किस्से नए पुराने



किस्से नए पुराने,आते-जाते,
कहते हैं, मन के तराने।
सब बसे होते हैं, जाने-अनजाने।
कहते रहते हैं सुख-दुःख के तराने।
जब देखो तब आते रहते हैं मुस्काने।
किस्से नए- पुराने--------।
इन किस्सों में ही तो समाहित हैं,
ज़िन्दगी भर के अफसाने।
कैसे दूर हो सकता है कोई इनसे?
यही तो हैं सारे नगमें औ तराने।
छेड़ जाते हैं दिल के तार,
बिन कहे सारे अफसाने
ये किस्से नए-पुराने-----।
आते-जाते रहते हैं बिन बुलाए,
पतझर औ बसंत से,सुरे-बेसुरे ही, 
कुछ न कुछ गुनगुनाने
ये किस्से नए-पुराने------
कभी भी झंकृत कर देते तार मन के,
हलचल मचा देते हैं, अतीत से आज तक,
बिन स्वर-लहरी के,ताल औ थाप बिन, 
गाथा कह जाते जीवन के अफसाने।
ये किस्से नए-पुराने-----।
माहिर होते हैं। 
हँसते को रुलाने में, रोते को हँसाने में। 
कुलबुलाते हुए, स्मृति की बगिया में। 
ये किस्से नए- पुराने -------।
कुछ भूले कुछ भटके,
छेड़ जाते हैं तार जीवन के,
कुछ कहकर, कुछ सुनकर 
ये किस्से  नए-पुराने-----।।
रचयिता -
सुषमा श्रीवास्तव-
मौलिक कृति
(सद्यः निःसृत)
सर्वाधिकार सुरक्षित

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