके संग साफ-सुथरा मास्क भी है जरूरी।        -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण

"किस्से जीवन के हिस्से"

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जो बीत जाते हैं लम्हें वो किस्से बन जाते हैं  ये किस्से ही तो  जीवन के हिस्से बन जाते हैं  कुछ को सोच कर ये मन हर्षित हो जाता है तो कुछ को सोच कर ये मन द्रवित हो जाता है कुछ किस्से होठों पर  मुस्कान ले आते हैं तो कुछ किस्से इन आंखों को नम कर जाते हैं आते हैं जब याद नए, पुराने से एहसास ये एहसास ही तो  किस्सों की दास्तां सुनाते हैं जो बीत जाते हैं लम्हें  वो किस्से बन जाते हैं ये किस्से ही तो जीवन के हिस्से बन जाते हैं ।। कविता गौतम...✍️

लौट चलो अभी भी

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गुबार उठ चला, चराग़ बुझ चला गरजी तोपें तो आसमान हुआ पहले लाल,  फिर काला,  फिर जाने किस- किसका वजूद मिट चला,  झुलसे, जले, हुए कोयले इंसान इंसानों की खातिर,  जरूरत ही थी क्या जो, स्वयं के अहं में हुए हम,  इतने क्रूर और शातिर,  तेरी- मेरी जिद्द के पाटों बिच,पिस रहे सब, बाल-वृद्ध, नर और नारी रण दावानल विकराल, बन काल बढ़ रहा  जला रहा दुनियाँ सारीl कल इन्हीं कोयलों की राख पर  कर अट्टाहास् जीत का जश्न मनायेगा कोई,  कोई  टेक घुटने चरणों में उसके नतमस्तक हो जायेगा ,  पर इस दृश्य में पराजित होगी केवल मानवता इतिहास के पृष्ठों में युगों- युगों तक यही अमानवीय कृत्य जगह पायेगा l गर लौट सको तो लौट चलो अभी भी,  उन्मुक्त, मधुर विश्व शांति के गीत हम गाएंगे,  टैंकों से दबी- कुचली,जली धरा पर फिर से , जीवनदायिनी फ़सलें उगायेंगेl   -निगम झा  सशस्त्र सीमा बल  सिलीगुड़ी

"दादी के किस्से"

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दादी के किस्से ,हमें बहुत है भाते उनकी कहानियों में ,हम ऐसे खो जाते  कभी रुलाते तो, कभी हमको हसाते  सुनहरी यादों की, बचपन की वो बाते ।। दादी ,कहानियों को ऐसे कहती सुनने की जिज्ञासा, हमारी भी बढ़ती रोचकता से भरी, उनकी किस्से जो होती  मीठी वो यादें ,मुझे आज भी भली लगती ।। दादी, नाना-नानी से, किस्से खूब सुनें बचपन की प्यारी यादें,जैसे कहानियों में बुने दादी का आशीर्वाद ,सदा हम पर रहे बैठेंगे दादी संग, उन किस्सों को फिर से सुनने ।। 💖बहुत याद आती है बचपन की वो प्यारी यादें..........                                                      मनीषा भुआर्य ठाकुर(कर्नाटक)                

आम आदमी

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ‌साम दाम दंड भेद, कुछ इस कदर खेला, रह गया आम आदमी,इस जहां में अकेला, शतरंजी चाल वाले, एक चाल चल गये, खेले वो राजनीति के, हथकंडे  चल गए, माहिर है कई फन में,इलेक्शन का विजेता, दो हाथ जोड़ता है,अनेक हाथों से लेता, वादे के सिवा कुछ भी, न जनता को देता, आम आदमी की,भावनाओ से वो खेलता, होते फसाद दंग, सियासत की चाल में, फंस्ता है आम आदमी,सियासी जाल में, बांटा है सबको जात,और मजहब के नाम पर, कायम है यूं मजे से,हुकूमत आवाम पर, दो पाटों में पिसता है, आम आदमी, गरीबी का सताया है, आम आदमी, कब तक यूं ही उम्मीद पर, दिन अपने गुजारे, हर आम आदमी कब तक, रहे प्रभु के सहारे, भूख के एहसास का, मारा हुआ है आदमी, पेट के भूगोल में,उलझा हुआ है आदमी, जिंदगी का बोझ भी, तो इस कदर है देखिए, जिस्म साबुत है मगर, टूटा हुआ है आदमी, इक तरफ नेता के,भाषण में तरक्की, आम  आदमी की ओर से, एक वोट है पक्की, मुल्क के फुटपाथ पर ,लेटा हुआ है आदमी, फांके है घर पर मगर,हड़ताल पर है आदमी, सबसे पहले डालिए, फुटपाथ पर अपनी नजर, भूख के इतिहास से,नही है कोई बेखबर मुल्क की खुशहालीयों को, बाद में गिनवाइये, आम आदमी...

पहले जैसा नहीं रहा

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क्यों हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा ? हाँ सोचती हूँ मैं अक्सर ही कि- क्यों हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा। कितने सिमटकर रह गये हैं रिश्ते कि अब!पहले वाली बात रही नहीं उनमें। सोचती हूँ मैं अक्सर ही कि पहले जैसा कुछ बचा नहीं इस दौर में । कितने उलझ कर रह गये हम सभी कि पहले वाली बात अब बची नहीं। वो खुशियों का दौर वो मनमौजी फितरत अब रिश्तों में बची ही नहीं। वो अपेक्षाओ की बलि वेदी में दफन हो गया कि हाँ हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा। संकोच और संतुष्टि के भाव न जाने कहाँ आलोप हो गये कि रिश्ते अब औपचारिकता की भेंट चढ़ गए। वो मेल मिलाप भी न जाने कहाँ अंतर्धान हो गया कि हर रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा। वो डांट वो डपट और अपनापन भी अब झंझटों के डर का शिकार हो गया। आज सोचती हूँ मैं अक्सर ही कि हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा। आधुनिकता की आहुति में स्वाहा हो गया कि हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा। एक दूसरे की भावनाओं को समझते थे कि आज अपनी भावनाओं के लिए वक्त नहीं रहा। हाँ आज हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा जो बात पहले थी कभी वो बदल गयी। कि अब हर रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा आज हर रिश्तों में परतें चढ़ गयी। न जाने ...

अग्नि पथ"

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अग्नि पथ से ही जीवन बनता, साहस का अद्भुत रस दे जाता।जीवन बड़ा अनमोल है,राहें बड़ी कठिन हैं।  अग्नि पथ सा देतीं अनुभव, फिर भी चलते ही जाना है। इन राहों पर धूप छाँव बरसात मिलेगी, सबका ही तो मोल है। बस चलते जाना ही इस जीवन का,संकल्पी अहम रोल है। रूकना कभी नहीं है राही, मुड़कर नहीं देखना राही। भले मिले मरुस्थल, कांटे भले लहूलुहान कर जाएं,  या फिर शस्य श्यामला स्निग्ध कर जाए,  फिर भी अग्नि पथ का बानक , जीने की कला बतायेगा।  अंतिम सांस तक वह सीखें,  कुछ न कुछ समझाएंगी। यह जीवन को गुलाब जैसा मान बढ़ते ही तो जाना है। स्वयं समझना औरों को समझाना यही तो करते जाना है। अग्नि पथ को ही तो कर्म पथ बनाना है। चूक नहीं होने देना है,माफी से कतराना न,  प्रभु का स्मरण करते-करते आगे ही बढ़ते जाना है।  इस अग्नि पथ के रज-कण को लेकर माथे तिलक लगाना है इस जीवन के अग्नि पथ को अपने गले लगाना है। रचनाकार- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक रचना,उत्तराखंड।

पानी बर्बाद ना करें इसे सदा बचाएं

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जीवन के लिए बहुत जरूरी है पानी। जीवजंतु मानव पौधे सब चाहें पानी। पानी बिना ना कुछ भी संभव जानी। बर्बाद करो ना बिल्कुल भी ये पानी। ईश्वर ने उपहार दिया बहुत है जानी। पंच तत्व से बना शरीर बड़ा है ज्ञानी। इस लिए जरूरी सबहै दिलवर जानी। धरती आकाश अग्नि हवा और पानी। इसे बना नहीं सकते तो बचाएं जानी। जीवन में बड़ा कीमती बूँद-बूँद पानी। पुरखों ने नदियों में बहते देखा जानी। अब नदियों में भी कम दिखता पानी। हमने कुँए तालाबों में जो देखा जानी। सूखे कुँए तालाब पड़े अब नहीं पानी। बच्चे नल चांपाकल में देखा ये जानी। गर्मी में नल धोखा देदेते नहीं है पानी। ये पीढ़ी बोतल में जल देखा है जानी। बोतल खरीद-खरीद ये पी रहेहैं पानी। आगे क्या होगा ये सोचें दिलवरजानी। अगली पीढ़ी हेतु बचाएं अबतो पानी। जिसे बना नहीं सकता है कोई जानी। पर बर्बादी से बचा सकता है ये पानी। आओ मिल ये संकल्प सब लें जानी। बेमतलब बर्बाद नहीं करेंगे यह पानी। रचयिता : डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

एक थी सौंदर्या

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सौंदर्या वाकई सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी। भगवान ने उसे शायद फुर्सत से बनाया था । मेनका भी अगर उसे देख ले तो शर्म से पानी पानी हो जाये । ऐसी हुस्न परी पाकर घरवाले निहाल ह़ो गये थे । बचपन में पूरे मोहल्ले में बेबी सौंदर्या के चर्चे हुआ करते थे । फिर स्कूल में होने लगे । सोलहवां साल लगते लगते तो वह इतनी प्रसिद्ध हो गई कि लोग उसकी एक झलक देखने के लिए उसके रास्ते में घंटों खड़े रहते । भगवान के दर्शनों के लिए कोई इंतजार ना करे मगर सौंदर्या के दर्शनों के लिए घंटों इंतजार भी कुबूल है । सबकी चाहत होती थी कि  बस, एक झलक मिल जाये तो  उनके दिल को करार मिल जाये । सौंदर्या का जलवा सिर चढकर बोल रहा था ।  सौंदर्य और अभिमान का तो चोली दामन का साथ है । लोग कहते हैं कि दोनों जुड़वां भाई बहन हैं । सौदर्य बड़ी बहन है तो अभिमान उसका छोटा भाई । तो अभिमान से सौंदर्या कैसे बची रहती । सौंदर्य के नशे में इतनी गाफिल थी सौंदर्या कि अपने आगे  किसी को कुछ समझती ही नहीं थी वह । उसके हुस्न के सामने तो चांद की चांदनी भी पानी भरती थी ।  स्कूल में उसका कोई दोस्त नहीं था । अभिमानी का कोई दोस्त ...

कुंडल

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वो तेरी लाल  चुनरियां। वो तेरे कान के कुंडल। लागे सजन को  प्यारी हृदय को पड़े  रे भारी।  देखें    करीब   से   तुम्हें  बताए दिल की बात तुम्हें।  कर दो उस पर  कृपा तुम अपना उसे  बना लो  तुम । लाल सूट पहनती हो तुम आँखो में बसती  हो   तुम गज़ब कहर ढाती  हो तुम फिर भी  लगतीं प्यारी तुम।  जब राह में निकलती हो  होश  ही उड़ा  जाती  हो।  लफ्ज़ों कि बात पढ़ लेती  दिल की बात नहीं कहती। अर्पणा दुबे अनूपपुर मध्यप्रदेश

तेरी तरहां अगर मैं भी

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तेरी तरहां अगर मैं भी, तुमसे करता यार नफरत। समझकर तुमको पराया, करता नहीं तेरी इज्ज़त।। कैसी होती तेरी हालत,तेरा गर ख्याल नहीं करता। तेरी करता बुराई मैं, तुमसे नहीं करता मोहब्बत।। तेरी तरहां अगर मैं भी--------------------।। मानकर तुमको एक काफिर,तुमको जाहिल समझ लेता। दिखाकर तुमको बेअदबी,तुमको जहन्नुम बना देता।। कैसी होती तेरी दुनिया, कैसी तेरी सूरत होती। बना देता ऐसी तस्वीर, मानकर सबकी मैं नसीहत।। तेरी तरहां अगर मैं भी----------------------।। समझकर तुमको पवित्र, कदम रखा तेरी दर पर। तेरा दामन रहे बेदाग, बदनामी ली अपने ऊपर।। जख्म कितना गहरा होता, दर्द तुमको मेरे हमदर्द। चलाता तीर यदि मैं, करके नासूर की सोहबत।। तेरी तरहां अगर मैं भी--------------------।। फिर भी करता हूँ दुहा, दुनिया तेरी रहे आबाद। हसीन ये ख्वाब तुम्हारे, कभी नहीं हो बर्बाद।। रुसवां होता अगर तुमसे, तुमको देता नहीं तरजीह। कैसे होती ऐसे बेखौफ, दिखाता नहीं मैं शराफत।। तेरी तरहां अगर मैं भी--------------------।। साहित्यकार एवं शिक्षक- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

💘💘दर्द ही ज़िन्दगी का हक़ीक़त है💘💘

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💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘💘 हर कोई पाना चाहे मुक़्क़मल मोहब्बत यहाँ जुदाई की तड़प से हर धड़कन घबराता है लेकिन कौन समझें इस ज़ालिम ज़िन्दगी की राज़ को बिना दर्द के कहाँ बनते किसी ज़िन्दगी के तराना है जीने को तो हर कोई जी रहा है इस दुनिया मे पर किसको पता किसके दिल मे क्या राज़ छुपा है कौन रोरहा है ज़िन्दगी के कुछ काँटों भरे निगाहो के बीच और कौन हँसते हुए हज़ारो दर्द को गले लगाया है क्यूँ लोग सिर्फ सुकून के पीछे भागते है पता नहीं जो इन हाथो के लकीरों मे सुकून लिखा नहीं होता है ज़िन्दगी को वही समझ पाया हकीकत मे यहाँ  जिसको ये ज़िन्दगी हर सांस पर दर्द को महसूस कराया है बहुत बहाने ढूंढ़ते है लोग दर्द-ए-अहसास से दूर रहने की चोट दिल पर देकर पूछते है हमने क्या गुन्हा किया है जो सहना मंजूर नहीं करते इश्क़ के चुभन को ज़िन्दगी मे जख्म भर के पूछते है इस दर्द की वजह क्या है दर्द नहीं तो अहसास कैसा,दर्द से ही हर अल्फाज़ होता है  दर्द ही ज़िन्दगी का हक़ीक़त है नैना इस जहाँ मे जो पल पल जिन्दा होने की अहसास दिलाता है गर दर्द न होता दिल मे तो ज़िन्दगी मे कौन दिलकश अल्फाज़ लिख पाया है...!! 💘💘💘💘?...

वैराग्य पथ - एक प्रेम कहानी भाग २०

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  असफलता किसी भी शक्तिशाली के मनोबल को गिरा देती है। वहीं सफलता किसी भी कमजोर के मनोबल में भी आशातीत बृद्धि होती है। फिर आत्मबल की शक्ति से शक्तिमान वह किसी भी बड़ी से बड़ी आपदा को पार कर जाते हैं।     आत्मबल से बली नारियों की शक्ति का आकलन किया जाये तो शुंभ और निशुंभ जैसे महाबलियों को रणभूमि में यमलोक पहुंचाने बाली नारियों को शक्तिहीन तो नहीं माना जा सकता है। भले ही असुरराज नारियों की भौतिक शक्ति को स्वीकार नहीं कर रहा था, फिर भी यह तो माना ही जा रहा था कि ये विद्रोही स्त्रियां किसी न किसी तरह से तो शक्तिशाली हैं। आत्मबल की शक्ति से अपरिचित असुरों के लिये शक्ति के दो ही रूप थे। भौतिक या शारीरिक शक्ति तथा दूसरी मायावी शक्ति।     शारीरिक रूप से स्त्रियों को शक्ति सम्पन्न मानना असरों को स्वीकार न था। वैसे तो शुंभ और निशुंभ ने भी मायावी युद्ध किया था। पर उसकी माया का प्रतिकार यही माना गया कि संभवतः ये स्त्रियां अनेकों तरीके की मायावी शक्तियों की स्वामिनी हैं।    असुर रक्तबीज भले ही महिषासुर और शुंभ और निशुंभ के समान शक्तिशाली न था। पर विभिन्न मा...

शिक्षा बना व्यवसाय

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सच्चाई है कि शिक्षा आजकल एक व्यवसाय बन गया है,     बस्ते का बोझ बढ़ रहा है,  मंहगी हुई फीस, किताबों के दाम आसमान पर,  पाई पाई पर जोड़ कर भरे जाते फीस है,  एक दुकान है फिक्स कपड़े और जूतों के,  कितनी कमाई करते हैं ये मंहगाई से जुझते अभिभावकों से,  किताबें भी अब स्कूलों मे मिलते,  खुली दुकानें शिक्षा की गलियों में मवेशियों की,  लग रही बोलीं अभिभावकों की,        सुरसा सा मुख फाड़ रही ,   शिक्षा बना व्यवसाय   सबको मार रही,       कुछ नहीं थी पहले चार बच्चों की पढ़ाई,  पर अब एक बच्चे को पढा़ई ने मां बाप की नींद गई,           .पर क्या  करे ,  शिक्षा है भी जरूरी इसके बिना पूरी जिंदगी है अधुरीl

" बचपन की मस्ती"

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मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती, अपनों का प्यार और खुशियाँ थीं सस्ती। 1- सपनों का संसार, वो काग़ज की कश्ती , खुशियों की लहरें समंदर में चिश्ती। स्व से अनजान, कस्तूरी-मृग सी हस्ती, मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती। 2- आँखो की चमक,मुख के भाव थे निराले, खिलखिलाती हँसी, आवाज़ खनखनाती  निश्छलता की महक सत्यता की गमक थी, मासूमियत भरी वो बचपन की हस्ती। 3- न बैर-भाव, न अपना-पराया, खिलौनों के संसार में सवालों के ढेर   शिकवे शिकायत जो होता था ढेर,  प्यार की भाषा ही औ भाव की समझ थी, मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती। 4- पिता से डरना, माँ संग मचलना, खाना सोना औ लाड़-लड़ाना , बचपन की दोस्ती में झगड़े की कोई होती न हस्ती, मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती। 5- दादी की कहानी,किताबों की दोस्ती , दादा संग सैर का मज़ा ही अलग था, भाई बहनों का साथ था ऐसा सुहाना,  वैसा न होगा अब कोई ज़माना।  मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती।। रचयिता- सुषमा श्रीवास्तव     मौलिक रचना      सर्वाधिकार सुरक्षित 

जीवन एक अग्निपथ

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जीवन है एक अग्निपथ नित नए संघषो का मेला यहा जीने की जिसे चाह यहा भला उसे कौन रोक पाया है।। जीवन मे  न हो यदि सुख दुःख संगम तब तक इसका मोल  कहा कोई जान पाता है जब हुआ चुनौतियों से सामना तब अपनी ताकत का भान हुआ साहस है मुझमें कितना ये  अब कहा मैं जान पाया था अग्नि में जल कर ही कुन्दन तब खरा सोना कहलाता है।। सुमेधा शर्व शुक्ला

🌹🌹अग्निपथ🌹🌹

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 जितना भी हो मुश्किल राहें कदम अब रोकना नहीं किसे दोष दें हम बेवजह यूही जो ज़िन्दगी मे ही प्यार लिखा नहीं है सच मे बहुत दर्द भरे दास्ताँ रहा अब तक ज़िन्दगी भले ही इतना जख्म मिले हमें पर इतना तो समझ गए हम ए दिल ये नफरतों व फरेब की दुनिया है यहाँ कोई सच्चा प्यार को समझता नहीं है....! जाने कितना जतन किया अहसास दिलाने की पत्थर सा दिल पर मोहब्बत की हंसी गुलशन बसाने की बिखरती चली गयीं खुद मैं ही इस गुलशन को सजाते सजाते एकेले फिर भी कोई बाहर अपनेपन की कभी इस चमन से गुज़रता नहीं है...! क्यूँ सिर्फ मायने होते होते है इस दुनिया मे वो बेजान सी कीमती तोहफाओ की किसी दिल का हर धड़कन कुर्बान हुआ लेकिन उसका कोई यहाँ कदर नहीं है क्यूँ चाहिए हर किसी को यहाँ बस वहम जैसे ख़ुशी की ख्वाहिशे ज़ब की हकीकत मे यहाँ किसीके भी ज़िन्दगी मे ख्वाब पूरा होता नहीं है...! बेअसर सा लगने लगे दुआए ए ज़िन्दगी रब से की हर अरदास अधूरी सी लगने लगी है पल पल तरसते रहते है प्यार के लिए पर जिससे भी उम्मीद करे उससे प्यार मिलता नहीं है हर पल तड़पता रहता है जान इस सीने मे जाने क्यूँ इतने तड़प से भ...

क्षणभंगुर जीवन" (हाइकु काव्य)

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                     🍂🍁🍁🍁🍁🍁🍂                               क्षणभंगुर                          जीवन हुआ तो क्या                             हमें है जीना                             जिंदादिली से                          हर क्षण को जीये                              साहस यही                            सुख-दुख तो                        आते-जाते पड़ाव         ...

" अग्निपथ "

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जीवन एक संघर्ष है, बिना संघर्ष के जीवन अधूरा है.. कुछ ना आए हाथ तो, समझ लेना डुबकी अधूरी है.. चाहे जितना मुश्किल हो, पहला कदम जरूरी है... पीछे मत देखो ,नीचे मत देखो, सर पर आसमां है उसे उठ कर देखो... नाकामयाबी का जब बढ़ता है अंधेरा, तब लगता है सफर अकेला-अकेला.. जिंदगी की राहों पर जो मुश्किलों से लड़ा है, वही सफलता की रेस में आगे खड़ा है... सह ले तो दर्द सह ले तू मुश्किल, अब खत्म ना होगी तेरी ये जंग.. मत भूलो कि तुमने, क्या सहा और क्या है झेला क्योंकि अंधेरे के बाद आता है सवेरा... इस दुनिया में जो लोग हिम्मत नहीं खोते, सफल होने के रास्ते उसके लिए कभी बंद नहीं होते.. सुबह की सूरज को जो चीर कर  हैं निकलते वही इंसा अग्निपथ के रास्ते से आगे है निकलते.. मंजू रात्रे  (कर्नाटक )

पैसा

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पैसो की जिन्दगी मे बहुत बडी बिसात है, मिनटो मे दिखाता इंसान को इंसान की औकात है! सूंघ कर खुशबू पैसो की,रिश्ते दूर के भी पास आ जाते हैं, देख कर तंगी पैसो की,पास के रिश्ते भी पीठ दिखाते हैं! दिखा दो गठरी सोने की,चमक पैसो की,बेनाम रिश्ते भी चले आएंगे, दिखा दो अपनी फटी चादर की सलवटे,सगे भी दूर चले जाएंगे! ईमानदारी को बरसो की मिट्टी मे मिला दे,ताकत वो पैसो मे है, बेईमानो को शरीफ दिखाने की हिमाकत पैसो मे है! आज भूखे ही सही कल मिलेगा भरपेट, उम्मीद मे इसी बिताता एक गरीब सारी रात है, हर उम्मीद उसकी दम तोडती जब एक बेईमान पैसे वाला,स्वाभिमान पर उसके करता आघात है! सच ही तो है पैसो की जिन्दगी मे बहुत बडी बिसात है! मिनटो मे दिखाता इंसान को इंसान की औकात है!                                            श्वेता अरोडा

नववर्ष हिन्दू धर्म संस्कृति का पर्व विक्रम संवत 2079

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नया सनातन हिन्दू नववर्ष शुरू होगा, विक्रम संवत 2079 अब शुरू होगा। हिन्दू धर्म संस्कृति में यह है शुभ दिन, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि है यह दिन। माँ का वासंती यह नवरात्र शुरू होगा, हर घर कलश रखके पूजा पाठ होगा। चैत्र माह में खेतों में फसलें पक जाती, वृक्षों में भी नई-2 कोपलें हैं लग जाती। सुगंधित रंग बिरंगे फूलों से होती पूजा, नए अन्न से घर-2 में हो नवान्न की  पूजा। नव संवत्सर कहते हैं हिन्दू धर्म में लोग, भारत में इसको ही मानें नववर्ष है लोग। संवत्सर भी ये पाँच प्रकार का होता जानें, सूर्य चंद्र नक्षत्र सावन व अधिक मास जानें। इस दिन ब्रह्माजी ने की है सृष्टि रचना शुरू, इसी लिए नव संवत्सर होता है यहीं से शुरू। खुशियों का ये माह होता धन धान्य से भरा, धरा प्रकृति हरियाली सुंदरत सब लगे भरा। जय जननी जगमाता सबको समृद्धि देना, सुख शांति से रहें सभी ऐसा वर हे माँ देना। रचयिता : डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव,प्रतापगढ़ यू.पी.

अग्निपथ

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जीवन है अग्निपथ,हांक तू श्वास रथ। न हो विकल,चल तू अविचल। जीवन है अग्निपथ। हो मन व्यथित,तू धैर्य रख। तम से तू ,बिल्कुल न डर। जीवन है अग्निपथ। हो मृत्यु भी गर,सामने तेरे सन्निकट। रख हौसला बस,तू ले निपट। जीवन है अग्निपथ। ये त्रासदी क्या,कुछ भी नहीं। तू सकता न,बिल्कुल भी डर। जीवन है अग्निपथ। इंदु शुक्ला उरई उत्तर प्रदेश

आइये ,स्वागत तुम्हारा है ,मेरे राजस्थान में(राजस्थान दिवस पर)

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आइये, स्वागत तुम्हारा है, मेरे राजस्थान में। सम्मान मिलेगा तुमको, मेरे राजस्थान में।। आइये ,स्वागत तुम्हारा है------------------।। मेहमान यहाँ पर है, भगवान तुल्य। सत्कार यहाँ का है, जग में अतुल्य।। देवता की तरह पूजा, मेहमान की होती है। सच्चा मिलेगा प्यार, तुमको राजस्थान में। आइये , स्वागत तुम्हारा है----------------।। मीरा बाई,पद्मिनी, पन्ना धाय, हाड़ा रानी। गाता है इनकी गाथा, हर कोई हिंदुस्तानी।। वीरों की जननी भी कहता है इसको देश। जीवन का संघर्ष देखो, यहाँ रेगिस्तान में।। आइये,स्वागत तुम्हारा है--------------।। यहाँ पर मिलेगी बहुत,भाषायें - दुर्ग-मेलें । धरती के रूप बहुत, महशूर बांध- झीलें।। राणा कुम्भा,दुर्गादास और राणा प्रताप । इन वीरों की गाथा सुनना, तुम राजस्थान में।। आइये, स्वागत तुम्हारा है--------------।। साहित्यकार एवं शिक्षक- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

खौफ : भाग 3

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शालू कॉलेज में चली तो गई मगर उसका मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लग रहा था । जग्गा की भूखी निगाहें उसका पीछा कर रही थीं । कितनी भूखी लग रही थीं वे आंखें ? जैसे कि मौका मिलते ही उसे निगल जायेंगी । शालू डर के मारे कांपने लगी ।  शालू के पास ही उसकी सहेली सलोनी बैठी थी । उसने शालू को कंपकंपाते देखा तो उसे लगा कि शालू को बुखार आ रहा है । सलोनी ने शालू को छूकर देखा तो उसका सारा शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ा हुआ था । वह पसीने से लथपथ हो रही थी।  "क्या हुआ शालू ? तबीयत तो ठीक नहीं लग रही है तेरी ?  क्या बात है डियर" ?  शालू की जबान तालू से चिपकी पड़ी थी जैसे कि उसे डर हो कि कोई उसे खींचकर बाहर ना ले आये और उसके साथ कुछ "गलत" करे । शालू की ऐसी स्थिति देखकर सलोनी उसे कैंटीन में ले आयी और उसने दो कॉफी का ऑर्डर कर दिया । गर्म गर्म कॉफी सिप करने और सलोनी के अपनेपन ने शालू को थोड़ा संयत किया । अब वह बोलने की स्थिति में आ गई थी ।  शालू कहने लगी "तबीयत तो ठीक है सलोनी , मगर पिछले दो दिन से मैं बहुत परेशान हूँ । कारण जानना चाहोगी तुम" ?  "श्योर । ऐसी क्या बात है ? आखिर हमें भ...