" बचपन की मस्ती"



मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती,
अपनों का प्यार और खुशियाँ थीं सस्ती।
1- सपनों का संसार, वो काग़ज की कश्ती ,
खुशियों की लहरें समंदर में चिश्ती।
स्व से अनजान, कस्तूरी-मृग सी हस्ती,
मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती।
2- आँखो की चमक,मुख के भाव थे निराले,
खिलखिलाती हँसी, आवाज़ खनखनाती 
निश्छलता की महक सत्यता की गमक थी,
मासूमियत भरी वो बचपन की हस्ती।
3- न बैर-भाव, न अपना-पराया,
खिलौनों के संसार में सवालों के ढेर  
शिकवे शिकायत जो होता था ढेर, 
प्यार की भाषा ही औ भाव की समझ थी,
मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती।
4- पिता से डरना, माँ संग मचलना,
खाना सोना औ लाड़-लड़ाना ,
बचपन की दोस्ती में झगड़े की कोई होती न हस्ती,
मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती।
5- दादी की कहानी,किताबों की दोस्ती ,
दादा संग सैर का मज़ा ही अलग था,
भाई बहनों का साथ था ऐसा सुहाना, 
वैसा न होगा अब कोई ज़माना। 

मासूमियत भरी वो बचपन की मस्ती।।



रचयिता- सुषमा श्रीवास्तव 
   मौलिक रचना 
    सर्वाधिकार सुरक्षित 

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