मजदूर




मुश्किल से टकराता है 
मेहनत को वो अपनाता है 
गरम तवे की रोटी खातिर 
परदेस तलक वो जाता है

हाथों का हुनर रखता है 
वो महल अटारी करने को 
खून पसीना बहा देता 
पेट परिवार का भरने को

मजदूर आज मजबूर हुआ 
महंगाई की मार सहने को 
कौन ले सुधबुध उनकी 
बचा नहीं कुछ कहने को

सर्दी गर्मी वर्षा में भी 
वो कर्म पथ अपनाता है 
नीली छतरी के नीचे बैठा 
हाथों का हुनर दिखाता है

रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत की गई रचना स्वरचित व मौलिक है

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