काश ऐसा होता

ऐसा भ्रम - जाल क्यों फैला रहे हैं ? 
नारी का क्या रूप दिखा रहे है ? 
ऐसा कहीं क्या होता है ? 
व्यर्थ असत्य दिखा रहे हैं । 

हास्य - कवियों की कविता क्या है ? 
कविता का आधार भी वनिता है । 
हास्य - आधार नहीं सूझता कुछ भी , 
नारी बिन रचना हास्य - रहिता है । 

घर - बाहर क्या व्यवसाय मे भी , 
नारी को आश्रय - आधार बनाते हैं । 
हास्य शिरोमणि मंचो पर सज , 
वाहवाही लूट ले जाते है । 

हफ्ते में बस एक दिवस ही  , 
चूल्हा चौका सम्भाल कर देखो । 
चित्र में दर्शित स्थिति को भी , 
सत्यापित दिखाकर तो देखो । 

काश कभी ऐसा भी हो जाए , 
पुरुष चूल्हा फूँकता नज़र आए । 
स्त्री आराम से पसरी हो , 
पुरुष पसीने से लथपथ हो जाए । 


मीरा सक्सेना माध्वी 
नई दिल्ली

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