नखरे वाली नींद

नींद भी कितनी नखरे दिखाती है, 
कभी बिस्तर पर जाते ही आ जाती है, 
       कभी घंटो मूहँ चिढ़ाती है, 
पल मे प्यार जताती है और  पल मे ही रुठ जाती है, 
          जाने क्यों इतना सताती है, 
चादर भी रहे चक चक तकिया भी हो चकाचक,
नींद जो एक बार खुल जाए यकायक, 
फिर ना आती पास नलायक
रातों पर भी लग जाता है पहरा, 
दिन में भी लगता है घनघोर अँधेरा, 
न आने पर ये चोट दे देती है गहरा, 
कब बाधेगी मेरी आँखों पर अपना सहरा, 
    आ रे प्यारी निंदिया रानी, 
       कद्र है तेरी ये मैं मानी, 
       अब न कर तु मनमानी, 
        न तु बन इतनी सयानी, 
बस भी कर अब आ जा निंदिया रानी।

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