एक आत्महत्या



सोचकर देखना जरा एक बार....
कि किस हाल में होगी वो,
जब आत्महत्या का ख्याल उसके मन में आया होगा।
शायद कोई बहुत बड़ा बोझ होगा दर्द का...
जो उसका मासूम दिल सहन नहीं कर पाया होगा।
क्या गुजरी होगी उस परिवार पर...
जिसने अपने घर की जवान बेटी को गंवाया होगा।
क्या हाल हुआ होगा उस मां का...
जिसने उसे अर्थी के लिए दुल्हन की तरह सजाया होगा।
क्या बीती होगी उस भाई पर... 
जिसने अपनी बहन की डोली की जगह,
उसकी अर्थी को कांधा लगाया होगा।
कैसे संभाला होगा खुद को उस बाप ने...
जिसने अपनी जवान बेटी की लाश को,
अपने ही हाथों से जलाया होगा।
कहां से आई होगी वो हिम्मत उसमें...
जब एक बाप ने अपने रिश्तेदारों को
बेटी की शादी की पर नहीं, 
बल्कि उसकी मौत की दावत पर बुलाया होगा।
कुछ ने बहाए होंगे आंसू उसके जनाजे पर...
तो कुछ ने उसके दामन पर, 
चरित्रहीनता का दाग भी लगाया होगा।
न जाने जिंदगी की किस जद्दोजहद से जूझ रही होगी...
जब आत्महत्या की ओर उसने अपना कदम बढ़ाया होगा।
सब उलझे होंगे अपनी-अपनी सोच में मगर...
उसके मन की पीड़ा को कोई भी नहीं समझ पाया होगा।
न जाने कब से घुट रही होगी अंदर ही अंदर...
अपने दर्द का किसी को अहसास तक न कराया होगा।
हर वो‌ शख्स रोयेगा उसके जनाजे पर...
जिन्होंने उस मासूम को रुलाया होगा।
उन रिश्तेदारों की भीड़ के बीच में शायद...
उसका कोई प्रेमी भी आया होगा।
जब देखेगा अपनी जान को कफन में लिपटा हुआ...
भला कैसे अपने आंसुओं को रोक पाया होगा।
फूट फूटकर रोना चाहेगा उससे लिपटकर...
मगर अफसोस उस वक्त कुछ भी न कर पाया होगा।
लेखिका ~ रचना राठौर ✍️

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