अग्नि पथ"



अग्नि पथ से ही जीवन बनता, साहस का अद्भुत रस दे जाता।जीवन बड़ा अनमोल है,राहें बड़ी कठिन हैं। 
अग्नि पथ सा देतीं अनुभव, फिर भी चलते ही जाना है।
इन राहों पर धूप छाँव बरसात मिलेगी, सबका ही तो मोल है।
बस चलते जाना ही इस जीवन का,संकल्पी अहम रोल है।
रूकना कभी नहीं है राही,
मुड़कर नहीं देखना राही।
भले मिले मरुस्थल, कांटे भले लहूलुहान कर जाएं, 
या फिर शस्य श्यामला स्निग्ध कर जाए, 
फिर भी अग्नि पथ का बानक ,
जीने की कला बतायेगा। 
अंतिम सांस तक वह सीखें, 
कुछ न कुछ समझाएंगी।
यह जीवन को गुलाब जैसा मान बढ़ते ही तो जाना है।
स्वयं समझना औरों को समझाना यही तो करते जाना है।
अग्नि पथ को ही तो कर्म पथ बनाना है।
चूक नहीं होने देना है,माफी से कतराना न, 
प्रभु का स्मरण करते-करते आगे ही बढ़ते जाना है। 
इस अग्नि पथ के रज-कण को लेकर माथे तिलक लगाना है
इस जीवन के अग्नि पथ को अपने गले लगाना है।
रचनाकार- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक रचना,उत्तराखंड।

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४