हाइवे का कैफे

“ अरे यहां शहर से दूर किसको सूझा ये कैफ़े खोलने का ?” मैंने हाईवे से शहर के अंदर मुड़ती हुई सड़क पर अपनी कार मोड़ते हुए लगभग सुनसान जगह पर कैफ़े देखकर सोचा। 

उस वक्त रात के करीब नौ बज रहे थे।

मैं करीब दस साल बाद उस शहर वापिस जा रहा था। मैंने उस शहर में हॉस्टल में रहते हुए इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की थी। इस हाईवे पर तब भी कुछ ढाबे थे जहां हम कॉलेज के फ्रेंड्स खाना खाने आया करते थे। 

कॉलेज की पढ़ाई के बाद मेरी एक मेट्रो सिटी में मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई थी। नौकरी और घर परिवार की व्यस्तताओं के कारण इतने साल यहां नहीं आ पाया था। 

पिछले हफ़्ते कॉलेज के समय के एक दोस्त राहुल का फोन आया था कि उसकी बहन की शादी है। उसने मुझे जोर देकर कहा था कि हर हाल में आना है। 

मैंने भी ये सोचकर हामी भर दी कि इसी बहाने उस शहर में फिर से जाने का मौका मिलेगा और दोस्तों से मिलना भी हो जायेगा। बच्चों के एग्जाम होने के कारण पत्नी साथ नहीं आ पाई थी। 

मैं अकेला खुद कार चलाकर आ रहा था। करीब चार सौ किलोमीटर का सफ़र था। लगभग छः घंटे का वक्त लगता था। घर से दोपहर में तीन बजे के आसपास निकला था। रास्ते में रुककर एक ढाबे में नाश्ता कर लिया था। 

कैफ़े देखकर खुश हो गया कि यहां अच्छा खाना मिल जायेगा। सोचा कि यहीं से खाकर चलता हूं शादी वाले घर में पता नहीं क्या माहौल होगा।

मैंने कार मोड़कर कैफ़े के लॉन में रोक दी। मैंन कांच का दरवाजा खोलकर अंदर प्रवेश किया। 

वो कैफ़े काफी सुंदर लग रहा था अंदर से। साफ़ सुथरा हॉल, अंदर बड़े शहरों जैसी लाईटिंग, बहुत सुंदर डिजाइन की टेबल कुर्सी बहुत सलीके से जमाई हुईं, टेबल पर बहुत करीने से क्रॉकरी जमी हुई थी। बांयीं तरफ एक खूबसूरत कॉंउंटर बना हुआ था। 

उस कॉउंटर पर कोई नहीं दिख रहा था। अंदर धीमा धीमा बहुत मदहोश करने वाला म्यूजिक बज रहा था। मैंने वैसा म्यूजिक पहले कभी नहीं सुना था।

मैंने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई तो मुझे कैफ़े में कोई कस्टमर नहीं दिखा। कैफ़े खाली था। शायद शहर से दूर होने के कारण रात को कम ही लोग आते होंगे। मेरे जैसे हाईवे से गुजरने वाले ही रुक जाते होंगे। 

तभी मुझे एक वेटर जैसा लड़का अपनी तरफ़ आते दिखा। उसने सफ़ेद कलर की शर्ट, ब्राऊन कलर का पेंट पहना हुआ था। शर्ट में ब्राऊन कलर की ही टाई लगाई हुई थी। उसकी ड्रेस देखकर मेरा ध्यान गया कि कैफ़े की कलर थींम भी ब्राऊन और व्हाईट थी। शायद ये कलर्स इस कैफ़े के मालिक को बहुत पसंद होंगे।

“ वेलकम सर। प्लीज सिट। “ उसने एक चेयर को टेबिल से बाहर निकालते हुए बैठने को कहा। 

मैं चेयर पर बैठ गया। 

वेटर आर्डर लेने लगा। आर्डर देने के बाद मैं कॉलेज के दिन और सारे दोस्तों को याद करने लगा। पूरी उम्मीद थी कि काफी सारे दोस्तों से भेंट होने वाली थी। अंदाजा लगाने लगा कि कौन कौन आ सकता है।

“ रवि! तू आ गया ? “ अपने बांयीं तरफ़ से अपना नाम सुनकर बुरी तरह चौंक गया। 

सिर उठाकर देखा तो चौंक गया। 
वहां रोहन खड़ा था। मेरी तरफ़ देखकर मुस्करा रहा था। 

मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वो बिल्कुल भी नहीं बदला था। आज भी कॉलेज के दिनों की तरह दिख रहा था। 

मैं हड़बड़ा कर उठा और उसे गले लगा लिया। 

“ तूने तो मुझे डरा ही दिया यार “ मैंने उससे कहा।

वो हंसने लगा। मैं भी हंसने लगा।

“ तू यहां कैसे ? “ मैंने उससे पूंछा।

“ ये कैफ़े मेरा ही है। “ उसने मुस्कुराते हुए कहा।

अब मेरी दुबारा चौंकने की बारी थी।

“ अभी एक और सरप्राइज है तेरे लिए। “ उसने ऐसा कहकर अपनी दांयी तरफ इशारा किया।

मैं दंग रह गया। 

वहां से नेहा चली आ रही थी। 

नेहा रोहन की कॉलेज में गर्लफ्रेंड थी। वो मुस्कुराते हुए पास आकर खड़ी हो गई।

“ यार तू तो सरप्राइज पर सरप्राइज दे रहा है। “ मैंने चकित स्वर में कहा। वो फिर से बहुत जोर से ठहाका लगाकर हंसने लगा। नेहा भी जोर जोर से उसके साथ हंसने लगी।

“ हां यार मैंने और नेहा ने शादी कर ली थी कॉलेज के दो साल बाद। “ उसने बताया और दोनों  मुझे बैठने का इशारा करके खुद भी बैठ गये।

“ राहुल की सिस्टर की शादी के लिए आए हो न रवि ? “ नेहा ने पूंछा।

“ हां यार, इसी बहाने सब दोस्तों से मुलाकात हो जाएगी। बस यही सोचकर प्रोग्राम बना लिया। “

“ वाइफ और बच्चों को नहीं लाए ? “ उसने फिर से पूंछा।

“ बच्चों के एग्जाम हैं इसलिए श्वेता को रुकना पड़ा। “ मैंने बताया। उन दोनों ने सहमति में सिर हिलाया।

“ तुम लोगों के बच्चे कहां हैं ? “ मैंने भी पूंछा।

“ बच्चे हैं ही नहीं, अभी तो हमारा हनीमून पीरियड ही खत्म नहीं हुआ। “ इतना बताकर रोहन ने फिर जोर का ठहाका लगाया। 

उसके ठहाके उस सुनसान में बहुत जोर से गूंज रहे थे। 

वो कॉलेज के समय भी ऐसे ही जोर के ठहाके लगाता था लेकिन शांत जगह होने के कारण उसके ठहाके थोड़ा अजीब लग रहे थे। 

बिल्कुल भी नहीं बदला था वो।

“ तुम लोग भी आ रहे हो शादी में ? “ मैंने पूंछा।

“ हमें बुलाया ही नहीं। “ ऐसा कहते हुए उसने नेहा की तरफ़ देखा। 

नेहा भी मुस्कुरा रही थी।

“ ऐसा क्यों ? “ मैंने आश्चर्यचकित हो कर पूंछा। 

“ अरे उसे मालूम ही नहीं होगा कि हम यहां है। पिछले आठ साल से हमारा कोई संपर्क नहीं है और यहां भी हम अभी अभी आये हैं। “ उसने बात को सरल करते हुए कहा।

तभी वेटर ने खाना लगा दिया। 

खाने में मेरे आर्डर से कहीं अधिक वेरायटी थी। मैं समझ गया कि ये रोहन ने ही किया होगा। 

हम खाना खाते खाते बात करने लगे। 

खाना बहुत स्वादिष्ट था।

“ तूने ये कैफ़े यहां क्यों खोला ? “ मैंने अपनी उत्सुकता को शांत करने के लिए पूंछ ही लिया।

“ तुझे मालूम है कि मेरा सपना था एक कैफ़ै खोलना। यहां मेरे पापा की प्रापर्टी पड़ी हुई थी। बस इसीलिए यहां कैफ़े खोल लिया। अब हम दोनों यहीं रहते हैं। “ उसने बताया।

खाना खाते खाते हम तीनों ने कॉलेज के समय की खूब बातें कीं। खाने के बाद हमने कॉफी पी। 

मैं वैसे भी बहुत लेट हो गया था इसलिए मैंने उससे विदा मांगी।

“ इच्छा तो बिल्कुल भी नहीं है कि तू जाये पर रोक भी नहीं सकता। तुझसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। “ उसने मुझे इजाज़त देते हुए कहा। 

“ चल ठीक है लौटते वक्त तुझसे मिलता हूं। “ मैंने उसको गले लगाते हुए कहा। उसने मुस्कुराते हुए नेहा की तरफ़ देखा फिर मेरी तरफ़ देखकर धीरे से सहमति में सिर हिलाया। 

मैं कार में बैठा और उसको हाथ हिलाते हुए वहां से निकल गया।
रास्ते में मैं सोच रहा था,  

“ अच्छा किया कि मैं शादी के बहाने आ गया। शुरुआत भी बहुत अच्छी हुई थी। रोहन और नेहा से मुलाकात हो गई लेकिन राहुल को रोहन को शादी में बुलाना चाहिए था। रोहन को मोबाइल पर कॉल ही कर लेता तो उसे मालूम हो जाता कि रोहन और नेहा यहीं हैं। हो सकता है रोहन का नंबर उसके पास न हो। 
राहुल के यहां पहुंचकर जरूर पूछूंगा उससे। “ 

ऐसा सोचते सोचते राहुल के घर पहुंच गया। 

रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। 

राहुल बाहर ही मिल गया। 

वो मुझसे तुरंत गले लग गया। 
वो बहुत खुश था। फिर उसने बताया कि रुकने की व्यवस्था पास के एक होटल में ही की है। पूरा होटल ही बुक है। उसने एक लड़के को मुझे होटल ले जाने को कहा और बोला कि दस पंद्रह मिनट में वो भी पहुंच रहा है कल की शादी के कुछ इंतजाम देखकर तब तक मैं फ्रेश हो जाऊं। 

उस लड़के ने मुझे होटल के एक शानदार रूम में पहुंचा दिया। उस लड़के ने बताया कि मेरे दोस्त नीचे बार में बैठे हैं। 

मैंने उसे बिदा किया और बाथरूम में घुस गया। कुनकुने पानी से नहाने से मेरी सारी थकान मिट गई। 

मैंने फ्रेश कपड़े पहने और बार की तरफ़ चल दिया।

बार में राहुल मुझसे पहले से ही मौजूद था। 

उसने मुझे देखकर हाथ से आने का इशारा किया। 

मैं वहां पहुंचा। 

वहां कॉलेज के बहुत सारे दोस्त एक बड़ी सी टेबल जो तीन चार टेबलों को जोड़कर बनाई हुई थी, पर मौजूद थे। मैं सबसे मिला। 
एक अलग ही माहौल बन गया था। हम सब कॉलेज के दिन याद करने लगे। 

मुझे रोहन और नेहा की कमी महसूस होने लगी। वो भी अगर साथ होते तो कितना मजा आता। 

मैंने राहुल से पूंछ लिया,

“ तूने रोहन नेहा को नहीं बुलाया ? “

वो मेरे को असमंजस भरी नज़रों से देखते हुए बोला,

“ कैसे बुलाता यार वो दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं। “

मुझे काटो तो खून नहीं था। 

मैं एक प्रकार से सदमे में आ गया। 

मेरी आंखों के सामने कैफ़े की एक एक बात मूवी की तरह घूमने लगी। 

मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। मुझे वहां हो रहे शोर में भी सन्नाटा लग रहा था। मैं अपनी जगह पर जड़ हो गया था। 

तभी राहुल ने मुझे जोर जोर से हिलाकर पूंछा,

“ रवि रवि कहां खो गये ? “

मुझे उसकी आवाज मीलों दूर से आती प्रतीत हुई। 

उसने मुझे फिर से हिलाया। मैं जैसे नींद से जागा।

“ क्या हो गया तुझे ? “ उसने फिर से पूंछा।

“ मैं अभी रोहन नेहा से मिलकर आ रहा हूं, उनके कैफ़े में। “ मैंने डूबती आवाज में जवाब दिया।

“ क्या बोल रहा है तू ? पागल तो नहीं हो गया ? “ उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा। वहां मौजूद सारे दोस्त मुझे बड़ी अजीब नज़रों से देख रहे थे।

मैंने उनको सारा घटनाक्रम सुनाया। 

वो सब भी खौफ और आश्चर्य से मिश्रित नजरों से मुझे देख रहे थे। 

मैंने सवालिया नज़रों से राहुल की तरफ़ देखा जैसे पूंछ रहा हूं कि रोहन नेहा के साथ क्या हुआ था।

“ रोहन ने कॉलेज के बाद यहीं हाईवे की टर्निंग पर अपने पापा की प्रापर्टी पर कैफ़े खोला था। दो साल बाद उसने नेहा से शादी की। वो दोनों हनीमून पर शिमला गये थे अपनी कार से। एक घाटी से गुजर रहे थे। कार उसका ड्राइवर चला रहा था। एक दूसरी कार को स्पीड पर ओवरटेक करते वक्त कार घाटी में नीचे जा गिरी। स्पॉट पर ही तीनों मर गये।  तू  जिस कैफ़े में गया था वो खंडहर हो चुका है। “

मुझे अब अहसास होने लगा था कि वो वेटर उसका ड्राइवर ही था।

अब माहौल ही बदल गया था। हम सब स्तब्ध थे। अब वहां बैठने का मन नहीं था इसलिए अपने अपने रूम में चले गए।

मेरी नींद उड़ चुकी थी। 

रोहन और नेहा के चेहरे मेरी आंखों में तैर रहे थे। उनकी मुस्कुराहट, रोहन के ठहाके और उनकी बातें कानों में गूंज रही थीं। रोहन की हर बात में इशारा था जो मैं समझ नहीं पाया था। 

सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही चला।

दूसरा दिन शादी में निकल गया लेकिन रोहन और नेहा मेरे दिमाग से नहीं निकल रहे थे। 

शादी के दूसरे दिन मैं दोपहर को वापिस हो लिया। 

हाईवे के पास पहुंचकर मैंने कैफ़े की तरफ़ देखा। 

वो एक खंडहर हो चुकी बिल्डिंग थी। 

मैंने उसके सामने सड़क पर ही कार रोक दी और उस रात को याद करने लगा। ज्यादा देर वहां नहीं रुक सका। 

उस कैफ़े की तरफ़ देखने में डर लग रहा था।

मैंने कार आगे बढ़ा दी। मुझे याद आ रहा था कि मैंने उससे कहा था कि लौटकर उससे मिलूंगा। 

तभी मुझे ऐसा अहसास हुआ कि कार की पिछली सीट भरी हुई है।
मेरी पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी.......…


शिव खरे "रवि"

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