थोड़ा ठहर जिंदगी
ए जिंदगी थोड़ा तो ठहर,
अपने कदम को थोड़ा धीरे धीरे ले के चल,
कितना कर्ज बाकी है,कितनों का दर्द मिटाना है,
और फर्ज भी तो निभाना है,
थोड़ी अपनी रफ्तार तो कम कर।
कितने रिश्ते रूठे हैं उन्हें भी मनाना है,
कुछ तो जुड़ते जुड़ते टुट गए उन्हें भी तो जोड़ना है,
हसरतें है कुछ बाकी काम भी कुछ जरुरी है,
चारों तरफ से उलझी हुई है तू जिंदगी,
उसे भी सुलझाना है,
यू ना बिखर सांसे तु थोड़ा और चलना है,
थोड़ी अपनी रफ़्तार कम कर थोड़ा और चलना है।।
ए...... जिंदगी थोड़ा और ठहर
अपने कदम को थोड़ा..............
. .......... धीरे धीरे चल।।
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