"कलयुग"
कैसा यह कलयुग है आया,
सबके मन को है भरमाया,
सोफा पर श्वान को बैठाए,
मानव दर-दर ठोकर खाया।
कैसा यह कलयुग है आया।
पहले पति ही थे परमेश्वर,
अस्तित्व उनका खतरे में आया,
बाहर तो करे रोटी का जुगाड़,
घर का भी भार उठाया।
कैसा यह कलयुग है आया।
भौतिकता सर चढ़कर बोले,
कोई किसी को समझ न पाया,
भूले सब रिश्तों की गरिमा,
बस एक-दूजे पर आरोप लगाया।
कैसा यह कलयुग है आया।
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