हे वतन , क्या होगा तेरे कल का
देखकर आज इंसान की हरकतों को,
उसके लफ्ज़ और उसके कारनामों को,
सोचता हूँ तेरे बारे में ,
हे वतन, क्या होगा तेरे कल का ?
पुकारता हूँ उस मालिक को,
जिसकी रचना है इंसान,
जो होकर गुमराह इस प्रकार,
अपने स्वार्थ के लिए,
कर रहा है ऐसे कुकृत्य,
जिनसे नहीं है अमन वतन में।
कर रहा है वह विश्व में,
नाम बदनाम तेरा सच में,
कर रहा है धूमिल तेरी वह तस्वीर,
जो बनाई थी तेरे सपूतों ने,
देकर अपना बलिदान,
तुमको दासता से मुक्त कराने के लिए।
लिखा था जो भविष्य तेरा,
उन शहीदों ने लहू अपना बहाकर,
सब रिश्तें- नाते तुझपे कुर्बान करके,
देने को हंसी-खुशहाली नई पीढ़ी को।
लेकिन आज देखकर नई पीढ़ी को,
जो कर रही है तेरा सौदा विदेशों में,
तेरे महापुरुषों की विरासत का,
और बुझा रही है वो ज्योति,
जो जलाई थी तेरे सपूतों ने
तुमको रोशन करने के लिए,
लेकिन कर रही है बर्बाद,
यह नई पीढ़ी उन सभी को,
अपनी जठराग्नि को बुझाने को,
सोचता हूँ और आश्चर्य करता हूँ,
हे वतन, क्या होगा तेरे कल का ?
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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