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Showing posts from April, 2022

वो तोड़ती पत्थर

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वो तोड़ती पत्थर, श्रम बिंदु पौछ मस्तक, अनुभव करती गर्वित, न किया गलत अब तक, वो तोड़ती पत्थर। मई जून की ग्रीष्मता, न बदल सकी उसका रास्ता, सिर्फ उसका खुद से है, नहीं किसी से वास्ता, वो तोड़ती पत्थर। दो जून की रोटी, बस चाह है उसकी, लिए गोद में बेटी, वो तोड़ती पत्थर। तरुण तन से, मृदुल मन से, बहुत कठोर मगर, जीवन से, वो तोड़ती पत्थर। कितनी चोटें मन पर, तन पर कई निशान, पथरीली चट्टान का, तोड़ रही अभिमान, वो तोड़ती पत्थर, वो तोड़ती पत्थर।

मजदूर

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मुश्किल से टकराता है  मेहनत को वो अपनाता है  गरम तवे की रोटी खातिर  परदेस तलक वो जाता है हाथों का हुनर रखता है  वो महल अटारी करने को  खून पसीना बहा देता  पेट परिवार का भरने को मजदूर आज मजबूर हुआ  महंगाई की मार सहने को  कौन ले सुधबुध उनकी  बचा नहीं कुछ कहने को सर्दी गर्मी वर्षा में भी  वो कर्म पथ अपनाता है  नीली छतरी के नीचे बैठा  हाथों का हुनर दिखाता है रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत की गई रचना स्वरचित व मौलिक है

"मई-दिवस/मजदूर-दिवस"

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मेरे विचारानुसार यद्यपि हम सभी कहीं न कहीं श्रमिक ही हैं तदपि कुछ लोग एक वर्ग विशेष को ही मजदूर या श्रमिक का संबोधन देते हुए  स्वयं को श्रेष्ठ    समझने की भूल करते हैं।         आइए, आज मजदूर-दिवस से संबंधित कुछ तथ्य यहाँ पर भी उजागर करने का प्रयास करते हैं।           भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग का झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी जिसका नेतृत्व वामपंथी व सोशलिस्ट पार्टियां कर रही थीं। दुनियाभर में मजदूर संगठित होकर अपने साथ हो रहे अत्याचारों व शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।            आज ही के दिन दुनिया के मजदूरों के अनिश्चित काम के घंटों को 8 घंटे में तब्दील किया गया था। मजदूर वर्ग इस दिन को  बड़ी-बड़ी रैलियों व कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) द...

हे वतन , क्या होगा तेरे कल का

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देखकर आज इंसान की हरकतों को, उसके लफ्ज़ और उसके कारनामों को, सोचता हूँ तेरे बारे में , हे वतन, क्या होगा तेरे कल का ? पुकारता हूँ उस मालिक को, जिसकी रचना है इंसान, जो होकर गुमराह इस प्रकार, अपने स्वार्थ के लिए, कर रहा है ऐसे कुकृत्य, जिनसे नहीं है अमन वतन में। कर रहा है वह विश्व में, नाम बदनाम तेरा सच में, कर रहा है धूमिल तेरी वह तस्वीर, जो बनाई थी तेरे सपूतों ने, देकर अपना बलिदान, तुमको दासता से मुक्त कराने के लिए। लिखा था जो भविष्य तेरा, उन शहीदों ने लहू अपना बहाकर, सब रिश्तें- नाते तुझपे कुर्बान करके,  देने को हंसी-खुशहाली नई पीढ़ी को। लेकिन आज देखकर नई पीढ़ी को, जो कर रही है तेरा सौदा विदेशों में, तेरे महापुरुषों की विरासत का, और बुझा रही है वो ज्योति, जो जलाई थी तेरे सपूतों ने  तुमको रोशन करने के लिए, लेकिन कर रही है बर्बाद, यह नई पीढ़ी उन सभी को, अपनी जठराग्नि को बुझाने को, सोचता हूँ और आश्चर्य करता हूँ, हे वतन, क्या होगा तेरे कल का ? शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

मेरे शहर की बात

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मेरे शहर की कोई एक बात हो तो बताऊं  इतने सारे किस्से हैं, किस किस को सुनाऊं  ये शहरों में शहर है गुलाबी नगर कहलाता है  प्रेम भाईचारे का यहां बहुत गहरा नाता है  हवामहल, जंतर-मंतर,  सिटी पैलेस खास हैं  "नगर नियोजन " के लिए यह बहुत विख्यात है  छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़ यहां की विशेषता हैं  अजमेरी गेट से लेकर घाट गेट की प्रबलता है  "राजमंदिर" सिनेमाघर ने खास जगह बनाई है "एल एम बी" की मिठाइयों ने खूब धूम मचाई है "लाल जी सांड" का रास्ता कपडों का बाजार है "खजाने वालों के रास्ते" में घेवर फीणी की बहार है "अल्बर्ट हॉल" से राजपूती शान झलकती है  "मसाला चौक" की चाट में लोगों की जान बसती है  ऐलीवेटेड रोड और मैट्रो ने जिंदगी बदल दी है  मोती डूंगरी के गणेश जी ने सबको खुशियां दी हैं  "गोविंद देव जी" के दर्शन करके दिन निकलता है "खोले के हनुमान" जी पर "गोठ" के लिए शहर उमड़ता है  "चोखी ढाणी" को कौन है जो नहीं जानता है  राजस्थानी संस्कृति का रंग रूप यहां झलकता है  "विधान सभा" भवन ने...

वैराग्य पथ - एक प्रेम कहानी भाग ४७

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  श्रावण मास निकट था। सुजान और कापाली को अपने मित्र राजकुमार ऋतुध्वज से और अपनी मुंहबोली बहन से मिले वर्षों बीत गये थे। सुजान और कापाली भी नागदेश में अपने पिता के साथ राजकार्य में व्यस्त चल रहे थे। इतने समय में उनका जीवन भी बहुत आगे बढ चुका था। सही बात है कि जीवन के संघर्ष बहुधा विद्यार्थी जीवन की मित्रता को मन से ही उतार देते हैं। पर सच्ची मित्रता कभी मिटती नहीं। बार बार स्मरण आती है।     बहुत वर्षों बाद दोनों भाई अपने मित्र से मिलने चल रहे थे। मित्र की रुचि के अनुसार बहुमूल्य भेंट तैयार थीं। मुंहबोली बहन के लिये वस्त्रों और आभूषणों का संग्रह तैयार था। दोनों ही इस बात से अनजान थे कि इन उपहारों का आज कोई अर्थ नहीं है। मदालसा तो अपना जीवन ही त्याग चुकी है। तथा मदालसा के बिना ऋतुध्वज भी भोगों से निस्पृह हुआ मात्र जीवन ढो रहा है। अब वह न तो रेशमी वस्त्र धारण करता है और न ही अपने शरीर पर कोई आभूषण धारण करता है। बहुधा उसकी आंखें मदालसा की याद में गीली हो जाती हैं। अधिकतम समय वह परोपकार में लगा रहता है। खुद का सुख अब वह पूर्णतः भूल चुका है।     मदालसा को उन ...

भगवान परशुराम जयंती-शत शत नमन

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भगवान परशुराम का अवतरण दिवस है आज। मना रहा जयंती देश ही नहीं पूरा विश्व है आज। त्रेता युग रामायण काल में ऋषि के घर में जन्मे। महर्षि भृगु  पुत्र महर्षि जमदग्नि के यज्ञ से जन्मे। पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इंद्र वरदान स्वरूप। माता रेणुका के गर्भ से जन्मे धर परशुराम रूप। वैशाख शुक्ल तृतीया को मानपुर,इंदौर- एमपी। जानापाव पर्वत में हुआ है बनी रेणुका पुत्रवती। पितामह भृगु ने नामकरण संस्कार से कहा राम। शिवजी प्रदत्त परशु धारण से होगये ये परशुराम। प्रारंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र-ऋचीक पढ़ाये। ऋचीक से शारङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष पाये। महर्षि कश्यप ने अविनाशी वैष्णव मन्त्र सिखाये। कैलाश गिरिश्रृंग स्थित शिव आश्रम भी ये ध्याये। शिवजी श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच दिये। स्तवराज स्तोत्र व मन्त्र कल्पतरु भी प्रदान किये। त्रैलोक्य स्वामी अंतर्यामी प्रभु से ये शिक्षा हैं पाये। ऐसे महा ऋषियों मुनियों से परशुराम विद्या पाये। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रभु विष्णु प्रसन्न। त्रेता में रामावतार होने के उपरांत तेजोहरण कर। परशुराम को वर दिये रहें पृथ्वी पर जीवन पर्यन्त। तपस्यारत भूलोक प...

नखरे वाली नींद

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नींद भी कितनी नखरे दिखाती है,  कभी बिस्तर पर जाते ही आ जाती है,         कभी घंटो मूहँ चिढ़ाती है,  पल मे प्यार जताती है और  पल मे ही रुठ जाती है,            जाने क्यों इतना सताती है,  चादर भी रहे चक चक तकिया भी हो चकाचक, नींद जो एक बार खुल जाए यकायक,  फिर ना आती पास नलायक रातों पर भी लग जाता है पहरा,  दिन में भी लगता है घनघोर अँधेरा,  न आने पर ये चोट दे देती है गहरा,  कब बाधेगी मेरी आँखों पर अपना सहरा,      आ रे प्यारी निंदिया रानी,         कद्र है तेरी ये मैं मानी,         अब न कर तु मनमानी,          न तु बन इतनी सयानी,  बस भी कर अब आ जा निंदिया रानी।

बीते समय की बाते

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बीते समय की बाते मुझे सोने नही देती, वो जानी पहचानी आहटे मुझे सोने नही देती! खुद को भी कर बैठे कुर्बान,कोई जरा सी बात पर, कुदरत भी आज आँसू बहा बैठी मेरे हालात पर, गैरो की करे क्यूँ बात,खंजर हाथ मे है अपनो के,बात ये मुझे सोने नही देती! बिना जुर्म के बिना गलती के,मुजरिम हमको बना दिया, गैर तो चलो गैर थे,अपनो ने भी तो दगा किया, बिगड़ी हमसे कहाँ बात,बात ये मुझे सोने नही देती! जिन्दा हूं मै अभी,क्यूँ दफन हो गए सभी जज्बात, बात मुझे ये सोने नही देती! बीते समय की बात मुझे सोने नही देती!                                               श्वेता अरोड़ा

काश ऐसा होता

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ऐसा भ्रम - जाल क्यों फैला रहे हैं ?  नारी का क्या रूप दिखा रहे है ?  ऐसा कहीं क्या होता है ?  व्यर्थ असत्य दिखा रहे हैं ।  हास्य - कवियों की कविता क्या है ?  कविता का आधार भी वनिता है ।  हास्य - आधार नहीं सूझता कुछ भी ,  नारी बिन रचना हास्य - रहिता है ।  घर - बाहर क्या व्यवसाय मे भी ,  नारी को आश्रय - आधार बनाते हैं ।  हास्य शिरोमणि मंचो पर सज ,  वाहवाही लूट ले जाते है ।  हफ्ते में बस एक दिवस ही  ,  चूल्हा चौका सम्भाल कर देखो ।  चित्र में दर्शित स्थिति को भी ,  सत्यापित दिखाकर तो देखो ।  काश कभी ऐसा भी हो जाए ,  पुरुष चूल्हा फूँकता नज़र आए ।  स्त्री आराम से पसरी हो ,  पुरुष पसीने से लथपथ हो जाए ।  मीरा सक्सेना माध्वी  नई दिल्ली

सब से पहले पूजो

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आज कल का जमाना यही है भाई सबसे पहले पूजो  तुम लुगाई  घर के सारे काम करो  देवी जी को खुश रखो  वो हुई नाराज तो समझ लेना अच्छी खासी शामत तुम्हारी है आई  उसको खिलाओ दूध और मेवा तब समझो मिले तुम्हे कलेवा  ज्यादा ऊंची जो तुमने आवाज लगाई समझो बेटा तुम्हारी फिर राम दुहाई  वो कहे सर दबाओ वो कहे तो पैर उसको रखो खुश , नही तो समझो  सब से अब होगा बैर  मां बहन अब तुम्हे याद आई करती थी जो सदा तुम्हारी अगवाई अब बेटा बारी तुम्हारी आई  सबसे पहले पूजो तुम लुगाई  सब से पहले पूजो तुम लुगाई .... रेणु सिंह राधे  कोटा राजस्थान

क्या था, क्या हो गया

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मुझको मालूम नहीं था बिल्कुल भी, मोहब्बत किस चिड़िया का नाम है, और किस तरह जुड़ते हैं, दो अजनबी दिल आपस में, अंजान और नादान था मैं। हुई जब उससे पहली मुलाकात, देखकर उसकी खामोशी को, चांदनी सी उसकी सुंदरता को, बेमिसाल उसकी खूबसूरती को, होता गया उसके नजदीक मैं, और जुड़ते गए दिल के तार उससे। लेकिन भूलता गया ऐसे में मैं, अपने अजीज दोस्तों को, अपने परिवार के रिश्तों को, अपनों की प्रार्थनाओं को, अपने माता-पिता के प्यार को, उससे नजदीकी और प्यार में। हमेशा चंचल रहने लगा, मेरा दिल उससे मिलने को, मेरे कदम उसके घर जाने को, उससे बातें करने को, उसके निमंत्रण के बिना, बिना मान- सम्मान के मैं। लेकिन मालूम नहीं था, वह करेगा मुझको बदनाम, मुझको बर्बाद जीवन में, वह देगा मुझको ऐसा दर्द, मेरे प्यार के बदले तोहफे में, क्या था, क्या हो गया। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

"हर स्वप्न साकार"

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"तेरे सारे सपनों को साकार कर दूं। तुम उड़ो आसमा, मैं पंख तेरे नाम कर दूं। तेरे सारे .... गर तेरी ख्वाहिश, है सारी दुनिया, मैं यह जमीं तेरे नाम कर दूं। तेरे सारे.... ग़म, दर्द जो हो, वो में चुरा लूं, अपनी सारी खुशियां तेरे नाम कर दूं। चलो तेरे सारे..... तेरे सारे अरमानों को पूरा करने, अपनी सारी जिंदगी तेरे नाम कर दूं। चलो तेरे सारे..... अंजाने में गर तुम ग़लती करो, तेरी गूस्ताखियों को, मैं माफ़ कर दूं। तेरे सारे..... सफ़र में गर कोई मुश्किल भी आए, क़दम लड़खड़ाने से पहले, मैं थाम लूं। तेरे सारे..... मौत भी आवाज दे तो, नाकाम कर, अपनी हिस्से की सांसें तेरे नाम कर दूं। तेरे सारे.....                                           अम्बिका झा ✍️

उल्टा दांव

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      रमन जल्दी से बर्तन धुलो,मुझे भूख लगी है_नीता चिल्लाते हुए बोली। धुल रहा हूं डार्लिंग _जल्दी जल्दी हाथ बर्तनों पर चलाते रमन ने कहा। पहले नीता ऐसी नहीं थी ,सीधी साधी ,संस्कारी लेकिन रमन की कुछ हरकतों ने उसे जोरू का गुलाम बना दिया था । रमन एक दिलफेंक आशिक था,खूबसूरत लड़कियां उसकी कमजोरी थी।ऑफिस में वह एक एलिजिबल बैचलर था। उसी ऑफिस में नीता नई नई क्लर्क के पोस्ट पर अप्वाइंट हुई थी।सुंदर,आकर्षक ,चुंबकीय व्यक्तित्व की नीता, हर कोई उसका सानिध्य पाना चाहता था,शादीशुदा मर्द भी उसके पास भंवरे की तरह मंडराते थे। नीता जान कर भी अनजान बन अपने काम से काम रखती थी। रमन खुद को बड़ा तीसमार खां समझता था ,इसलिए  उसने अपने  साथ के ऑफिस स्टाफ से  शर्त लगाई  थी कि, वह नीता को अपने प्यार के जाल में अवश्य फंसाएगा। नीता की सहेली शालिनी को यह बात उसके पुरुष मित्र जीवन से पता चल गई थी ।नीता सतर्क हो चुकी थी। रमन मेल जोल बढ़ाने के बहाने खोज ही रहा था ,नीता  जानबूझकर उसे मौका देने लगी। वह कोई न कोई बहाना कर उसके आसपास मंडराता। एक दिन नीता ने कहा _सर आज कैब की हड़...

पैरोडी

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तर्ज : क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार  में  क्या से क्या हो गया दिलरुबा तेरे प्यार  में  सोचा क्या और क्या हुआ महबूबा इकरार में ।  वो प्यार जिसपे फिदा हुए थे फना हुआ जिंदगी से  चूल्हा चौका रोज करते हैं हम तो बंदगी से  करते हैं झाडू पोंछा मरहवा तेरे प्यार में   क्या से क्या हो गया दिलरुबा तेरे प्यार  में  मेकअप करके रहती हो तुम अब बड़े मजे से  पांच साल में ही हाल हुआ ये लगते हैं गंजे से  चकला बेलन यार हुआ जानेजां तेरे प्यार में  क्या से क्या हो गया दिलरुबा तेरे प्यार  में  सोचा क्या और क्या हुआ महबूबा इकरार में  हरिशंकर गोयल "हरि"

"बदलते परिवेश के नए ढंग"

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आज रश्मिरथी ने अपने नियमानुसार चित्रार्थी के लिए लेखन में जो तस्वीर दी है वह तस्वीर आज के बदलते भारत की है, जहाँ महिलाएं अब पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं और शायद कहीं उससे आगे भी हैं। कामयाबी की जिस ऊँचाई पर पहले सिर्फ मर्दों का राज था, अब महिलाएं भी वहाँ पहुँच रही हैं। लेकिन जितना आदर्श ये सुनने में लगता है, उतना है नहीं...क्योंकि ये अधूरा सच है। ऑफिस के बाद जब बात घर की जिम्मेदारियों की आती है तब पूरा बोझ महिलाओं पर ही डाल दिया जाता है। मतलब घर का किचन आज भी उस मॉडर्न महिला का असली पता है, जो सुबह-सुबह बदलते समाज की पहचान लिए ऑफिस जाती है। उस वक्त पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चलता। तब पुरुष और महिलाओं की समानता की बात नहीं होती। ऐसे में सवाल उठता है कि जब आप समानता की बात करते हैं तो घर की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज क्यों किया जाता है. हम ये तो स्वीकार कर चुके हैं कि महिलाओं को घर से बाहर निकलना चाहिए, लेकिन पुरुष घर के काम में कब हाथ बंटाएंगे? दुनिया में पुरुष और महिलाओं के बीच घर की जिम्मेदारियों को लेकर बराबर तो नहीं लेकिन समझौते की हद तक बंटवारा हो चुका है...

"कलयुग"

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कैसा यह कलयुग है आया, सबके मन को है भरमाया, सोफा पर श्वान को बैठाए, मानव दर-दर ठोकर खाया। कैसा यह कलयुग है आया। पहले पति ही थे परमेश्वर, अस्तित्व उनका खतरे में आया, बाहर तो करे रोटी का जुगाड़, घर का भी भार उठाया। कैसा यह कलयुग है आया। भौतिकता सर चढ़कर बोले, कोई किसी को समझ न पाया, भूले सब रिश्तों की गरिमा, बस एक-दूजे पर आरोप लगाया। कैसा यह कलयुग है आया।

'नया दौर नया जमाना'

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नया दौर है,आया नया जमाना नर पर लगती अब भारी नारी है। अपने अधिकारों की बात करे ये नहीं रही ताड़न की अधिकारी है। चूल्हे चौके से बाहर निकल कर  इसने इक नयी पहचान बनाई है। पिसती नहीं प्रतिदिन घुन की तरह घर के सदस्यों से पापड़ बिलवाती है। खिला सबको न रहे भूखी प्यासी  फुरसत में मीठे अंगूर भी खाती है। आधुनिक युग के साथ बदले कायदे छल से बाहर जानती अपने ये फायदे। कदम मिला रही पुरुषों के साथ जब तो उन्हें अपने भी काम सिखाती है। स्वरचित शैली भागवत "आस" ✍️

शादी का लड्डू

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 बीवी तो बन गई आराम से पटेलन   हमको थमा दिया चौकी और बेलन   वह तो खाए अंगूरों के गुच्छे   हमने भी तो कर्म किए थे अच्छे फिर हम पति ही क्यों नजर में है खटके   जो थमा दिए हमें झाड़ू और फ़टके   मेरे हाल देखकर कुंवारों को लगेंगे झटके   पर भैया हम तो आसमान से गिरकर खजूर में है अटके   होता नहीं है हर पति का ऐसा बुरा हाल   यह तो हमारी फूटी किस्मत का ही है कमाल   होती है कुछ पत्नियां ऐसी ही महान हस्ती   जो पापड़ की जगह पति को ही तले तले खाती   इसे देखकर भयभीत मत हो जाना   शादी का लड्डू सब एक बार तो जरूर खाना      प्रीतिमनीष दुबे      मण्डला मप्र

आज की मांग

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अजीब लगता है अपने समाज में। पुरूष रसोई में,महिला दफ्तर में। पर इसमें क्या ही बुराई है। रसोई में पुरुष भी अच्छाई है। कुछ देवियां बेशक बहाने करती हों। रसोई के कामों से जी चुराती हों। पर मांग है आज के समाज की। दोनों मिल संभाले रसोई और बाहर के काज की। महिला अगर थक कर आए। तो पुरूष भी उसका हाथ बंटाए। पुरूष का जेब हल्का पड़ जाए। तो महिला उसका हाथ बंटाए।         -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण

हिया कहे हे राम

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करके आये नौकरी,  पत्नी को आराम l बेमन रोटी बेलते ,  हिया कहे हे राम ll सज्जन मानुष ही सदा, सहे कार्य का भार l लोक लाज का भय रहे, सहता  अत्याचार ll रहे   नये युग में अभी,  शील नहीं है नार l करे  काम पति देव जी  ,करे हिया चित्कार ll सुन्दर घर की नार है , माने कभी नहिं हार l परुष सदा पिसता रहा,करता नहिं वो रार ll डटे रहे अब रार बन ,  हुई पत्नी विकराल l छोड़ मोह माया सभी,दुनियां मायाजाल ll @डॉ०ज्योति सिंह वेदी "येशु "✍️ ---------मधेपुरा (बिहार)----------

वैराग्य पथ - एक प्रेम कहानी भाग ४६

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  तालकेतु ने रंभा को वचन तो दे दिया पर वह किसी भी तरह राजकुमार ऋतुध्वज जैसे वीर से मुकाबला करने को तैयार न था। जो खुद उसके भाई के गुप्त गृह में घुसकर उसका संहार कर सके, उसका सामना वह भला कैसे कर सकता था। दूसरी तरफ राजकुमार की अनुपस्थिति में राज्य पर आक्रमण कर मदालसा का वध करने की योजना भी उसे उचित नहीं लगी। महाराज शत्रुजित भी परम वीर थे। सही बात तो यह थी कि तालकेतु को वीरों से ही बड़ा भय लगता था।    भले ही तालकेतु अपनी पत्नी के प्रेम को सही तरह समझ न पाया हो पर मदालसा के पति प्रेम के विषय में उसकी स्पष्ट राय थी। पहले भी वह सती स्त्रियों की गाथा सुन चुका था। मदालसा को सती मान उसने खुद एक बड़ा प्रपंच रच दिया तथा उस प्रपंच में सफल भी हो गया। रंभा को मदालसा की मृत्यु अभीष्ट थी और यमुना तट पर एक तपस्वी विप्र के वेष में अपनी तपस्या की पूर्ति के लिये कुछ यज्ञ सामग्री खरीदने की बात कहकर तथा राजकुमार से उसकी अंगूठी प्राप्त कर तालकेतु ने अपना मनोरथ प्राप्त कर लिया। ' विद्या कंठी में और पैसा अंटी में 'एक पुरानी कहावत है। आजकल तो आनलाइन के समय में पूरी तरह सार्थक नहीं हो रही पर कुछ द...

किस्मत की किताब का यह किस्सा है

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तू हुआ यूं कि पिछले साल लॉकडाउन लगने पर श्रीमती शर्मा और श्रीमान शर्मा घर में बंद हो गए नई-नई शादी हुई थी अभी बच्चे भी नहीं थे। एक दूसरे के साथ रह रह कर भी थक गए ।अब उन्हें कुछ क्रिएटिव कार्य करना था, कुछ क्रियात्मक था लानी थी, रचनात्मकता  इत्यादि श्रीमती शर्मा ने किताब लिखने की सोचे और मैं लगी कहानियां लिखने कभी कुछ फिर उन्होंने निर्णय लिया कि नहीं मैं तो उपन्यास लिखूंगी। अब वह ढेर सारे आईडिया लेकर आ जाएं  श्रीमान शर्मा के सामने अब वह घबराए कि उनको लेखन का कोई अनुभव नहीं उनकी कहानियां सुने ना उनसे कोई राय दी जाए। यहां गौर करने वाली बात यह है कि श्रीमती शर्मा को घर का कार्य कुछ नहीं आता वह केवल पढ़ाई करती रही, शादी हो गई। श्रीमान शर्मा जी ऑफिस से आकर घर आते और खाना बनाते हैं और लॉकडाउन में तो सारे घर की जिम्मेदारी उनकी हो गई है। ऐसे ही खट्टे मीठे अनुभव उनको हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी के साथ वह बांटने शुरू कर दिए उनको खुद पता ही नहीं चला कब वह कहानियां इतनी अच्छी सुनाने लगे पत्नी भी लिखने लगी। डिजिटल पत्रिका में जब यह छप गई तो 1 दिन श्रीमान शर्मा जी के पास ऑफर आया इस ...

पति बेचारा हास्य कविता

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 एक पति जो अपना किस्सा सुनाता है ।  उठते ही सुबह लग जाता हूँ काम पर,  फिर भी न कहती कि थोड़ा तो आराम कर।  धिरे धीरे चाय बनाता कि बर्तन न खड़क जाए चाय है रेडी, कहकर धीरे से जगाता की कही न भड़क जाए।          कामवाली है छुट्टी पर , समझे  झाड़ू, पोछा बर्तन भी है तुम्हे करना बिस्तर भी और घर की साफ़ सफाई भी है करना      खाना भी तो है बनाना,       धमकी दी जाती है वरना।  बदल कर चिंटु का डाइपर , उसे भी चुप कराना है,  जल्दी से खाना बना कर देवी जी को भी भोग लगाना है ।  काम है कितना सोच के रो रो के फड़फड़ाता हू,  रोज शाम को पैसे मिलते हैं गिन के,  दो समोसे और चटनी मै लाता हू।         दिल बेचारा रोता है ,  पैसे भी कमाऊ, और घर मे भी खचाऊ,  मायके भी ना जाए कि छोड़ के मै आऊ ,       कुछ दिन तो चैन से बिताऊ।      थोड़ा और किस्सा सुनाता हु  ,   सोने से पहले पावं भी दबाता हूँ,   जब देवी  जी की आखं...

जमाना बदल रहा है

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पतिदेव सेंकते रोटी , पत्नी आराम फरमा रही हैं सच कहते हैं सब लोग अब  जमाना बदल रहा है जूठे बर्तनों का अंबार सा लगा हुआ है किचेन में फरमाइश चाय की आ रही, जमाना बदल रहा है ऑफिस  से थके हुए हैं फिर भी झाड़ू लगा रहें हैं   अभी कपड़ों का धुलना बाकी ,जमाना बदल रहा है  महंगे ब्यूटी पार्लर में जाकर देवी जी व्यस्त हैं जब  पति घर के जाले छुड़ा रहा है जमाना बदल रहा है किटी पार्टी से आकर पत्नी जी अब थक गई है तो  पति उनके पैर दबा रहा है अब जमाना बदल रहा है ये रचना केवल हास्य और मनोरंजन के लिए लिखी गई है पुरुष वर्ग और महिला वर्ग दोनों कृपया अन्यथा न लें😊😊😀😀🙏🙏 संगीता शर्मा

हिन्दी देश के जनमानस के लिए राष्ट्रभाषा थी, है, रहेगी ।

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संसार में आपस में संवाद कायम करने के लिए जबसे बोलियों का उद्भव और तत्पश्चात भाषाओं का विकास हुआ, तब से मनुष्य न केवल आपसी बर्ताव के लिए, बल्कि आपसी संबंधों के लिए भी इन पर पूरी तरह से आश्रित हो गया और धरती के सभी भौगोलिक क्षेत्रों में वहां के स्थानीय निवासियों द्वारा अपनी-अपनी आवश्यकताओं और परिवेश के अनुसार भाषाओं और अपने-अपने व्याकरण का आविष्कार हुआ और समय के साथ यह चीजें परिष्कृत होती चली गयीं।                  इतिहास को देखें तो हमें भली प्रकार यह पता चलता है कि अपनी बोली, अपनी भाषा में कार्य करने वाले लोगों ने न केवल उत्कृष्ट कार्य किया, बल्कि अपने युग में वह सिरमौर भी बन पाए। कारण यह था कि उनका जो शासन-प्रशासन व कारोबार था, वह उनकी आत्मिक बोलियों द्वारा संचालित था और शासन-प्रशासन व कारोबार करने वाले तथा उस कारोबार से जुड़े हुए सभी लोगों का संवाद उनकी अपनी भाषाओं में ही होता था। जिससे न केवल उस संवाद की आत्मीयता बनी रहती थी, बल्कि सभी लोगों में भी एक प्रकार के भाईचारे का आत्मीयतापूर्ण रिश्ता कायम हो जाया करता था और यह सच आज भी बिल्कुल इसी...

"आज की नारी न बेचारी" हास्य काव्य

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नारी देखो अब, मौज मनाती, पतिदेव से सब, काम करवाती, नारी देखो अब..... खुद पलंग पर, आराम फ़रमाती, ऐ जी सुन लो अब, तुम मेरी बात, अब न करुं चाकरी, गया ज़माना,  सासू माँ जब, सब काम करवाती, नारी देखो अब..... चूल्हा चौका, और बरतन भाड़े, कर देती सब, मेरे मत्थे चढ़ाए, उन्ना लत्ता धो ले, तना बहुरिया, बुलाए फिर, हाथ पाँव दबवाती, नारी देखो अब..... अब आ गयी हूँ मैं, अपने रुप में, नहीं रही मैं बेचारी, अबला नारी, पैसा भी लाओ, घर भी सम्हालो, बहुत हुआ अब, मैं काम करवाती, नारी देखो अब..... घर का कूड़ा करकट, साफ करो, उन्ना लत्ता भी अब, सब फीचो तुम, बहुत करी बेगारी, जरा आराम करुं, कामचोरी क्या होती, तुम्हें बतलाती, नारी देखो अब..... खुद पलंग पर, आराम फ़रमाऊं, मजों से अब, फल-फूल खाऊं, पतिदेव से अब, रोटी बनवाती, तिगनी का देखो, नाच नचवाती, नारी देखो अब मौज मनाती, नारी देखो अब.....।      काव्य रचना-रजनी कटारे             जबलपुर म.प्र.

एक आत्महत्या

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सोचकर देखना जरा एक बार.... कि किस हाल में होगी वो, जब आत्महत्या का ख्याल उसके मन में आया होगा। शायद कोई बहुत बड़ा बोझ होगा दर्द का... जो उसका मासूम दिल सहन नहीं कर पाया होगा। क्या गुजरी होगी उस परिवार पर... जिसने अपने घर की जवान बेटी को गंवाया होगा। क्या हाल हुआ होगा उस मां का... जिसने उसे अर्थी के लिए दुल्हन की तरह सजाया होगा। क्या बीती होगी उस भाई पर...  जिसने अपनी बहन की डोली की जगह, उसकी अर्थी को कांधा लगाया होगा। कैसे संभाला होगा खुद को उस बाप ने... जिसने अपनी जवान बेटी की लाश को, अपने ही हाथों से जलाया होगा। कहां से आई होगी वो हिम्मत उसमें... जब एक बाप ने अपने रिश्तेदारों को बेटी की शादी की पर नहीं,  बल्कि उसकी मौत की दावत पर बुलाया होगा। कुछ ने बहाए होंगे आंसू उसके जनाजे पर... तो कुछ ने उसके दामन पर,  चरित्रहीनता का दाग भी लगाया होगा। न जाने जिंदगी की किस जद्दोजहद से जूझ रही होगी... जब आत्महत्या की ओर उसने अपना कदम बढ़ाया होगा। सब उलझे होंगे अपनी-अपनी सोच में मगर... उसके मन की पीड़ा को कोई भी नहीं समझ पाया होगा। न जाने कब से घुट रही होगी अंदर ही अंदर... अपने दर्द क...

या खुदा बचा लेना उसके दामन को

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पूछता हूँ हर बार यही सवाल, जब भी जाता हूँ उसकी दर पर मैं, क्या नहीं मिला तुमको मेरा प्यार, जब भी वो मिलता है मुझको, किसी भी राह या मंदिर में। वो कहता है मुझसे, कुछ भी नहीं हुआ है तेरे यार को, सलामत है तेरा यह यार हर कहीं, कोई नहीं पहुंचा सकता चोट,  तेरे इस यार को सच में। मगर मुझको नहीं होता है विश्वास, उसकी बातों पर सच में दिल से, उसकी चंचलता को देखकर, उसकी शरारत को देखकर, उसकी नादानी को देखकर। आवाज देकर पुकारता हूँ मैं, दीपक लेकर तलाशता हूँ मैं, मंदिर में जाकर प्रार्थना करता हूँ मैं, दुहा करता हूँ मैं खुदा से, करता हूँ उसकी सलामती की फरियाद। मगर उसको क्या शक है मुझसे मिलने में, उसको क्या डर है दर्द मुझको सुनाने में, फिर भी लगे नहीं दाग उस चांद पर, उसके पवित्र शरीर - दामन पर, लुटे नहीं उसकी अस्मत कभी , किसी गैर के हाथों मेरे मालिक, या खुदा बचा लेना उसके दामन को। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

तीन इंद्रधनुष

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   शाम से ही बारिश हो रही थी। कभी रुक रुक कर और कभी तेजी से। रामचंद्र ज्यादा परेशान था। बारिश का मौसम वैसे उसे भी अच्छा लगता था। पर छत से पानी टफकने लगता तो बारिश की सुंदरता मन से गायब हो जाती। घर के जरूरी सामान को ठीक जगह करना और थोड़ी सी जगह सोने के लिये तैयार करने में रामचंद्र को बहुत देर लगी। फिर अपनी औरत मुनिया को पुकारने लगा।     " मुनिया ओ मुनिया ।"    मुनिया ने शायद सुना नहीं। रामचंद्र कुछ देर आवाज लगाकर चुप हो गया। मुनिया की यही बात उन्हें गलत लगती है। आदमी की आवाज को सुनकर नजरअंदाज कर देती है। वैसे मुनिया के प्रेम पर शक करने की बजह नहीं है। पर मुनिया की जिंदादिली रामचंद्र को थोड़ा अखर जाती। परेशानियों में आदमी परेशान होगा ही। औरतों का क्या है। घर को कैसे सुचारु रूप से चलाना है, यह देखना तो मर्दों का ही काम है। अगर चार दिन आदमी कमाकर न लाये तो औरतों को सब चंदा तारे दिख जायें। सब रास रंग भूल जायें। अभी इतना इतरा कर बोलती हैं कि घर को वही चलाती हैं। पर घर तो पैसों से चलता है जो आदमी कमाकर लाता है।     तभी पड़ोस से गानों की...

सुखी संसार

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सखि,  क्या तुम्हें पता है कि "सुख" किसे कहते हैं ? पर तुम्हें कहां से पता होगा ? तुम कोई इंसान थोडी ना हो । ये सुख दुख तो ईश्वर  ने हम इंसानों को ही दिये हैं ना । अच्छा है कि तुम इंसान  नहीं हो वरना तुम भी आज मंहगाई को कोस रही होती , नई पीढी को लापरवाही और अमर्यादित व्यवहार के लिये पानी पी पी के गालियां दे रही होती । लोगों की नकारात्मक सोच पर तरस खा रही होती और बात बात पर लडने की प्रवृति पर मन ही मन भुनभुना रही होती । मगर तुम इन सब लफडों  से दूर हो, इसीलिए कितनी खुश हो । तुम्हारा संसार कितना सुखी है क्योंकि वह एक "आभासी" है न कि वास्तविक ।  हकीकत  में यहां कौन सुखी है ? किसी को पति ने प्रताडित किया है तो कोई पत्नी पीड़ित है । कोई  शादी करके दुखी है तो कोई इसी बात से दुखी है कि उसकी शादी नहीं हुई । किसी के संतान नहीं है तो कोई अपनी संतान से ही दुखी है । कोई गरीबी से दुखी है तो किसी को चार, उचक्कों का डर सताता है । कोई इस बात से दुखी है कि वह सुन्दर  नहीं है तो किसी के लिये उसकी सुंदरता ही अभिशाप बन गई है । सखि, मुझे तो यहां पर हर आदमी दुखी ...

श्रीमती जी का आर्डर

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सुबह सुबह एक आवाज़ आई..🗣️ नहीं आएगी काम वाली बाई..🏩🧕 सुनकर मेरी आँखें चकरायी..👀 लो फिर से मैं अटक गया..🫣 ऑफिस जाना लटक गया😰 मीठी जटिल मुस्कान लिये 🫠 श्रीमती जी भागी आयी..🏃🏻‍♀️ सुनो मेरे प्राण पियारे..👩‍❤️‍💋‍👨 करने है कुछ काम हमारे..📝 बस कुछ घर के संग बर्तन है तुमको चमकाना..🍽️ साथ में दो चार चपाती बनाना..,🫓🫓 फ़िर बच्चों को शाला छोड़ के आना..👨‍👧‍👦 मुझको तो है ज़रूरी पार्लर भी जाना..💅🏻 सखियों के संग घूम कर है आना..💃🏻 dp के लिये सेल्फ़ी भी तो लगाना है..🤳 तब थोड़े नाश्ते में पकोड़े संग चाय भी बनाना..🍱👐 बस एक दो यही करलो मेरे काम🤷🏻‍♀️ बाकी तो करते ही हो दिन भर आराम😳 तब ही तुम ऑफ़िस को जाना..😱 सुनकर ये सब ज़ाहिर था  हमको चक्कर आना😵‍💫 बैठ पलंग पर श्रीमती का  रसभरे अंगूरों के चटकारे लेकर😋 एक के बाद एक काम हमकों काम बताना..🤨 भोली सूरत से हमारा घड़ी की सुई ताकना..🧐 देखते हुए हमकों श्रीमती जी का घुर्रा कर झांकना..😠 क्या करते बेचारे राम नहीं बचा था अब कोई उपाय..🥸 भीतर ही भीतर दे रहे हम हाय..🤬 हम रोएं और वो मुस्काये ऐसे में मना करने वाला🙅🏻‍♂️  बहाद...

इतने डिग्री ले के घूम रही है

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बिना पढ़े ना मिले ये डिग्री, कुछ तो  पढ़ी लिखी होगी। इतने डिग्री लेके घूम रही है, छाले भरे पड़े पांव में होगी। सूखे हैं होंठ थकी लगती है, चेहरा देखो तो बहे पसीना। गज़ब हिम्मती है ये तो देखो, इस गर्मी में यह चले हसीना। एक पल भी तो बर्दास्त नहीं, कोई भी ठहर ना पाये इसमें। ज़िस्म जला देती है पूरा पूरा, गोरे हो जाते हैं काला इसमें। नीचे से जलती है यह धरती, ऊपर से खौलता आसमान। ऐसा है यह गर्मी का मौसम, कैसे सुरक्षा करें पशु इंसान। सम्हले  रहें इस धूप गर्मी से, हानिकारक हैं इसके थपेड़े। लू बन जाती है बड़ी आफत, सह न सके यह शरीर थपेड़े। सर मुंह  ढँके बिना अंगौछे से, बाहर न जायें खतरा है जान। इससे भी बड़ा बच के रहना है, 45 डिग्री का है यह तापमान। रचना : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

तुम्हारा असर है इस कदर

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प्रफुल्लित मन मदमस्त होकर बादलों के रथ पर सवार आकाश चूमता है, सुकून की शीतल हवाएं अन्तर्मन के उद्वेग को शान्त कर जाती हैं, हर्षोल्लास की नन्हीं बूंदों से हृदय का प्यासा समंदर भर जाता है, ताजगी भरे प्यारे से अहसास मेरे वजूद को हौले से सहला जाते है, देख लो! इक तेरे मिलने और बात करने से चमत्कार कितने सारे मेरी जिंदगी में हुए जाते हैं।                         जितेन्द्र 'कबीर' यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर' संप्रति - अध्यापक पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश

"रैगिंग"

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रैगिंग शिक्षण संस्थानों में नव आगंतुक छात्रों के साथ होने वाली एक बुराई है। जो ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, भारत, श्रीलंका व अन्य कॉमनवेल्थ देशों में प्रचलित है जिसे अमेरिका में हेजिंग के नाम से जाना जाता है। आम बोलचाल के शब्द में रैगिंग का तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई कृत्य करना जिससे किसी छात्र को शारीरिक अथवा मानसिक क्षति हो, शर्मिंदगी हो, जैसे किसी विद्यार्थी को चिढ़ाना या उसका मज़ाक उड़ाना अथवा  किसी विद्यार्थी से ऐसा कोई कार्य करने को कहना, जिसे वह सामान्य अनुक्रम में न करे।        वर्तमान में भारतीय शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग अपनी गहरी जड़े जमा चुकी है , किन्तु मूल रूप से रैगिंग एक पश्चिमी संकल्पना है। रैगिंग की शुरुआत यूरोपीय विश्वविधालयों में सीनियर छात्रों द्वारा नये छात्रों के स्वागत में किये जाने वाले मजाक से हुई, किन्तु धीरे-धीरे रैगिंग पूरे विश्व में फ़ैल गई। वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में रैगिंग के विरुद्ध कड़े कानून बनाए गये हैं तथा इस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जा चुका है, किन्तु भारत में वर्तमान में भी रैगिंग वीभत्स रूप में प्रचलित है,पर ...

थोड़ा ठहर जिंदगी

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     ए जिंदगी थोड़ा तो ठहर,  अपने कदम को थोड़ा धीरे धीरे ले के चल,  कितना कर्ज बाकी है,कितनों का दर्द मिटाना है,        और फर्ज भी तो निभाना है,  थोड़ी अपनी रफ्तार तो कम कर।  कितने रिश्ते रूठे हैं उन्हें भी मनाना है,  कुछ तो जुड़ते जुड़ते टुट गए उन्हें भी तो जोड़ना है,  हसरतें है कुछ बाकी काम भी कुछ जरुरी है,  चारों तरफ से उलझी हुई है तू जिंदगी,        उसे भी सुलझाना है,  यू ना बिखर सांसे तु थोड़ा और चलना है,  थोड़ी अपनी रफ़्तार कम कर थोड़ा और चलना है।।  ए...... जिंदगी थोड़ा और ठहर अपने कदम को थोड़ा..............  . .......... धीरे धीरे चल।। ..

वह लता

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दरख़्त से लिपटी हुई वह लता, जो पुलकित कर देती है मन को, अविराम हवा की भांति, गतिशील रखती है मेरे विचारों को, चाहे वह है स्वप्न मेरे लिए, अविस्मरणीय याद मेरे लिए। उसकी मौन अभिव्यक्ति, जो सृजित होती है मेरी कलम से, हर महफ़िल में शिरकत में, हर कोई पूछता है प्रश्न मुझसे, मेरी रचना को देखकर , वह अलभ्य है मेरे लिए, और मुश्किल मेरा उस मंजिल तक, पहुंचना और उसको सीने से लगाना। मगर मुझको विश्वास है कि, कुछ भी हो फिर भी वह, नहीं मुझसे अपरिचित, और नहीं हूँ मैं दूर, उसकी स्मृति में , उसकी बातों और दर्द में। लेकिन वह करीब है, हर पल मेरे विचारों में, मेरे अदब और मेरे रचना में, मेरे काव्य की प्रेरणा बनकर, काव्यात्मा बनकर हर वक़्त, जिसको स्वीकार करता है, यह संसार और हर कवि। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

वैराग्य पथ - एक प्रेम कहानी भाग ४५

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   एक दिन    महाराज शत्रुजित का दरवार लगा हुआ था। राजकुमार ऋतुध्वज बहुत दूर यमुना नदी के तट पर स्थित राज्य में गये हुए थे। जब राजकुमार बहुत दूर जाते थे तब बहुधा एक या दो दिन बाद आते थे। आज राजकुमार के वापसी की कोई उम्मीद न थी। साथ ही साथ ऐसी भी कोई उम्मीद न थी कि कोई राजकुमार के विषय में कोई अप्रिय सूचना लेकर आयेगा। राजकुमार वीरता में अतुल्य थे। धरती के अतिरिक्त स्वर्ग और पाताल में भी कोई उनका सामना नहीं कर सकता। पर एक सत्य यह भी है कि किसी की भी शक्ति मात्र शक्तिमान की शक्ति का एक अंश मात्र होती है। फिर यदि शक्तिमान की इच्छा ही कुछ अलग करने की हो तो किसी की शक्ति ही क्या कर सकती है। पल भर में शक्तिशाली दीन बन सकता है और शक्तिहीन विश्व नियंता। यही तो उन अजन्मा की माया है। जैसे चंद्र की कांति वास्तव में सूर्य के प्रकाश का परिणाम होती है। उसी तरह विश्व में किसी का भी कोई गुण मात्र ईश्वर के गुणों से ही अपना अस्तित्व प्राप्त करता है।     विधाता के मुंह फेर लेने से भले ही कोई शक्तिशाली भी पराजित हो जाये पर बचपन से ही मन में भरा क्षत्रियत्व का स्वभाव मिट नहीं सकत...

कविता। क्यूँ....?

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क्यूँ....? तुम मुझे इतना याद आते हो। क्यूँ.....? तुम मुझे हर जगह नजर आते हो। क्यूँ......? तुम मुझे इतना सताते हो। क्यूँ....…? तुम मुझे इतना रुलाते हो। क्यूँ......? तुम भुलाये नही भूलते हो। क्यूँ......? तुम मुझे इतना तड़पाते हो। क्यूँ......? मेरी सांस पर तेरे नाम का पहरा हैं। क्यूँ......? कान्हा तुम मेरे रोम रोम बसे हो। क्योंकि.....? मीरा की तरह मैं हो नही सकती राधा सा विरह सह नही सकती तो क्यों मेरे मन में भक्ति की लौ जलाते हो। क्यूँ......? कान्ह तुम इतना याद आते हो। क्यूँ...? गरिमा राकेश 'गर्विता' कोटा राजस्थान