एक थी सौंदर्या


सौंदर्या वाकई सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी। भगवान ने उसे शायद फुर्सत से बनाया था । मेनका भी अगर उसे देख ले तो शर्म से पानी पानी हो जाये । ऐसी हुस्न परी पाकर घरवाले निहाल ह़ो गये थे । बचपन में पूरे मोहल्ले में बेबी सौंदर्या के चर्चे हुआ करते थे । फिर स्कूल में होने लगे । सोलहवां साल लगते लगते तो वह इतनी प्रसिद्ध हो गई कि लोग उसकी एक झलक देखने के लिए उसके रास्ते में घंटों खड़े रहते । भगवान के दर्शनों के लिए कोई इंतजार ना करे मगर सौंदर्या के दर्शनों के लिए घंटों इंतजार भी कुबूल है । सबकी चाहत होती थी कि  बस, एक झलक मिल जाये तो  उनके दिल को करार मिल जाये । सौंदर्या का जलवा सिर चढकर बोल रहा था । 

सौंदर्य और अभिमान का तो चोली दामन का साथ है । लोग कहते हैं कि दोनों जुड़वां भाई बहन हैं । सौदर्य बड़ी बहन है तो अभिमान उसका छोटा भाई । तो अभिमान से सौंदर्या कैसे बची रहती । सौंदर्य के नशे में इतनी गाफिल थी सौंदर्या कि अपने आगे  किसी को कुछ समझती ही नहीं थी वह । उसके हुस्न के सामने तो चांद की चांदनी भी पानी भरती थी । 

स्कूल में उसका कोई दोस्त नहीं था । अभिमानी का कोई दोस्त नहीं होता है । अलबत्ता दुश्मन हजार हो सकते हैं । हर लड़की उसके हुस्न के जलजले से कुंठित थी । सब "शोहदे" सौंदर्या के पीछे पीछे चलते थे । बेचारी दूसरी लड़कियां एक अदद "आशिक" के लिए तरसती रह जाती थीं । वे इस स्थति के लिए सौंदर्या को जिम्मेदार मानती थीं । यदि सौंदर्या ना होती तो उनके भी दो चार तो बॉयफ्रेंड होते ना । मगर सौंदर्या के कारण उनकी जिंदगी झंड हो गई थी । लोग अपनी कंगाली से उतने दुखी नहीं होते जितने कि अपने परिचित की अमीरी से होते हैं । 

सौंदर्या जितनी सुंदर थी उतनी ही "खुली" हुई भी थी । उसकी सोच थी कि जब धनवान आदमी अपने धन का प्रदर्शन करता है, ताकतवर अपनी ताकत का प्रदर्शन करता है , सत्तासीन व्यक्ति अपने दबदबे को दिखाता है तो फिर हसीनाओं को भी अपने हुस्न की नुमाइश जरूर करनी चाहिए । जब ईश्वर ने उसे भरपूर सौंदर्य दिया है तो उसे दिखाने में क्या हर्ज है ? और यदि बदन की नुमाइश करके अगर उसके "भक्तों" की संख्या बढ़ती है तो इसमें तो कोई ऐतराज किसी को होना नहीं चाहिए । इसलिये वह अधिकांशतः वैस्टर्न आउटफिट यूज करती थी । "थोड़ा छुपाओ , ज्यादा दिखाओ" यही उसका दर्शन था । 

अभिमान के कारण वह किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी । जिसकी गरज हो वह सौंदर्या से बात करे , वह नाहक ही हर किसी से क्यों बात करे ?  औरों से अलग दिखने के चक्कर में वह बाकी लड़कियों से अलग अलग ही रहती थी । लड़कियों के "झुंड" में रहना उसे पसंद ना था । अलग सौंदर्य तो अलग ही पहचान भी होनी चाहिए न । 

एक दिन कॉलेज में पिकनिक का प्रोग्राम बन गया । सौंदर्या को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई । उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । वह यही सोचती कि वह क्या पहनेगी, क्या मेकअप करेगी , पिकनिक में क्या क्या धमाल करेगी ? इसकी तैयारी करने लगी थी वह । उसे पता नहीं था कि उसके पीछे पीछे एक अनजाना खतरा आने वाला है । हालांकि दूसरी लड़कियों को थोड़ा सा आभास हो गया था कि "शोहदों" ने सौंदर्या के लिए कुछ न कुछ सरप्राइज अवश्य तैयार किया है । मगर वह क्या है , इसका अंदाज़ा किसी को नहीं था । और सौंदर्या ने ऐसी कौन सी यारी निभाई थी जो कोई लड़की उसे उस खतरे के बारे में बताये । 
लड़के भी हलके फुलके मूड में थे । बस, सौंदर्या को सबक सिखाना चाहते थे । किसी को घास ही नहीं डालती थी वह । हुस्नपरी होने का मतलब यह तो नहीं होता है कि वह हर किसी का अपमान करती फिरे ? सबक सिखाना पड़ेगा उसे । शोहदों ने पक्का मन बना लिया था । 

उसकी अलग दिखने, रहने की आदत ने लड़कों का काम और आसान कर दिया । सारी लड़कियां उत्तर में तो सौंदर्या दक्षिण में नजर  आती । लड़के दूर से उसकी हरकतों पर नजर रख रहे थे । अरग थलग रहने के कारण उसका शिकार आसानी से किया जा सकता था । 

सौंदर्या पिकनिक में आई थी तो "फूलों" की तरह खिलना भी था उसे । इसलिए वह मार्केट से एक ट्रांसपेरेंट ड्रेस लाई  । जब उसने वह ड्रेस पहनी तो बाकी लड़कियां शरमा गईं । सबने उससे कहा कि यह ड्रेस ठीक नहीं है कोई दूसरी पहन ले । इसमें उसके समस्त "अवयव" नजर आ रहे हैं ।  मगर सौंदर्या को तो लगता था कि वे उसकी सुंदरता से चिढकर ऐसा कह रही हैं । उसने किसी की भी बात नहीं मानी और उस ड्रेस को पहने रही । 

कॉलेज के छंटे बदमाशों के ग्रुप ने भी ठान लिया था कि जब हुस्न का सागर उफन रहा है तो उसमें से दो चार घूंट "हुस्न" पीने में क्या हर्ज है ? इसलिये योजना बनाकर एक खुली जिप्सी में मस्ती करने की गरज से वे सौंदर्या को बैठाकर उड़ चले । दूसरी लड़कियों ने दबे स्वर से मना भी किया कि इन लड़कों के इरादे साफ नहीं लग रहे हैं  मगर घमंडी लड़की किसी की सुने तो कोई बात बने । सौंदर्या उन लड़कियों का मखौल उड़ाकर उन लड़कों के साथ हो ली ।

जिप्सी जंगल में अंदर की ओर बढ़ती जा रही थी । रास्ते में लड़के  गाने गाकर मौज मना रहे थे । फीमेल पार्ट सौंदर्या गा रही थी और मेल पार्ट लड़के । एक लड़के ने उसकी आंखों में झांककर गाना गाया 

"रुकमणी, रुकमणी 
शादी के बाद क्या क्या हुआ" । 

अब तो सब लड़के उसके चारों ओर खड़े होकर गाने लगे 
"सौंदर्या , सौंदर्या 
शादी के बाद क्या क्या होगा" । 

तब तक सौंदर्या इसे मजाक ही समझ रही थी । वह भी उनका साथ देने लगी ।  वह लड़कों के गलत इरादे भांप ना सकी । अब लड़के उसके हाथों को , बांहों को छूने लगे । अब सौंदर्या को अहसास हुआ कि वह "हवस के पुजारियों" के बीच फंस गई है । इस स्थिति से कैसे बाहर निकला जाये ? उसका दिमाग सोचने लगा । एक तरकीब उसके दिमाग में आई । वह पेट दर्द का बहाना बनाकर वापस चलने की बात कह सकती है । उसने ऐसा ही किया । मगर लड़के इतनी आसानी से उसे छोड़ने वाले कहाँ थे ? वे तो पूरी तैयारी करके आये थे । आज तो "छप्पन भोग" का प्रसाद मिलने वाला था ।  उन्होंने जिप्सी एक किनारे रोक दी और सौंदर्या के "अंगों" को छूने लगे । कोई जबरन किस करने लगा तो कोई "हग" करने लगा । 

इससे पहले कि कोई अनहोनी होती , एक बस वहां पर आ गयी । उसमें से दमादम लोग उतरे और उन लड़को पर पिल पड़े । सौंदर्या को लड़कियों ने संभाला । उसकी ड्रेस लगभग फट चुकी थी और उसके बदन की सार्वजनिक नुमाइश होने लगी थी । रितिका अपने साथ एक ड्रेस और लाई थी । सौंदर्या ने बस में घुसकर कपड़े बदले । लोग उन पांचों शोहदों को पकड़ कर होटल ले आये और थाने के सुपुर्द कर दिया । 

आज सौंदर्या की लाज बच गई ।  सौंदर्या सोचने लगी कि कौन है वो जिसने मुझे बचा लिया उन राक्षसों से ? अचानक उसे याद आया कि रितिका एक एक्सट्रा ड्रेस लाई थी । क्यों लाई थी वह एक्स्ट्रा ड्रेस ?  इसका मतलब उसे सब कुछ पता था । उसे याद आया कि उसने उस समय आंखों के इशारे से लड़कों के साथ चलने पर मना भी किया था । मगर उसने तो घमंड में ध्यान ही नहीं दिया था । उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि रितिका इतनी मदद करेगी  ? "वह ऐसा क्यों करेगी ? और वह मेरी तो सहेली भी नहीं है ? चलो उसी से पूछते हैं "। यह सोचकर सौंदर्या रितिका से बोली 
"रितिका, एक बात पूंछू " ? 
"एक नहीं दो पूछ ना" । 
"तू ही लेकर आई थी ना उस बस को " ? 

रितिका खामोश रही । तब सौंदर्या ने उसे अपनी कसम खिलाई तब उसने बताया "कल रात को डिनर में बहुत भीड़ थी । तब मुझे एक लड़के ने बताया कि तुम टारगेट हो । बस, मैं तभी से तुम पर निगाह रख रही थी । जब ये लड़के तुम्हें जिप्सी में लेकर जा रहे थे तब मैंने आंखों के इशारे से मना भी किया था । मगर तुमने ध्यान ही नहीं दिया । बाद में मुझे लगा कि तुम गहरे संकट में हो तब मैंने बाकी लोगों को तैयार किया और बस लेकर आ गई तुम्हारे पीछे पीछे । और , काम बन गया अपना "। अब रितिका के होठों पर एक मुस्कान उभरी । देर आयद दुरुस्त आयद । 

उसकी क्या अब तो सबकी निगाहें सौंदर्या पर टिकी हुई थी । सौंदर्या को अपनी गलतियों पर पश्चाताप हो रहा था । सही कहा है कि अभिमान में चूर आदमी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेता है । और बाकी की कसर उसके जान पहचान के लोग ही पूरी कर देते हैं । सौंदर्य, धन दौलत , ऐश्वर्य सब ईश्वर की देन हैं । इनका सम्मान इसलिए करो कि भगवान की विशेष कृपा से ही ये मिली हैं । अभिमान में चूर होकर ईश्वर का उपहास तो मत उड़ाओ कम से कम । कहो कैसी रही ? 

हरिशंकर गोयल "हरि"

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