वो तोड़ती पत्थर
वो तोड़ती पत्थर, श्रम बिंदु पौछ मस्तक, अनुभव करती गर्वित, न किया गलत अब तक, वो तोड़ती पत्थर। मई जून की ग्रीष्मता, न बदल सकी उसका रास्ता, सिर्फ उसका खुद से है, नहीं किसी से वास्ता, वो तोड़ती पत्थर। दो जून की रोटी, बस चाह है उसकी, लिए गोद में बेटी, वो तोड़ती पत्थर। तरुण तन से, मृदुल मन से, बहुत कठोर मगर, जीवन से, वो तोड़ती पत्थर। कितनी चोटें मन पर, तन पर कई निशान, पथरीली चट्टान का, तोड़ रही अभिमान, वो तोड़ती पत्थर, वो तोड़ती पत्थर।